ALLAH KI SAR TA BA QADAM SHAN HAI YE NAAT LYRICS

ALLAH KI SAR TA BA QADAM SHAN HAI YE NAAT LYRICS

Allah Ki Sar Ta Ba Qadam Shan Hai Ye
Insan Nahi Insan Wo Insan Hai Ye
Quran To Iman Bata Ta Hai Inhen
Iman Ye Kahta Hai Mery Jaan Hai Ye

Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

Batil Ne Jab Jab Badle Hain Tewar
Aaya Hai Tab Tab Mery Zuban Per
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

Pyare Nabi Ne Jeena Sikhaya
Ba Khuda Hum Ko Insan Banaya
Pahnaya Aqlaq O Iman Ka Zewar
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

Khud Bhi Jiyo Ji Jine Do Sabhi Ko
Iza Na Pahonchao Dil Se Kisi Ko
Islam Ka Yahi Darse Munawwar
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

Siddiq O Farooq O Osman O Hyder
Ashab O Azwaj O Shabbir O Shabbar
In Sab Ka Ahsan Hai Hum Sab Ke Uoper
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

Baqdadi Maiqana Chalta Rahe Ga
Ajmeri Piyala Jhalakta Rahega
Ghousulwara Denge Baqdadi Sagar
Nara E Takbeer Allahu Akbar
Nara E Takbeer Allahu Akbar

सर ता ब क़दम है तने सुल्त़ाने ज़मन फूल

सर ता ब क़दम है तने सुल्त़ाने ज़मन फूल
लब फूल दहन फूल ज़क़न फूल बदन फूल

सदक़े में तेरे बाग़ तो क्या लाए हैं “बन” फूल
इस ग़ुन्चए दिल को भी तो ईमा हो कि बन फूल

तिन्का भी हमारे तो हिलाए नहीं हिलता
तुम चाहो तो हो जाए अभी कोहे मिह़न फूल

वल्लाह जो मिल जाए मेरे गुल का पसीना
मांगे न कभी इत्र न फिर चाहे दुल्हन फूल

दिल बस्ता व ख़ूं गश्ता न ख़ुश्बू न लत़ाफ़त
क्यूं ग़ुन्चा कहूं है मेरे आक़ा का दहन फूल

शब याद थी किन दांतों की शबनम कि दमे सुब्ह़
शोख़ाने बहारी के जड़ाऊ है करन फूल

दन्दानो लबो ज़ुल्फ़ो रुख़े शह के फ़िदाई
हैं दुर्रे अ़दन, ला’ले यमन, मुश्के ख़ुतन फूल

बू हो के निहां हो गए ताबे रुख़े शह में
लो बन गए हैं अब तो ह़सीनों का दहन फूल

हों बारे गुनह से न ख़जिल दोशे अ़ज़ीज़ां
लिल्लाह मेरी ना’श कर ऐ जाने चमन फूल

दिल अपना भी शैदाई है उस नाख़ुने पा का
इतना भी महे नौ पे न ऐ चर्ख़े कुहन ! फूल

दिल खोल के ख़ूं रो ले ग़मे अ़ारिज़े शह में
निकले तो कहीं हसरते ख़ूं नाबह शदन फूल

क्या ग़ाज़ा मला गर्दे मदीना का जो है आज
निखरे हुए जोबन में क़ियामत की फबन फूल

गरमी येह क़ियामत है कि कांटे हैं ज़बां पर
बुलबुल को भी ऐ साक़िये सहबा व लबन फूल

है कौन कि गिर्या करे या फ़ातिह़ा को आए
बेकस के उठाए तेरी रह़मत के भरन फूल

दिल ग़म तुझे घेरे हैं ख़ुदा तुझ को वोह चमकाए
सूरज तेरे ख़िरमन को बने तेरी किरन फूल

क्या बात रज़ा उस चमनिस्ताने करम की
ज़हरा है कली जिस में ह़ुसैन और ह़सन फूल

سر تا بقدم ہے تن سلطان زمن پھول

سر تا بقدم ہے تن سلطان زمن پھول

لب پھول، دہن پھول، ذقن پھول، بدن پھول

صدقے میں ترے باغ تو کیا لائے ہیں بن پھول

اس غنچۂ دل کو بھی تو ایما ہو کہ بن پھول

تنکا بھی ہمارے تو ہلائے نہیں ہلتا

تم چاہو تو ہو جائے ابھی کوہِ محن پھول

واللہ جو مل جاے مرے گل کا پسینہ

مانگے نہ کبھی عطر نہ پھر چاہے دلہن پھول

دل بستہ و خوں گشتہ نہ خوشبو نہ لطافت

کیوں غنچہ کہوں ہے مرے آقا کا دہن پھول

شب یاد تھی کن دانتوں کی شبنم کہ دمِ صبح

شوخانِ بہاری کے جڑاﺅ ہیں کرن پھول

دندان و لب و زلف و رُخِ شہ کے فدائی

ہیں دُرِّ عدن، لعلِ یمن، مشکِ خُتن پھول

بو ہو کہ نہاں ہو گئے تابِ رُخِ شہ میں

لو بن گئے ہیں اب تو حسینوں کا دہن پھول

ہوں بارِ گنہ سے نہ خجل دوشِ عزیزاں

للہ مری نعش کر اے جان چمن پھول

دل اپنا بھی شیدائی ہے اس ناخنِ پا کا

اتنا بھی مہِ نو پہ نہ اے چرخِ کہن پھول

دل کھول کے خون رو لے غمِ عارضِ شہ میں

نکلے تو کہیں حسرتِ خوں نا بہ شدن پھول

کیا غازہ مَلا گردِ مدینہ کا جو ہے آج

نکھرے ہوئے جوبن میں قیامت کی پھبن پھول

گرمی یہ قیامت ہے کہ کانٹے ہیں زباں پر

بلبل کو بھی اے ساقی صہبا و لبن پھول

ہے کون کہ گریہ کرے یا فاتحہ کو آئے

بیکس کے اٹھائے ترے رحمت کے بھرن پھول

دل غم تجھے گھیرے ہیں خدا تجھ کو وہ چمکائے

سورج ترے خرمن کو بنے تیری کرن پھول

کیا بات رضا اس چمنستانِ کرم کی

زہرا ہے کلی جس میں حسین اور حسن پھول

 

 

👑 بِسْمِ ﷲِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ 👑
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✍🏻🍃हज़रत दाऊद ताई रदियल्लाहु तआला अन्हू कहते हैं की एक बार मुझे रमज़ान की रात में नींद का गल्बा हुआ ख्वाब में मुझे जन्नत दिखाई दी। मैंने अपने आप को जन्नत में याकूत और मोतियों की एक नहर के किनारे बैठा हुआ देखा और वहां जन्नत की हूरें नज़र पड़ीं जिनके चेहरे सूरज से ज़्यादा चमक रहे थे। मैंने कहा : لا الہ الا اللہ محمد رسول اللہ उसके जवाब में उन्होंने भी कलमा दोहराया और कहा कि हम खुदा की तारीफ़ करने वालों, रोज़ादारों और रमज़ान में रुकुअ और सुजूद करने वालों के लिए हैं। (तोहफ़ा तुल वाई’ज़ीन)

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क्या आप जानतें हैं, सफह 471, फारुकिया बुक डिपो देहली📚
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🌌माहे रमजान शबे कद्र पोस्ट – 11

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▶एक हैरत अंगेज़ रिवायत⤵

▶हज़रत कअब अल अहबार रज़ियल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते हैं कि ⤵

▶सिदरतुल मुन्तहा सातवें आसमान पर है

▪उसके साथ मुत्तसिल ही जन्नत है और यह दुनिया व आख़िरत के दरमियान हद्दे फ़ासिल है

▪उसके ऊपर जन्नत है
▪उसकी शाखें कुर्सी के नीचे हैं उसमें बे शुमार फ़रिश्ते अल्लाह की इबादत में मशगूल हैं

▪उनकी तादाद अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता
▪उसकी शाख़ों पर बे शुमार फ़रिश्ते हैं
▪उसके बीच में हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम का मुक़ाम है

▪अल्लाह तआला जिब्रईल अलैहिस्सलाम को हुक्म देता है कि वह हर लैलतुल क़द्र को उन फ़रिश्तों के साथ उतरे जो सिदरतुल मुन्तहा में रह रहे हैं
▪उन फ़रिश्तों को अहले ईमान के लिये राफ़त व रहमत अता की जाती है

▪यह तमाम फ़रिश्ते जिब्रईल अलैहिस्सलाम के साथ सूरज गुरूब होने के वक़्त ज़मीन पर उतरते हैं

▪उस रात ज़मीन के हर गोशे में कोई न कोई फ़रिश्ता होता है
▪वह या तो अल्लाह की बारगाह में सज्दा रेज़ होता है या अहले ईमान के लिये दुआ में मशगूल होता है

▶मगर जिस जगह गन्दगी फेंकी जाती है या जिस घर में
▪नशे वाला हो या नशे की चीज़ हो और नसब किया गया हो या जिसमें घन्टी रखी हुई हो या कोई और मुजस्समा हो या वह कूड़ा करकट डालने की जगह हो वगैरा वगैरा जगह

▪वहाँ रहमत के फ़रिश्ते दाखिल नहीं होते । यह फ़रिश्ते तमाम रात अहले ईमान मर्द और औरतों के लिये दुआ करते रहते है

▪हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम भी तमाम मोमिनीन से मुसाफ़हा करते हैं

▪उसकी अलामत या निशानी यह है कि जिस मोमिन से आप मुसाफ़हा करते हैं उसमें उसके जिस्म की रूएं खड़ी हो जाती हैं , उसका दिल नर्म हो जाता है और उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं

▶हज़रत कअब अल अहबाब रज़ियल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते हैं⤵

▶जो शख्स लैलतुल क़द्र में तीन दफ़ा ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ता है

▪पहली दफ़ा पढ़ने से अल्लाह तआला उसके तमाम गुनाह मुआफ़ कर देता है

▪दूसरी दफ़ा पढ़ने से उसे नारे जहन्नम से आज़ादी का परवाना अता फ़रमाता है

▪और तीसरी दफ़ा पढ़ने से उसे जन्नत में दाख़िल फ़रमा देता है

▶रावी ने हज़रत कअब अल अहबार रज़ियल्लाहो अन्हो से पूछा ऐ अबू इस्हाक़ ⤵

▶जो शख्स सच्चे दिल से कलमा पढ़ेगा उसे यह इनाम मिलेगा ?
उन्होंने फ़रमाया :

▪लैलतुल क़द्र में इस कलमे को वही पढ़ता है जिस का दिल सच्चा हो क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है यह कलमा उस रात काफ़िर और मुनाफ़िक़ पर बड़ा भारी पड़ता है

▪जैसे किसी ने उसकी कमर पर पहाड़ रख दिया हो सुबह तुलूअ होने तक फ़रिश्ते इसी तरह ज़मीन पर रहते हैं

▪तुलूए फज्र के बाद सबसे पहले जिब्रईल अलैहिस्सलाम ऊपर चढ़ते हैं , सूरज के क़रीब जाकर अपने परों को फैला देते हैं

▪ खुसूसन अपने उन दो सब्ज़ परों को जो वह सिर्फ़ उसी वक्त फैलाते हैं

▪ इसी वजह से उस वक़्त सूरज की रोशनी फीकी पड़ जाती है , फिर वह एक एक फ़रिश्ते को बुलाते हैं और वह सबके सब फ़रिश्ते ऊपर चढ़ जाते हैं , उन फ़रिश्तों के नूर और जिब्रईल अलैहिस्सलाम के दोनों परों के नूर से सूरज की रोशनी फीकी पड़ जाती है हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम और उनके तमाम फ़रिश्ते उस दिन ज़मीन व आसमान के दरमियान अहले ईमान के लिये दुआ करते रहते हैं , यह उनके लिये भी दुआ करते हैं जिन्होंने रमज़ान के रोज़े ईमानदारी और साफ़ निय्यत के साथ रखे और यह उस शख्स की लम्बी उम्र की भी दुआ करते हैं जिस शख्स के दिल में यह ख़याल आए कि अगर वह आइन्दा साल तक ज़िन्दा रहा तो रमज़ान के रोज़े रखेगा
📚तफ़सीर इब्ने कसीर , जि .4, स .919 , उर्दू

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🌌माहे रमजान शबे कद्र पोस्ट – 12

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🌌शबे क़द्र कब ?

▶हज़रत उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं कि
▶रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : ⤵

▶यह रात रमज़ान की आख़री दस रातों में होती है जो शख्स अल्लाह तआला की खुश्नुदी के लिये उसमें क़याम करता है उसके अगले पिछले गुनाह मुआफ़ कर दिये जाते हैं यह ताक़ रात है , सत्ताइसवीं ,
उनतीसवीं ,
पचीसवीं ,
तैइसवीं
या इक्कीसवीं है

▶रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं : ⤵

▶इस रात की निशानी यह है कि यह रात बिल्कुल साफ़ और रोशन होती है ऐसे मालूम होता है कि
उसमें चाँद चमक रहा हो ,
उसमें सर्दी होती है न गर्मी ,
सुबह तक उस रात को कोई सितारा नहीं टुटता ,
उसकी एक निशानी यह भी है कि जब सुबह सूरज तुलूअहोता है तो उसकी शुआएं तेज़ नहीं होती बल्कि चौदहवीं के चाँद की तरह होता है , उस दिन सूरज के साथ शैतान नहीं निकलता
📚मुस्नद इमाम अहमद ,जि .5 , स . 324

▶हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहो अन्हुमा बयान करते हैं कि
▶रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया ⤵

▶जो शख्स शबे क़द्र को ढूँढना चाहता है वह उसको आख़री अशरे में तलाश करे
📚मुस्लिम , जि .1 ,स. 369 )

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🌌माहे रमजान शबे कद्र पोस्ट – 13

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🌌शबे क़द्र कौनसी रात है ?

▶ हुजूर गौसे आज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुल्लाहे तआला अलैह फ़रमाते हैं :⤵

▶शबे क़द्र को रमज़ान शरीफ़ के आख़री अशरे में तलाश किया जाए ( यानी बीस तारीख़ से आखरी तारीख़ तक ) इन तारीखों में ज़्यादा मशहूर सत्ताइसवीं शब है

🌌इमाम मालिक के नज़दीक किसी तारीख़ का तअय्युन वुसूक ( एतिमाद ) के साथ नहीं किया जा सकता , आख़री अशरे की सब रातें बराबर हैं

🌌इमाम शाफ़ई के नज़दीक इक्कीसवी रात ज़्यादा क़ाबिले एतिमाद है एक क़ौल है कि
उनतीसवीं रात , यही उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहो तआला अन्हुमा का मसलक था

🌌हज़रत अबू मरवह तैइसवीं रात के क़ाइल थे हज़रत अबू ज़र और हज़रत हसन रज़ियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि पचीसवीं रात है

🌌हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहो तआला अन्हो ने

▶रसूलुल्लाह ﷺ से रिवायत की है कि

▶वह चौबीसवीं रात है

🌌हज़रत इब्ने अब्बास
🌌हज़रत उबैइ बिन कअब रज़ियल्लाहो तआला अन्हुमा ने फ़रमाया

कि वह सत्ताइसवीं रात है
📚गुनयतुत तालेबीन , स . 361 उर्दू

▪नेस्ट पोस्ट कंटिन्यू इन्शा अल्लाह
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