मुबारक हो शहे जूदो सख़ा का चाँद निकला है

 

 

मुबारक हो शहे जूदो सख़ा का चाँद निकला है

मुबारक हो शहे जूदो सख़ा का चाँद निकला है
सरापा शाहकारे किबरिया का चाँद निकला है

ख़बर देते रहे आ आ के जिसकी अम्बिया सारे
तमामी ख़ल्क़ के उस रहनुमा का चाँद निकला है

जो अपने दौर में माँगी थी अपने ह़क़ तआला से
ख़लीलुल्लाह علیہ السّلام की अब उस दुआ का चाँद निकला है

वोह जिसके वास्ते कौनो मकाँ रब عزوجل ने बनाए हैं
उसी ज़ीशान का ज़ी मर्तबा का चाँद निकला है

जो है ईमान और ईमान की जाँ फ़ज़्ले मौला से
मेरे दिल की उफ़ुक़ पर उस विला का चाँद निकला है

खिले हैं इस लिए चेहरे गुनहगाराने उम्मत के
शफ़ी-ए-ह़श्र, फ़ख़्रे अम्बिया का चाँद निकला है

फ़लक के चाँद को है रश्क उस पत्थर की क़िस्मत पर
वोह जिस पर मुस़्त़फ़ा ﷺ के नक़्श-ए-पा का चाँद निकला है

मसर्रत यूँ है अब मिफ़्ताह़ आलम में हर इक जानिब
बरआए ख़ल्क़, ख़ालिक़ عزوجل की रिज़ा का चाँद निकला है

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