Sahaaba Aur Ahl-e-Bait Main Donon Ka Naukar Hun Hindi Lyrics

Sahaaba Aur Ahl-e-Bait Main Donon Ka Naukar Hun Hindi Lyrics

 

 

हुब्ब-ए-सहाबा, इश्क़-ए-अहल-ए-बैत
सहाबा और अहल-ए-बैत दोनों से प्यार है
सहाबा और अहल-ए-बैत दोनों से प्यार है

सहाबा-अहल-ए-बैत के हम, वफ़ादार वफ़ादार वफ़ादार
सहाबा-अहल-ए-बैत के हम, वफ़ादार वफ़ादार वफ़ादार

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
मैं जो कुछ हूँ, रसूल-ए-पाक के टुकड़ों पे पल कर हूँ

नामूस-ए-सहाबा, नामूस-ए-अहल-ए-बैत पर
पहरा देते रहेंगे, आंच न आने देंगे

ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का
ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का

मेरे ईमान-ए-कामिल का सुनो मेयार दोनों हैं
मुहम्मद की निग़ाह-ए-फ़ैज़ से सरशार दोनों हैं
नबी की आल और असहाब में ये फ़र्क़ कैसा है
ज़माना जान ले सारा मेरा तो प्यार दोनों हैं

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

अहल-ए-बैत प्यारे हैं, सहाबा सब सितारे हैं

आल-ए-मुहम्मद से, असहाब-ए-मुहम्मद से
प्यार है, प्यार है, प्यार है

सहाबा और अहल-ए-बैत से बस प्यार करना है
ग़ुलामान-ए-मुहम्मद को बहुत हुशियार करना है
बड़ा मक्कार दुश्मन है, बदल कर भेस फिरता है
अब इन के सारे हर्बों को हमें बे-कार करना है

मो’मिन की है पहचान, सहाबा-अहल-ए-बैत
ईमान की है जान, सहाबा-अहल-ए-बैत
हमारे हैं इमाम, सहाबा-अहल-ए-बैत
हम इन के हैं ग़ुलाम, सहाबा-अहल-ए-बैत
हम जिन के वफ़ादार, सहाबा-अहल-ए-बैत
हम जिन के पहरेदार, सहाबा-अहल-ए-बैत

अली के घर से इज़्ज़त है, ग़ुलाम-ए-सय्यिदा हूँ मैं
ये दर रहमत ही रहमत है, ग़ुलाम-ए-सय्यिदा हूँ मैं
मेरी ये नौकरी है पंजतन के गीत गाऊंगा
मुझे दिल से अक़ीदत है, ग़ुलाम-ए-सय्यिदा हूँ मैं

सहाबा और अहल-ए-बैत दोनों से प्यार है
सहाबा और अहल-ए-बैत दोनों से प्यार है

ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का
ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का

सहाबा से जहाँ भर में मुसलमानी सलामत है
हमारी जितनी इज़्ज़त है, सहाबा की बदौलत है
पकड़ लो इन का दामन, आज भी इन की ज़रुरत है
इन्हें छोड़ा तो दुनिया में क़यामत ही क़यामत है

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

हुब्ब-ए-सहाबा, इश्क़-ए-अहल-ए-बैत
हुब्ब-ए-सहाबा, इश्क़-ए-अहल-ए-बैत

चलो सब मिल कर हम चूमें दर-ए-आल-ए-मुहम्मद को
के हर मुश्किल में हम देखें दर-ए-आल-ए-मुहम्मद को
नबी की आल ना होगी, तो दुनिया भी नहीं होगी
हमें लाज़िम है के थामें, दर-ए-आल-ए-मुहम्मद को

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का
ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का

ज़माने भर से हैं ऊँचे मुहम्मद के ये घर वाले
शुजाअत में बहुत आगे मुहम्मद के ये घर वाले
नहीं मिलती मिसाल ऐसी ! बहत्तर सर थे नेज़ों पर !
के देखो कर्बला वाले, मुहम्मद के ये घर वाले

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

सहाबा का नौकर हूँ, सिद्दीक़ का नौकर हूँ

वफ़ा के रास्ते से लौटना अच्छा नहीं होता
तअ’ल्लुक़ शातिमों से जोड़ना अच्छा नहीं होता
हमेशा ख़ुश-नसीबी उन के घर से रूठ जाती है
नबी के साथियों को छोड़ना अच्छा नहीं होता

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

आल-ए-मुहम्मद से, असहाब-ए-मुहम्मद से
प्यार है, प्यार है, प्यार है

अबू-बक्र-ओ-उमर-फ़ारूक़, उस्मान-ए-ग़नी, हैदर
अक़ीदा अहल-ए-सुन्नत का ये चारों जन्नती हक़ पर
उजागर ! अब समझ आया ! मुनाफ़िक़ भौंकते क्यूँ हैं
जहन्नम में जो जाएंगे वो मानेंगे भला क्यूँ कर

सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ
सहाबा और अहल-ए-बैत, मैं दोनों का नौकर हूँ

ग़ुलाम हूँ, ग़ुलाम हूँ, सहाबा-अहल-ए-बैत का

पहरा देते रहेंगे, आंच न आने देंगे

शायर:
अल्लामा निसार अली उजागर

नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी और हाफ़िज़ अहसन क़ादरी

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