Ya Allah Ya Rahman Naat Lyrics | रह़मान या रह़मान

Ya Allah Ya Rahman Naat Lyrics

 

Ya Allah Ya Rahman
Ya Allah Ya Rahman
Ya Allah Ya Rahman
Ya Allah………………….

Apne Sajdo Pe Yakee(N) De Hum Ko
Abre Rehmat Si Zamee(N) De Hum Ko
Karde Kuch Aisa Karam
Ke Badal Jaaye Phir Hum
Hum Tere Ho Ke Rahe
Tere Raste Pe Chale
Ya Allah Ya Rahman

Ya Allah Ya Rahman……………..

Teri Rehmat Ke Talabgaar Hai Hum
Ye Baja Hai Ke Gunahgaar Hai Hum
Ha Gunahgaar Hai Hum
Ha Siyahkaar Hai Hum
Tu Hai Rahmano Raheem
Tu Hai Gaffaro Kareem
Ya Allah Ya Rahman

Ya Allah Ya Rahman……………….

Baat Ban Ban Ke Bigad Jaati Hai
Saari Duniya Hume Thukrati Hai
Muntashir Kyu Hai Hum
Dagmagate Hai Qadam
Joshe Rehmat To Dikha
Aasoo Behte Hai Sada
Ya Allah Ya Rehman

Ya Allah Ya Rahman………………

 

Dilon Ko Yehi Zindagi Bakhshta Hai Naat Lyrics

Kaun Kehta Hai Aankhein Chura Kar Chale Naat Lyrics

रह़मान या रह़मान / Rahmaan Ya Rahmaan

रमज़ान, रमज़ान, रमज़ान, रमज़ान

रह़मान या रह़मान, तेरी ऊँची मौला शान
तूने हमको दिया रमज़ान, इस में उतरा क़ुरआन
है ये तेरा एहसान

तू सब ही का दाता है, तू सब ही को देता है
सदक़े में मुह़म्मद के तू झोलियाँ भरता है
मेरा है ये ईमान

रह़मान या रह़मान, तेरी ऊँची मौला शान
तूने हमको दिया रमज़ान, इस में उतरा क़ुरआन
है ये तेरा एहसान

ऐसा तू करम कर दे, पूरी दुआ कर दे
रमज़ां का महीना हो, मक्का हो मदीना हो
और निकले वहीँ पर जान

रह़मान या रह़मान, तेरी ऊँची मौला शान
तूने हमको दिया रमज़ान, इस में उतरा क़ुरआन
है ये तेरा एहसान

तू मालिक मैं बंदा, मैं अदना तूं आ’ला
तू तैयब मैं गंदा, मैं मंगता तू दाता
या रब्बी या रह़मान

रह़मान या रह़मान, तेरी ऊँची मौला शान
तूने हमको दिया रमज़ान, इस में उतरा क़ुरआन
है ये तेरा एहसान

तेरी ही ये सुबहें हैं, तेरी ही ये रातें हैं
ये चाँद करे मिदहत, सूरज भी करे हम्दें
जारी है तेरा फ़रमान

रह़मान या रह़मान, तेरी ऊँची मौला शान
तूने हमको दिया रमज़ान, इस में उतरा क़ुरआन
है ये तेरा एहसान

रमज़ान, रमज़ान, रमज़ान, रमज़ान

नातख्वां:
मुहम्मद हस्सान रज़ा क़ादरी

 

MARZ E ISHQ KA BIMAAR BHI KYA HOTA HE LYRICS

 

 

 

یا اللہ یا رحمان

یا اللہ یا رحمان
یا اللہ یا رحمان
یا اللہ یا رحمان
یا اللہ…

اپنے سجدوں پہ یقین دے ہم کو
ابر رحمت سی زمین دے ہم کو
کرے کچھ ایسا کرم
کہ بدل جائے پھر ہم
ہم تیرے ہو کے رہے
تیرے رستے پہ چلے
یا اللہ یا رحمان

یا اللہ یا رحمان…

تیری رحمت کے تلب گار ہیں ہم
یہ باجا ہے کہ گناہگار ہیں ہم
ہاں گناہگار ہیں ہم
ہاں سیاہکار ہیں ہم
تو ہے رحمانو رحیم
تو ہے غفارو کریم
یا اللہ یا رحمان

یا اللہ یا رحمان…

بات بن بن کے بگاڑ جاتی ہے
ساری دنیا ہمیں ٹھکراتی ہے
منتشر کیوں ہے ہم
ڈگمگاتے ہیں قدم
جوش رحمت تو دکھا
آنسو بہتے ہیں سدا
یا اللہ یا رحمان

یا اللہ یا رحمان…

 

 

Tu Shamme Risalat Hai Lyrics | Full Naat Lyrics In 3 Language

Koyi Kya Jane Jo Tum ho Khuda Hi Jaane Kya Tum Ho Lyrics

❖ मफ़हूम ए फरमाने मुस्तफा ﷺ ❖

हुज़ुर सरकारे दो-आलम ﷺ ने इर्शाद फरमाया के :

❝ जिस ने ईदुल फित्र की नमाज़ से पेहले (सदकातुल फित्र) अदा कर दिया तो वोह मकबुल सदका है। ❞

▓ सुनन अबु दाउद शरीफ, हदीष शरीफ#1609 सहीह

 

क्या जिस से ज़ाती रन्जिश हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी-?
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अक्सर ऐसा होता है कि इमाम और मुक़तदी के दरमियान कोई दुनियावी इख़्तिलाफ़ हो जाता है,जैसे आजकल के सियासी-समाजी- ख़ानदानों और बिरादरियों के इख़्तिलाफ़ और झगड़े-तो इन वुज़ूहात पर लोग उस इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं और कहते हैं कि जिस से दिल मिला हुआ न हो उसके पीछे नमाज़ नहीं होगी,यह उनकी ग़लत फहमी है, और वो लोग धोके में हैं,सही बात यह है कि जो इमाम शरई तौर पर सही हो उसके पीछे नमाज़ दुरुस्त है चाहे उससे आपका दुनियावी झगड़ा ही क्यूँ न चलता हो,बातचीत,दुआ सलाम सब बंद हो फिर भी आप उसके पीछे नमाज़ पढ़ सकते हैं,नमाज़ की दुरुस्तगी के लिए ज़रुरी नहीं है कि दुनियावी एतबार से मुक़तदी का दिल इमाम से मिला हुआ हो- हां तीन दिन से ज़्यादा एक मुसलमान के लिए दूसरे मुसलमान से बुराई रखना और मेल जोल न करना,शरीयत में सख़्त नापसन्दीदा है ह़दीस शरीफ में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि

मुसलमान के लिए ह़लाल नहीं कि अपने भाई को तीन दिन से ज़्यादा छोड़ रखे,जब उस से मुलाक़ात हो तो तीन मरतबा सलाम कर ले अगर उसने जवाब नहीं दिया तो इसका ग़ुनाह भी उसके ज़िम्मे है

📕📚अबू दाऊद शरीफ किताबुल अदब जिल्द 2 सफह 673

लेकिन इसका नमाज़ व इमामत से कोई तअल्लुक़ नहीं रन्जिश और बुराई में भी इमाम के पीछे नमाज़ हो जायेगी,और जो लोग ज़ाती रन्जिशों के बिना पर अपने नफ़्स और ज़ात की ख़ातिर इमामों के पीछे नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं ये खुदा के घरों को वीरान करने वाले और दीने इस्लाम को नुकसान पहुंचाने वाले हैं,इन्हें ख़ुदा ए तआला से डरना चाहिए,मरने के बाद की फिक्र करना चाहिए,कब्र की एक एक घड़ी और क़यामत का एक एक लम्हा बड़ा भारी पडेगा- आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि

जो लोग बराहे नफ़्सानियत इमाम के पीछे नमाज़ न पढ़ें और जमाअ़त होती रहे और शामिल न हों वो शख्स गुनहगार हैं

📕📚फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 3 सफह 221
📕📚ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह सफह 41

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