कव्वाली का जुल्म

 

कव्वालो का जुल्म

हक बात है पुरी पढीये

अक्सर कव्वाल तो वैसे भी बिचारे जाहिल होते हैं , न पाकी नापाकी का इल्म , न हरामो हलाल की पेहचान , ओर जुलम ये कि कव्वाली मे ऐसे ऐसे अश्आर पढते है कि बसा अवकात सुनने ओर पढने वाले का इमान रुखसत हो जाता है

ऐसे ही चंद अश्आर जो मेरे कान में पडे वो यहां दर्ज किए गए हैं

1 :- मजाल क्या है किसी की सज्दे से सर उठाए
जब तक पुस्त पर मौला हुसैन बेठे है

ये अश्आर पढने वाला रसूले अकरम ﷺ की शान मे कितनी बडी जुर्रत ओर बेअदबी कर रहा है उसे पता भी नहीं

इस शेर मे शिआ की बू मेहसुस हो रही है

मगर सुनने वाले भी सुब्हानल्लाह , माशाअल्लाह की दाद देने मे पिछे नहीं पडते

एक कव्वाली तकदीर मुझे ले चल इसके अंदर बहोत से शेर शरअन दुरुस्त नहीं है
मसलन ,

2 :- रिंदो की नजर मे मैखाना काबे के बराबर होता है
ख्वाजा की गली का हर फेरा एक हज के बराबर होता है

3 :- हर आरीफो के सज्दे ख्वाजा के दर पे जाहीद
काबा बना हुआ है ख्वाजा का आस्ताना

4 :- क्या बताए और क्या अजमेर की गलीयो में है
इश्क वालो का खुदा अजमेर की गलीयो मे

मआजल्लाह सुम्म मआजल्लाह

इसलिए अभी के कव्वालो कव्वाली सुनना खतरे से खाली नहीं

पेहले के कव्वाल आलीम से कम नहीं होते था , तहज्जुद पढने वाले , मेहफिले समाअ मे औरते ओर बच्चो के आने पर पाबंदी थी ओर मेहफिल मे ढोल ताशे , बांसुरी वगैरह मजामिर भी नहीं होते थे

मगर आज के जाहिल कव्वाल शरीअत के खिलाफ चलने वाले , ओर बदहाली ये कि वुजू बनाना भी नहीं आता ओर हर सिम्त से औरतो से घिरे हुए ओर मेहफिल में हर तरह के मजामिर पाए जाते हैं ( अल अमान वल हफीज )

इसलिए उलमा ए अहले सुन्नत ने ये फतवा दिया कि मौजूदा दौर की मजामीर वालीकव्वाली सुनना नाजाइजो हराम है

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