Shab e Barat 2024

Shab e Barat 2024

 

शबे बरात क्या है
शबे बराअत क्या है, हदीस शरीफ़👇

मौला अली रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से मरवी है के हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के

“जब शाबान की 15,वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदा ए तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है के है कोई मगफिरत का तलबगार के मैं उसे बख्श दूं,
है कोई रोज़ी मांगने वाला के मैं उसे रोज़ी दूं,
है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला के मैं उसे रिहाई दूं,
रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक के फ़ज्र तुलु हो जाती है,
📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398)
📚 मिश्कात,सफह 115)
📚 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52)

हदीस शरीफ़👇

उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं के एक रात हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,
जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया के आपका सरे मुबारक आसमान की तरफ था,
जब हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया के ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था के अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की के या रसूलल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा के शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,
तो आप फरमाते हैं के आज शाबान की 15,वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है,
📚 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403)
📚 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389)
📚 मिश्कात,सफह 114)

सोचिये के जब हमारे नबी सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर हम उम्मती क्यों नहीं जा सकते,
इस हदीस शरीफ़ से कब्रिस्तान और बुज़ुर्गों के मज़ारों पर जाना साबित हुआ,

हदीस शरीफ़👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक के कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,
सहाबी ए रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं के इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं के जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं,
📚 निसाई,जिल्द 3,सफह 269)

हदीस शरीफ़👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के

बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाए शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के,
📚इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390)

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

बाज़ रिवायतों में मुशरिक,
जादूगर,
काहिन,
ज़िनाकार और शराबी भी आया है के इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये के तौबा कर लें, और गुनाह छोड़ दें
📗बारह माह के फज़ाइल,सफह 406)

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

जो इस रात में 2 रकअत नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा,
📚 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132)

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं के

एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है के अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा,
📚 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95)

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

अगर इस रात पानी में बैर के पेड़ की 7 पत्तीयों को जोश देकर उससे ग़ुस्ल करे तो इन्शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा,
📗 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77)

नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें के नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहें वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब के फर्ज़ ज़िम्मा पर बाक़ी ना हो,
लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए-उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो शबे बराअत मुहर्रम शरीफ आशूरा वग़ैरह के रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,
जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हों उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह फरमाते हैं के,

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,
नियत यूं करें👇
नियत की मेंने दो रकअत नमाज़ क़ज़ा जो मेरे ज़िम्मा बाक़ी हैं उनमें से पहली फ़र्ज़ फ़ज्र की अल्लाह तआला के लिए मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बांध लें यूंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे, क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर यूंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकअत पर क़ाअदा करने के बाद ज़ौहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकअत के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ाअदे में अत्तहीयात के बाद दुरूदे इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यिदिना मुहम्मदिंव व अला आलिही कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकअत में सूरह मिलाइ जाएगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है,
📚 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62) ये रियायत है क़ज़ा ए उमरी नमाज़ पढ़ने वाले के लिए,

हदीस शरीफ़ 👇

उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं के हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द थे,
📚 बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682)

फुक़्हा फ़रमाते हैं👇

शबे बराअत में हलवा पकाकर ईसाले सवाब करना जाइज़ और बेहतर है,
📗 जन्नती ज़ेवर,सफह 123)

मगर अवाम में जो ये मशहूर है के इस दिन हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की फातिहा करते हैं और इसकी दलील ये देते हैं के हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का जंगे उहद में दन्दाने मुबारक शहीद होने की खबर सुनकर हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने अपने सारे दांत तोड़ डाले थे ये रिवायत सही नहीं है बल्के शबे बराअत और हज़रत उवैस क़रनी रज़िअल्लाहु तआला अन्ह में कोई कनेक्शन नहीं है, हां रही बात ईसाले सवाब की तो बिलकुल हज़रत उवैस करनी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का नाम भी नज़्र में शामिल किया जाए इसमें कोई हर्ज नहीं मगर लोगों की इस्लाह की जाए के बे अस्ल बातों से परहेज़ करें, युंही फातिहा व नज़रों नियाज़ हर उस चीज़ पर कर सकते हैं जिसका खाना जाइज़ है उसके लिए किसी खास खाने की क़ैद लगाना भी दुरुस्त नहीं है लिहाज़ा जिसके जो दिल में आये पकाकर ईसाले सवाब करे,
फातिहा मर्द व औरत में कोई भी दे सकता है बेहतर है के जो सही क़ुर्आन पढ़ सकता हो वही फातिहा दे, तरीक़ा ये है,👇

फातिहा ए रज़विया👇

दुरुदे ग़ौसिया 7 बार
सूरह फातिहा 1 बार
आयतल कुर्सी 1 बार
सूरह इख्लास 7 बार
फिर दुरुदे ग़ौसिया 3 बार

अब हाथ उठाकर बिस्मिल्लाह शरीफ और दुरुद शरीफ पढ़ें उसके बाद इस तरह बख्शें और युं कहें के

या रब्बे करीम जो कुछ भी मैंने ज़िक्रो अज़कार दुरूदो तिलावत की (या जो कुछ भी नज़रों नियाज़ पेश है) इनमे जो भी कमियां रह गई हों उन्हें अपने हबीब के सदक़े में माफ फरमा कर क़ुबूल फरमा, मौला इन तमाम पर अपने करम के हिसाब से अज्रो सवाब अता फरमा, इस सवाब को सबसे पहले मेरे आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहू तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचा, उनके सदक़े व तुफैल से तमाम अम्बिया ए किराम, सहाबा ए किराम, अहले बैते किराम, औलिया ए किराम, शोहदा ए किराम, सालेहीने किराम खुसूसन हुज़ूर सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा, इन तमाम के सदक़े तुफैल से इसका सवाब तमाम सलासिल के पीराने इज़ाम खुसूसन हिंदल वली हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा, बिलखुसूस सिलसिला आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़वियह नूरिया चिश्तिया साबरीया सोहरवर्दीया नक़्शबन्दीया के जितने भी मशायखे किराम हैं खुसूसन आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा, मौला तमाम के सदक़े व तुफैल से इन तमाम का सवाब खुसूसन …..जिसका भी नाम लेना चाहें लें…… को पहुंचाकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक व क़यामत तक जितने भी मोमेनीन व मोमिनात गुज़र चुके या गुज़रते जायेंगे उन तमाम की रूहे पाक को पहुंचा फिर अपनी जायज़ दुआयें करके दुरुदे पाक और कल्मा शरीफ पढ़कर चेहरे पर हाथ फेरें,
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शबे क़द्र के वज़ाइफ़
📿शबे क़द्र के वज़ाइफ़ 📿
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#पेशकशयूट्यूबरज़वीचैनललोहरदगा
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📿( 1 ) अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी बार बार पढ़ें ।

📿( 2 ) ला इलाहा इलल्लाह खूब कसरत से पढ़ें कि यह अफ़ज़ल ज़िक्र है ।

📿( 3 ) कम अज़ कम दस आयतों की तिलावत शबे क़द्र की निय्यत से करें ।

📿4 ) कुरआने मजीद की तिलावत में मसरूफ़ रहें कि तिलावते कुरआन बहुत ही अहम वज़ीफ़ा और अफ़ज़ल व बा बरकत ज़िक्र ।

📿( 5 ) हुजूर अलैहिस्सलाम पर अदब व एहतिराम के साथ | दुरूद पढ़ें कियह सआदत और खुशनसीबी की पहचान है ।

📿( 6 ) सुब्हानल्लाहि वबि हम्दिहि सुब्हानल्लाहिल अज़ीम | इसके पढ़ने वाले के लिये जन्नत में पोढ़ा लगा दिया जाता है ।

📿( 7 ) सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इलल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीम ।

📿( 8 ) अल्लाहुम्मग़ फ़िर लीवरहम्नी वहदिनिवर जुक़नीव आफ़िनी ।

📿( 9 ) अस्तग़फ़िरुल्लाहा रब्बियल अज़ीम ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल कय्यूम मिन कुल्लि ज़म्बिंव व अतूबुइलैहिला हौला वला कुव्वत इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीम । तीन बार ।

📿( 10 ) ला इलाहा इलल्लाहु वह दहु लाशरी का लहू , लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर । दस बार फिर हाथों को उठाकर पूरी तवज्जोह के साथ दुआ मांगे अपने I लिये , वालिदैन के लिये , दोस्त व अहबाब , भाई बहन अहलो अयाल और तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिये , अपनी मुरादें मांगें , इन्शाअल्लाह आपकी दुआ कुबूल होगी ।

✨इसलिये कि जिन वक़्तों में अल्लाह तआला अपने बन्दों की दुआ कुबूल फ़रमाता है उनमें शबे क़दर भी है । और अल्लाह तआला ने वादा फ़रमाया है जो बन्दा उससे दुआ करेगा उसकी । दुआ ज़रूर कुबूल फ़रमाएगा बशर्ते कि बन्दा अपने रब की फ़रमाँ बरदारी करे , उसका हुक्म माने और उस पर ईमान रखे जैसाकि सूरए बक़रह , आयत नं . 186 में इरशाद हुआ ।

📍नोट : अगर आपके ज़िम्मे कज़ा ए उमरी नमाजें हैं तो पहले उन्हें अदा करें इनका अदा करना वाजिब इनके अदा किए बगैर आप जितने भी नफ्ल पढ़नगें वो कुबूल नहीं है ।

📕 माहे रमज़ान आया, सफा 37/38

 

شبِ برأت کی ابتداء کب اور کہاں سے ہوئی
شب برأت کی ابتداء حضرت اویس قرنی رضی اللہ تعالیٰ عنہ کی یاد میں منائی جاتی ہے” سراسر جھوٹ اور جہالت و نادانی ہے،

السلام علیکم ورحمتہ للہ وبرکاتہ
شب برأت کی ابتداء کہاں سے ہوئی کچھ لوگ کہتے ہیں کہ حضرت اویس قرنی کی یاد ہوتی اصل کیا ہے،
متفق علیہ قول نقل فرمائیں،
🌹سائل🌹مکی خان🌹

وعلیکم السلام و رحمۃ اللہ وبرکاتہ

📝الجواب بعون الملک الوھاب اللھم ہدایتہ الحق والصواب” یہ کہنا کہ” شب برات کی ابتداء حضرت اویس قرنی رضی اللہ تعالیٰ عنہ کی یاد میں منائی جاتی ہے” سراسر جھوٹ اور جہالت و نادانی ہے،

📃شب برات کی فضیلت و اہمیت ، شب برات میں عبادت، شب برات میں قبرستان جاکر مردوں کے لئے بخشش و مغفرت کی دعا کرنا، شب برات میں مردوں کے لئے ایصال ثواب فاتحہ خوانی یہ سب قرآن کریم و حدیث شریف اور صحابہ کرام و بزرگان دین کے اقوال سے ثابت ہے،

🏷جیسا کہ قرآن کریم میں اللہ تعالیٰ کا ارشاد پاک ہے کہ” وَذَکِّرھُم بِاٰیّٰمِ اللّٰہ” یعنی” اور لوگوں کو اللہ کے دنوں کی یاد دلاتے رہو،

📄حضرت امام غزالی رحمۃ اللہ تعالیٰ علیہ نے” احیاء العلوم ” میں ایسے دنوں اور ایسی راتیں جو قرآن کی بولی میں” ایام اللہ” یعنی ” خدا کے دن” ہیں اور جن کا ایک ایک لمحہ عبادت و طاعت کے لئے گوہر نایاب سے بھی زیادہ قیمتی ہے” ان کی ایک طویل فہرست” فضیلت والی پندرہ راتیں اور فضیلت والے انیس دن تحریر کی ہے” جن میں ایک شب برات ( شعبان المعظم کی پندرہویں رات ) اور پندرہواں دن بھی ہے،

📜قرآن مجید میں اللہ تعالیٰ نے اس مبارک رات کا ذکر اس طرح فرمایا ہے کہ” اس رات میں ہمارے حکم سے ہر حکمت والا کام تقسیم کر دیا جاتا ہے،

( سورہ دخان )

🏞یعنی” شب برات میں بندوں کی روزیاں ، ان کی اموات و پیدائش ، لڑائیاں ، زلزلے، حادثات ، غرض سال بھر میں ہونے والے تمام واقعات کے احکام الگ الگ تقسیم کر دئے جاتے ہیں – اور ہر کام کے؛ فرشتوں کو ان کا کام سونپ دیا جاتا ہے ، جس کی وہ سال بھر تک تعمیل کرتے رہتے ہیں،

( صاوی شریف )

☄حضور صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم نے فرمایا کہ” اس رات میں اللہ تعالیٰ تمام مسلمانوں کو بخش دیتا ہے مگر نجومی ، جادوگر، شرابی، زناکار، ماں باپ کا نافرمان، سود خوار ، حقوق العباد میں گر فتار، مسلمانوں میں پھوٹ ڈالنے والا ، کسی مسلمان سے کینہ رکھنے والا، بلا کسی شرعی وجہ کے اپنی رشتہ داری کو کاٹ دینے والا، اس رات میں نہیں بخشا جاتا،
( صاوی شریف )

💧لیکن، ہاں، اگر اس رات کے آنے سے پہلے اپنے ان برے کرتوتوں سے توبہ کر لیں تو ان لوگوں کی بھی اس رات میں مغفرت ہو جائے گی” حضور صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم نے فرمایا کہ” اس رات میں اللہ تعالیٰ سورج ڈوبنے کے وقت سے آسمان دنیا پر نزول اجلال فرما کر ارشاد فرماتا ہے کہ ، کیا ہے کوئی بخشش مانگنے والا ؟ کہ میں اس کو بخش دوں ! کیا ہے کوئی روزی مانگنے والا؟ کہ میں اس کو روزی عطا کروں ! کیا ہے کوئی بلا میں مبتلا ؟ کہ اس کو میں عافیت دوں! اسی قسم کی ندائیں ہوتی رہتی ہیں- یہاں تک کہ فجر طلوع ہو جاتی ہے،
( ابن ماجہ شریف )

🏷حضور صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم نے فرمایا کہ” جو اس رات میں ایک سو رکعت نماز نفل پڑھے گا اللہ تعالیٰ اس کے پاس ایک سو فرشتوں کو بھیجے گا” تیس فرشتے اس کو جنت کی بشارت دیں گے ، تیس فرشتے اس کو جہنم سے بے خوفی کی خوشخبری سنائیں گے، تیس فرشتے دنیاوی آفتوں کو اس سے ٹالتے رہیں گے ” اور دس فرشتے اس کو شیطان کے مکرو فریب سے بچاتے رہیں گے،

( صاوی شریف )

🕯ام المومنین حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ تعالیٰ عنہا فرماتی ہیں کہ” میں نے دیکھا کہ حضور صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم بقیع الغرقد ( قبرستان مدینہ منورہ ) میں تشریف لے گئے اور مسلمان مردوں، عورتوں اور شہیدوں کے لئے دعا فرمائی،
( ما ثبت من السنتہ )

💎اولیاء اللہ کے معمولات میں سے ہے کہ بعد نماز مغرب چھ رکعتیں پڑھیں اور ہر دو رکعت پر سلام پھیریں اور ہر دو رکعت کے بعد ” سورہ یٰسین” ایک مرتبہ یا ” قل ھو اللہ ” ٢١ مرتبہ پڑھیں” پہلی بار درازی عمر کے لئے پڑھیں ، دوسری بار رزق کی ترقی کے لئے پڑھیں ،اور تیسری بار دفع بلا کے لئے” پھر دعاء نصف شعبان المعظم پڑھے” حضرت ابن عباس رضی اللہ تعالیٰ عنہما سے روایت ہے کہ” جب عید یا جمعہ یا عاشورہ کا دن یا شب برأت ہوتی ہے تو اموات کی روحیں آکر اپنے گھروں کے دروازوں پر کھڑی ہو جاتی ہیں اور کہتی ہیں کہ ہے کوئی ؟ کہ ہمیں یاد کرے ! ہے کوئی ؟ کہ ہم پر ترس کھائے !ہے کوئی ؟ کہ ہماری غربت کو یاد دلائے ! اسی طرح ” کنزالعباد ” میں بھی ” کتاب الروضتہ” امام زند ویستی سے منقول ہے،
( فتاویٰ رضویہ جلد چہارم صفحہ ٢٣٣ )

📃معلوم ہوا کہ اس رات میں جو ایصال ثواب کیا جاتا ہے وہ حضرت اویس قرنی رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے شروع نہیں بلکہ بہت پہلے سے اس کی ترغیب صحابی رسول حضرت ابن عباس رضی اللہ تعالیٰ عنہما سے موجود ہے اور شب برأت کے معمولات حضور صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم کے ارشاد پاک کے مطابق ہیں،

🌹؛واللـه تعالی اعلم؛🌹
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✍ازقـــــلم؛ حضــرت علامہ مفتـی
محمـد جعفـر علـی صدیقی رضوی
کرلوسکر واڑی سانگلی مہاراشٹر

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شبِ برأت قرآن و حدیث کی روشنی میں
شبِ برأت قرآن و حدیث کی روشنی میں

حٰمٓۚۛ (1) وَ الْكِتٰبِ الْمُبِیْنِۙۛ (2) اِنَّاۤ اَنْزَلْنٰهُ فِیْ لَیْلَةٍ مُّبٰرَكَةٍ اِنَّا كُنَّا مُنْذِرِیْنَ (3) فِیْهَا یُفْرَقُ كُلُّ اَمْرٍ حَكِیْمٍۙ (4) اَمْرًا مِّنْ عِنْدِنَاؕ-اِنَّا كُنَّا مُرْسِلِیْنَۚ (5)
ترجمہ : قسم اس روشن کتاب کی ۔ بیشک ہم نے اُسے برکت والی رات میں اُتارا بیشک ہم ڈر سنانے والے ہیں اس میں بانٹ دیا جاتا ہے ہر حکمت والا کام۔ہمارے پاس کے حکم سے بیشک ہم بھیجنے والے ہیں۔( پارہ 25، سورۃ دخان، آیت 1 تا 5)

 

برکت والی رات کے بارے میں ایک قول یہ بھی ہے کہ اس سے مراد شبِ برأت ہے ۔ فضائل شبِ برأت قرآن و حدیث کی روشنی میں

قرآن کریم میں شب برأت کا ذکر : اس رات کے بے شمار فضائل ہیں ، یہ رات برکتوں والی رات ہے ، رحمتوں والی رات ہے اور نعمتوں والی رات ہے ، سورۂ دخان کی ابتدائی آیات میں اس کی فضیلت بیان کی گئی ہے : حٰمٓ ۔ وَالْکِتَابِ الْمُبِینِ ۔ إِنَّا أَنْزَلْنٰہُ فِی لَیْلَۃٍ مُبَارَکَۃٍ إِنَّا کُنَّا مُنْذِرِینَ ۔ فِیہَا یُفْرَقُ کُلُّ أَمْرٍ حَکِیم ۔ ترجمہ : حٰمٓ قسم ہے واضح کتاب کی ! بے شک ہم نے اس (قرآن )کوایک برکت والی رات میں نازل کیا ، ہم ہی ڈرانے والے ہیں ، اس (رات)میں ہرحکمت والے کام کا فیصلہ کیا جاتاہے ۔
ان آیات مبارکہ میں مذکور مبارک رات سے کونسی رات مراد ہے، اس سلسلہ میں علماء امت کی ایک جماعت کے مطابق اس سے مراد پندرہ شعبان کی شب ’’شب براء ت‘‘ہے۔ جیساکہ علامہ شیخ احمد بن محمد صاوی رحمۃ اللہ علیہ (متوفی 1247؁ھ) نے ’مبارک رات‘’ سے شعبان کی پندرھویں رات ‘مراد ہونے سے متعلق لکھاہے : ھو قول عکرمۃ و طائفۃ ووجہ بامور منھا ان لیلۃ النصف من شعبان لھا اربعۃ اسماء: اللیلۃ المبارکۃ و لیلۃ البراء ۃ و لیلۃ الرحمۃ ولیلۃ الصک ۔
ترجمہ : حضرت عکرمہ اورمفسرین کی ایک جماعت کا بیان ہے کہ’’ برکت والی رات ‘‘ سے مراد شعبان کی پندرھویں شب ہے‘اور یہ توجیہ چند امور کی وجہ سے قابل قبول ہے، ان میں سے ایک یہ ہے کہ پندرھویں شعبان کے چار نام ہیں: (1) مبارک رات (2) براء ت والی رات (3) رحمت والی رات (4) انعام والی رات ۔ (حاشیۃ الصاوی علی الجلالین، ج4 ص57۔التفسیر الکبیرللرازی:سورۃ الدخان :1)

اس مبارک رات سے متعلق قرآن شریف میں آیا ہے کہ : فِیہَا یُفْرَقُ کُلُّ أَمْرٍ حَکِیمٍ۔
ترجمہ : اس میں ہر حکمت والے کام کا فیصلہ کیا جاتا ہے ۔ (سورۂ دخان :4)

اس آیت کریمہ سے معلوم ہوتا ہے کہ وہ برکت والی رات فیصلوں کی رات ہے، اسی طرح پندرہ شعبان کی شب سے متعلق بھی احادیث شریفہ میں یہی تفصیل وارد ہے کہ اس میں سال بھر ہونے والے مختلف امور اور معاملات کے فیصلے کئے جاتے ہیں، اس جہت سے پندرہ شعبان سے متعلق احادیث شریفہ ’’لیلۃ مبارکۃ‘‘ (برکت والی رات) کی تفصیل اور تفسیر قرار پاتی ہیں، جیسا کہ علامہ آلوسی رحمۃ اللہ علیہ حضرت سیدناعبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہما کی روایت نقل فرماتے ہیں : وروی عن ابن عباس رضی اللہ تعالی عنھما تقتضی الاقضیۃ کلھا لیلۃ النصف من شعبان ۔
ترجمہ : حضرت ابن عباس رضی اللہ عنہما سے مروی ہے :جملہ معاملات کے فیصلہ جات شعبان کی پندرھویں شب میں ہوتے ہیں ۔ (روح المعانی ج14، ص174)

برکت والی رات میں نزول قرآن کا صحیح مفہوم : اس مبارک رات سے متعلق یہ تفصیل بیان کی گئی کہ رب العالمین نے اس رات قرآن مجید کو نازل فرمایاہے اور شب قدرسے متعلق بھی قرآن کریم میں یہی تفصیل بیان کی گئی کہ وہ نزول قرآن کی رات ہے ، یہاں یہ سوال پیدا ہوتا ہے: کیسے ممکن ہوسکتاہے کہ کلام الہی شب براء ت میں بھی نازل ہو اور شب قدر میں بھی ؟
شب براء ت کا نام اللہ تعالی نے مبارک رات رکھا ہے اور اس رات قرآن اتارا ، ایساہی شب قدر کے لئے فرمایاکہ ہم نے قرآن اُتاراہے ۔
واقعہ یہ ہے کہ شب براء ت میں قرآن اتارنے کی تجویز ہوئی اور شب قدر میں آسمان اول پر اُتارا،پھر تیئیس 23 سال تک تھوڑا تھوڑا کرکے دنیا میں اترتارہا ۔ (فضائل رمضان، ص:23،چشتی)

اُمُّ المومنین حضرت عائشہ صدیقہ رَضِیَ اللہ تَعَالٰی عَنْہَا سے روایت ہے ، نبی کریم صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ نے ارشاد فرمایا ’’ اللہ تعالیٰ چار راتوں میں بھلائیوں کے دروازے کھول دیتا ہے : (1)بقر عید کی رات (2) عیدالفطر کی رات (3) شعبان کی پندرہویں رات کہ اس رات میں مرنے والوں کے نام اور لوگوں کا رزق اور (اِس سال)حج کرنے والوں کے نام لکھے جاتے ہیں (4)عرفہ کی رات اذانِ (فجر) تک ۔ ‘‘ (تفسیر در منثور، الدخان، تحت الآیۃ: ، ۷/۴۰۲)

اُمُّ المومنین حضرت عائشہ صدیقہ رَضِیَ اللہ تَعَالٰی عَنْہَا سے روایت ہے ، نبی کریم صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ نے ارشاد فرمایا ’’میرے پاس جبریل آئے اور کہا یہ شعبان کی پندرہویں رات ہے اس میں اللہ تعالیٰ جہنم سے اتنے لوگوں کو آزاد فرماتا ہے جتنے بنی کلب کی بکریوں کے بال ہیں مگرکافراور عداوت والے اور رشتہ کاٹنے والے اور(تکبر کی وجہ سے) کپڑا لٹکانے والے اور والدین کی نافرمانی کرنے والے اور شراب کے عادی کی طرف نظر ِرحمت نہیں فرماتا ۔ (شعب الایمان ، الباب الثالث و العشرون من شعب الایمان ۔۔۔ الخ ، ما جاء فی لیلۃ النصف من شعبان ، ۳ / ۳۸۳ ، الحدیث: ۳۸۳۷)

فِیْهَا یُفْرَقُ كُلُّ اَمْرٍ حَكِیْمٍۙ (4) اَمْرًا مِّنْ عِنْدِنَاؕ-اِنَّا كُنَّا مُرْسِلِیْنَۚ (5)
ترجمہ : اس میں بانٹ دیا جاتا ہے ہر حکمت والا کام۔ہمارے پاس کے حکم سے بیشک ہم بھیجنے والے ہیں ۔

فِیْهَا یُفْرَقُ : اس رات میں بانٹ دیا جاتا ہے ۔ اس آیت اور اس کے بعد والی آیت کا خلاصہ یہ ہے کہ اس برکت والی رات میں سال بھر میں ہونے والاہر حکمت والا کام جیسے رزق ، زندگی،موت اور دیگر احکام ان فرشتوں کے درمیان بانٹ دئیے جاتے ہیں جو انہیں سرا نجام دیتے ہیں اور یہ تقسیم ہمارے حکم سے ہوتی ہے ۔ بیشک ہم ہی سَیِّدُ المرسلین ، محمد مصطفی صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ اور ان سے پہلے انبیاء عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام کو بھیجنے والے ہیں ۔ ( جلالین، الدخان، تحت الآیۃ: ۴-۵، ص۴۱۰، روح البیان، الدخان، تحت الآیۃ: ۴-۵، ۸/۴۰۴،چشتی)

یاد رہے کہ کئی احادیث میں بیان ہوا ہے کہ 15شعبان کی رات لوگوں کے اُمور کا فیصلہ کر دیا جاتا ہے ، جیسا کہ اُمُّ المؤمنین حضرت عائشہ رَضِیَ اللہ تَعَالٰی عَنْہَا فرماتی ہیں ، نبی کریم صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ نے مجھ سے ارشاد فرمایا : ’’ کیا تم جانتی ہو اس رات یعنی پندرہویں شعبان میں کیا ہے؟میں نے عرض کی : یا رسولَ اللہ صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ، اس میں کیا ہے ؟ ارشاد فرمایا ’’ اس رات میں اس سال پیدا ہونے والے تمام بچے لکھ دیئے جاتے ہیں اور اس سال مرنے والے سارے انسان لکھ دیئے جاتے ہیں اور اس رات میں ان کے اعمال اٹھائے جاتے ہیں اور ان کے رزق اتارے جاتے ہیں ۔‘‘ ( مشکوۃ المصابیح، کتاب الصلاۃ، باب قیام شہر رمضان ، الفصل الثالث، ۱/۲۵۴، الحدیث: ۱۳۰۵)

ان احادیث اور ا س آیت میں مطابقت یہ ہے کہ فیصلہ 15 شعبان کی رات ہوتا ہے اور شبِ قدر میں وہ فیصلہ ان فرشتوں کے حوالے کر دیا جاتا ہے جنہوں نے اس فیصلے کے مطابق عمل کرنا ہوتا ہے جیسا کہ حضرت عبد اللہ بن عباس رَضِیَ اللہ تَعَالٰی عَنْہُمَا فرماتے ہیں ’’لوگوں کے اُمور کا فیصلہ نصف شعبان کی رات کر دیا جاتا ہے اور شبِ قدر میں یہ فیصلہ ان فرشتوں کے سپرد کر دیا جاتا ہے جو ان اُمور کو سرانجام دیں گے ۔‘‘ (بغوی، الدخان، تحت الآیۃ: ۴، ۴/۱۳۳)

شب براء ت ، موت و حیات اورتقسیم رزق کا فیصلہ : ہرشخص جانتاہے کہ ازل سے جو ہوا اورابد تک جو کچھ ہونے والا ہے سب کچھ لوح محفوظ میںتحریر شدہ ہے۔ البتہ سال بھر واقع ہونے والے امور سے متعلق تمام احکام کو شب براء ت میں منظوری دی جاتی ہے اور فرشتے لوح محفوظ سے ان فیصلوں کو دفتروںمیں نقل کرتے ہیں ‘اور شب قدر میں ان فائلوں کو متعلقہ فرشتوں کے حوالہ کردیاجاتاہے ، ان فائلوں میں لکھا ہوا ہوتا ہے کہ اس سال کتنے لوگ پیدا ہوں گے، اور کتنے دنیا سے رخصت ہوجائیںگے اور کس کو کتنا رزق ملے گا۔ جیسا کہ شعب الایمان‘ الدعوات الکبیرللبیہقی‘ مشکوٰۃ المصابیح اور زجاجۃ المصابیح میں حدیث شریف ہے : عن عائشۃ عن النبی صلی اللہ علیہ وسلم قال ھل تدرین مافی ھذہ اللیلۃ یعنی لیلۃ النصف من شعبان قالت مافیھا یا رسول اللہ فقال فیھا ان یکتب کل مولود بنی آدم فی ھذہ السنۃ وفیھا ان یکتب کل ھالک من بنی آدم فی ھذہ السنۃ وفیھا ترفع اعمالھم وفیھا تنزل ارزاقھم فقالت یا رسول اللہ مامن احد یدخل الجنۃ الا برحمۃ اللہ تعالیٰ ؟ فقال مامن احد یدخل الجنۃ الا برحمۃاللہ تعالیٰ ثلاثاً قلت ولا انت یا رسول اللہ فوضع یدہ علی ھامتہ ولا أنا الا ان یتغمدنی اللہ منہ برحمتہ یقولھا ثلاث مرات۔
ترجمہ : ام المومنین حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے حضرت نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشاد فرمایا: کیا تم جانتی ہو اس رات یعنی پندرھویں شعبان میں کیا ہوتاہے! آپ نے عرض کیا: اس میں کیاہوتاہے؟یا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم! توحضور صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشادفرمایا: اس سال پیداہونے والے تمام آدمیوں کے نام اس رات فہرست میں لکھ دئے جاتے ہیں،اور اس سال فوت ہونے والے تمام انسانوں کے نام بھی فہرست میں درج کردئیے جاتے ہیںاور اس میں لوگوں کے اعمال( رب کے حضور) پیش کئے جاتے ہیں اور ان کے رزق اتارے جانے کا فیصلہ کردیاجاتا ہے۔آپ نے عرض کیا یا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کیا کوئی بھی اللہ تعالیٰ کی رحمت کے بغیر جنت میں نہیں جاسکے گا؟حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا :کوئی ایک بھی ایسا نہیں جو اللہ تعالیٰ کی رحمت کے بغیر جنت میں چلاجائے، آپ نے یہ تین مرتبہ فرمایا:کہتی ہیں کہ میں نے عرض کیا :آپ بھی نہیں یا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم؟ حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنا دست مبارک اپنے سر انور پر رکھ کرتین مرتبہ فرمایا نہیں، مگر یہ کہ اللہ تعالیٰ مجھے اپنی آغوشِ رحمت میں لئے ہوئے ہے۔اسے حضور پاک صلی اللہ علیہ وسلم تین مرتبہ دہراتے رہے ۔
( زجاجۃ المصابیح، ج1، ص367۔ مشکوۃ المصابیح، ج1، ص114۔ الدعوات الکبیر للبیہقی،فضائل الاوقات للبیہقی ، باب فضل لیلۃ النصف من شعبان،حدیث نمبر 28۔شعب الایمان للبیہقی ، باب ماجاء فی لیلۃ النصف من شعبان ،حدیث نمبر: 3675 ۔ العلل المتناھیۃ لابن الجوزی،حدیث فی فضل لیلۃ النصف شعبان ، حدیث نمبر 918 ۔التبصرۃ لابن الجوزی، المجلس الخامس فی ذکر لیلۃ النصف من شعبان ،چشتی)

شب براء ت میں قیام اور دن میں روزہ کا اہتمام : شب براء ت ذکر وشغل اور نمازو تلاوت وغیرہ میں مشغول رہنا اور ساری رات قیام کرنا اور دن میں روزہ رکھنا احادیث شریفہ سے ثابت ہے چنانچہ سنن ابن ماجہ شریف‘ شعب الایمان ‘ کنزالعمال اور’ تفسیر در منثور‘ میں ہے : عَنْ عَلِیِّ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّہ صلی اللہ علیہ وسلم إِذَا کَانَتْ لَیْلَۃُ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ فَقُومُوا لَیْلَہَا وَصُومُوا یَوْمَہَا. فَإِنَّ اللَّہَ یَنْزِلُ فِیہَا لِغُرُوبِ الشَّمْسِ إِلَی سَمَائِ الدُّنْیَا فَیَقُولُ أَلاَ مِنْ مُسْتَغْفِرٍ لِی فَأَغْفِرَ لَہُ أَلاَ مُسْتَرْزِقٌ فَأَرْزُقَہُ أَلاَ مُبْتَلًی فَأُعَافِیَہُ أَلاَ کَذَا أَلاَ کَذَا حَتَّی یَطْلُعَ الْفَجْرُ۔
ترجمہ : حضرت سیدنا علی رضی اللہ عنہ سے روایت ہے آپ نے فرمایا:سیدنا رسول اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشاد فرمایا: جب شعبان کی پندرھویں شب ہو تو اس رات قیام کرو اور اس کے دن میں روزہ رکھو! کیونکہ اللہ تعالیٰ اس رات سورج ڈوبتے ہی آسمان دنیا کی طرف نزول اجلال فرماتاہے اورارشاد فرماتاہے :کیا کوئی مغفرت کا طلبگار ہے کہ میں اس کو بخش دوں! کیا کوئی رزق چاہنے والا ہے کہ میں اس کو رزق عطا کروں! کیا کوئی مصیبت کا مارا ہوا ہے کہ میں اس کو عافیت دوں! کیا کوئی ایساہے! کیاکوئی ایسا ہے! یہاں تک کہ فجر طلوع ہوجاتی ہے ۔
(سنن ابن ماجہ ‘حدیث نمبر: 1451 ۔ شعب الایمان للبیہقی حدیث نمبر: 3664۔ کنزالعمال حدیث نمبر: 35177۔التفسیر الدرالمنثور ،سورۃ الدخان،آیت ۔4،چشتی)

اس روایت سے شب براء ت میں قیام کرنا اور دن میں روزہ کاسنت ہونا مذکور ہے اس سے واضح طور پر معلوم ہورہاہے کہ یہ رات غفلتوں میں رہنے کی رات نہیں‘ بلکہ شب بیداری اورسحرخیزی کی رات ہے ، بارگاہ الہی سے رحمتیں لوٹنے کی رات ہے ، زندگی میں برکت حاصل کرنے اور پریشانیوں سے چھٹکارہ پانے کی رات ہے ۔

فضیلت شب براء ت کی احادیث ثقہ راویوں سے منقول : علامہ ہیثمی نے اپنی کتاب مجمع الزوائد میں شب براء ت کی فضیلت میں وارد احادیث شریفہ نقل کرتے ہوئے امام طبرانی کی معجم کبیرومعجم اوسط سے اس باب میں دو(2)روایتیں نقل کیں اور ان کے راویوں کو قابل اعتبار قراردیتے ہوئے رقم فرمایاہے: ورجالھما ثقات ۔ترجمہ : اور ان دونوں احادیث شریفہ کے راوی معتبر وثقہ ہیں ۔ (مجمع الزوائد ، کتاب الادب ، باب ماجاء فی الھجران ) ۔ شب براء ت کی فضیلت سے متعلق تقریباً سولہ (16) صحابۂ کرام رضی اللہ عنہم سے روایتیں منقول ہیں ۔

شب براء ت رحمت کے تین سو دروازے کھول دئے جاتے ہیں : شب براء ت جبریل امین سدرہ کے مکین حاضر دربار رحمت للعالمین صلی اللہ علیہ وسلم ہوکر اس رات عبادت کرنے والوں کے حق میں خوش قسمتی و فیروز بختی کی بشارت سناتے ہیں : قال ابوہریرۃ رضی اللہ عنہ عن النبی صلی اللہ علیہ وسلم انہ قال جاء نی جبریل علیہ السلام لیلۃ النصف من شعبان وقال یا محمد ارفع رأسک الی السماء قال قلت ماھذہ اللیلۃ قال ھذہ اللیلۃ یفتح اللہ سبحانہ فیھا ثلاث مائۃ باب من ابواب الرحمۃ یغفر لکل من لایشرک بہ شےئا الا ان یکون ساحرا اوکاھنا او مدمن خمر او مصرا علی الربا والزنا فان ھؤلاء لایغفرلھم حتی یتوبوا فلما کان ربع اللیل نزل جبریل علیہ السلام وقال یا محمد ارفع رأسک فرفع راسہ فاذا ابواب الجنۃ مفتوحۃ وعلی الباب الاول ملک ینادی طوبی لمن رکع فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب الثانی ملک ینادی طوبی لمن سجد فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب الثالث ملک ینادی طوبی لمن دعا فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب الرابع ملک ینادی طوبی للذاکرین فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب الخامس ملک ینادی طوبی لمن بکی من خشیۃ اللہ فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب السادس ملک ینادی طوبی للمسلمین فی ھذہ اللیلۃ وعلی الباب السابع ملک ینادی ھل من سائل فیعطی سؤلہ وعلی الباب الثامن ملک ینادی ھل من مستغفر فیغفرلہ فقلت یاجبریل الی متی تکون ھذہ الابواب مفتوحۃ قال الی طلوع الفجر من اول اللیل ثم قال یا محمد ان للہ تعالیٰ فیھا عتقاء من النار بعدد شعرغنم کلب ۔
ترجمہ : سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ حضرت نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم سے روایت کرتے ہیںکہ آپ نے ارشاد فرمایا :شعبان کی پندرھویں رات میرے پاس جبرئیل علیہ السلام نے حاضر ہوکر عرض کیا : اے پیکر حمدوثنا! اپنا سرانور آسمان کی جانب اٹھائیے ،میں نے کہا :واہ‘اس رات کے کیا کہنے! ،جبرئیل نے عرض کیا اس رات اللہ تعالیٰ رحمت کے تین سو دروازے کھولتا ہے اور ہر اس شخص کی بخشش فرمادیتا ہے جس نے اس کے ساتھ کسی کو شریک نہ کیا ہو، سوائے یہ کہ وہ جادوگر ہو یا کاہن ہو یا شراب کا عادی ہو یا ہمیشہ کا سود خوار اور بدکار ہو کیونکہ ان لوگوں کو نہیں بخشا جائے گا یہاں تک کہ و ہ توبہ کرلیں ، پھر جب چوتھائی رات ہوئی تو جبرئیل نے حاضر خدمت ہوکر عرض کیا:اے پیکر حمد وثنا و لائق ہر ستائش و خوبی ! اپنا سرا نور اٹھائیے تو حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنا سرانور اٹھایا تو جنت کے دروازے کھلے ہیں، پہلے دروازہ پر ایک فرشتہ اعلان کررہا ہے: اس شخص کے لئے خوشخبری ہے جس نے اس رات رکوع کیا، دوسرے دروازہ پر ایک فرشتہ آواز دے رہا ہے: اس شخص کیلئے خوشخبری ہے جس نے اس رات سجدہ کیا ، تیسرے دروازہ پر ایک فرشتہ ندادے رہا ہے: بشارت ہے اس شخص کیلئے جس نے اس رات دعاکی ، چوتھے دروازہ پر ایک فرشتہ اعلان کررہا ہے :اس رات ذکر کرنے والوں کیلئے مژدہ ہے ، پانچویںدروازہ پر ایک فرشتہ آوازدے رہا ہے: خوشخبری ہے اس شخص کے لئے جو اس رات اللہ تعالیٰ کے خوف سے روئے ، چھٹے دروازہ پرایک فرشتہ منادی ہے: اس رات اطاعت کرنے والوں کیلئے بشارت ہے ، ساتویں دروازہ پر ایک فرشتہ آوازدے رہا ہے: کیا کوئی مانگنے والاہے کہ اس کی مانگ پوری کی جائے! اورآٹھویں دروازہ پر ایک فرشتہ اعلان کررہا ہے: کیا کوئی بخشش کا طلبگارہے کہ اسے بخش دیا جائے! میں نے کہا: اے جبرئیل!یہ دروازے کب تک کھلے رہتے ہیں، جبرئیل نے عرض کیا: رات کے ابتدائی حصہ سے فجر طلوع ہونے تک پھر عرض کیا : اے پیکر حمدوثنا ولائق ہر ستائش وخوبی ! یقینااس رات اللہ تعالی قبیلۂ بنوکلب کی بکریوں کے بالوں کی مقدار بندوں کو دوزخ سے آزاد فرماتاہے ۔ (الغنیۃ لطالبی طریق الحق ،ج:1 ،ص:191)

وہ لوگ جن کی شب براء ت بخشش نہ ہوگی : مقام غورہے کہ سارے لوگ اللہ رب العزت کی رحمتوں کو حاصل کررہے ہونگے ، اس کی نعمتوں سے اپنی جھولیوں کو بھر رہے ہوں گے اور اس بخشش والی رات سعادتوں سے اپنے مقدر چمکارہے ہونگے ، ایسی انعام والی رات مغفرت نہ پانا یقینا محرومی کی بات ہے اوراپنے حال پر افسوس وندامت کرنے کی بات ہے کہ رحمۃ للعالمین صلی اللہ علیہ وسلم نے ہمیں اس رات کی فضیلت سے آگاہ فرمایا، اس رات بٹنے والی رحمتوں ‘برکتوں اور چھٹکارے کا تذکرہ بھی فرمادیا، بات یہیں ختم نہ ہوئی ‘بلکہ حضرت نبی اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے ہم گنہگاروں کی بندہ پروری فرماتے ہوئے ؛اس رات محروم رہنے والوں کی تفصیل بھی بتلادی ، چنانچہ اس طرح کرم کا معاملہ فرمایاکہ اگر کوئی شرک وبدعقیدگی ‘قتل وغارت گری اور کینہ پروری میں مبتلا ہوتو شرک وبدعقیدگی کو بالکلیہ طورپرچھوڑے اوردیگر گناہوں پرصدق دل سے توبہ کرلے تواسے سایۂ رحمت میں جگہ دیدی جائیگی ، اگر کوئی ڈاکہ زنی وبدکاری اور سود خوری وشراب نوشی میں ملوث ہوتو ان برائیوں سے باز آجائے اور انہیں آئندہ نہ کرنے کا عہد کرے، متعلقہ افراد کے حقوق ادا کرے اور ان کے املاک واپس کردے تو اس کی کوتاہیوں کو درگزر کردیا جائے گااور اس کے گناہوں کو بھی بخش دیا جائے گا ۔
اسی طرح اگر کوئی جادو کررہا ہے ‘رشتہ داری کاٹ رہاہے اور والدین کی نافرمانی کررہاہے تو اپنے حال زار پر افسوس کرے ،رب العزت کے دربار میں ندامت کے آنسو بہائے اوراپنے والدین کے ساتھ حسن سلوک کرے اور اہل حقوق کے حقوق ادا کرے تو اللہ تبارک وتعالی اسے بھی محروم نہیں فرمائے گااور اس رات کی برکتوں سے ضرور مالا مال فرمائے گا ۔
اگر سرورکونین صلی اللہ علیہ وسلم ان گناہوں کی تفصیل نہ بتلاتے ہوتے تو یہ تمام لوگ محروم رہ جاتے ، آپ نے اپنی شان رحمۃ للعالمینی کا صدقہ عطا فرمایا اور اپنے وسعت علم اور نگاہ نبوت کے مشاہدہ کے ذریعہ اُن تمام تر تفصیلات سے ہمیں باخبر فرمایا۔ چنانچہ شعب الایمان میں حدیث پاک ہے ،ام المو منین سید تنا عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنھا سے روایت ہے،وہ شب براء ت کے بارے میں حضوراکرم صلی اللہ علیہ وسلم کا فرمان بیان فرماتی ہیں : اتانی جبریل علیہ السلام فقال ھذہ اللیلۃ لیلۃ النصف من شعبان و للہ فیھا عتقاء من النار بعدد شعور غنم کلب لا ینظر اللہ فیھا الی مشرک ولا الی مشاحن ولا الی قاطع رحم ولا الی مسبل ولا الی عاق لوالدیہ ولا الی مدمن خمر۔
ترجمہ : حضور ا کرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: شب براءت جبریل علیہ السلام میرے پاس آئے اورعرض کیا: یہ رات شعبان کی پندرھویں رات ہے، اس رات اللہ تعالیٰ قبیلۂ بنی کلب کی بکریوں کے بالوں کی مقدار میں دوزخ سے گنہگاروں کو آ زاد فرماتا ہے ، اور اس رات چند لوگوں کی طرف نظررحمت نہیں فر ماتا،(وہ یہ ہیں:) مشرک ، بدعقیدہ اورکینہ پرور، رشتہ داری کاٹنے والا،ٹخنوں کے نیچے لباس رکھنے والا،والدین کا نا فرمان، شراب کاعادی ۔ (شعب الایمان للبیھقی،اکنت تخافین ان یحیف اللہ ، حدیث: 3678) ۔ اس حدیث شریف کے علاوہ شب براءت میں رب العالمین کی رحمتوں سے محروم رہنے والے افراد سے متعلق احادیث مبارکہ میں تفصیلات ملتی ہیں ، جن کی تعداد تقریباً چودہ (14) ہے، وہ یہ ہیں : (1) مشرک ۔ (2) بدعقیدہ ۔ (3) کینہ پرور ۔ (4) قاتل ۔ (5) زانی وزانیہ ۔ (6) ماں باپ کا نافرمان ۔ (7)رشتہ داری کاٹنے والا ۔ (8) سود خور ۔ (9) شراب کا عادی ۔ (10) جادوگر ۔ (11) کاہن ۔ (12) ڈاکہ زنی کرنے والا ۔ (13) ناجائز طور پر محصول وصول کرنے والا ۔ (14) ازراہ تکبر ٹخنوں کے نیچے لباس رکھنے والا ۔ جب تک یہ لوگ توبہ نہ کریں ‘حق داروں کا حق ادا نہ کریں؛ان کی توبہ درجۂ قبولیت کو نہیں پہنچتی ۔

شب براء ت زیارت قبور کا اہتمام : احادیث شریفہ میں مزارات کی زیارت سے متعلق عام اجازت کے علاوہ بطورخاص شب براء ت میں زیارت کرنے کا ثبوت ملتا ہے، چنانچہ جامع ترمذی شریف ،سنن ابن ماجہ شریف ،مسند احمد ،الترغیب والترھیب ،الغنیۃ لطالبی طریق الحق میں حدیث پاک ہے : عَنْ عَائِشَۃَ قَالَتْ فَقَدْتُ رَسُولَ اللَّہِ صلی اللہ علیہ وسلم لَیْلَۃً فَخَرَجْتُ فَإِذَا ہُوَ بِالْبَقِیعِ فَقَالَ أَکُنْتِ تَخَافِینَ أَنْ یَحِیفَ اللَّہُ عَلَیْکِ وَرَسُولُہ‘ قُلْتُ یَا رَسُولَ اللَّہِ إِنِّی ظَنَنْتُ أَنَّکَ أَتَیْتَ بَعْضَ نِسَائِکَ ۔فَقَالَ إِنَّ اللَّہَ عَزَّ وَجَلَّ یَنْزِلُ لَیْلَۃَ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ إِلَی السَّمَاءِ الدُّنْیَا فَیَغْفِرُ لأَکْثَرَ مِنْ عَدَدِ شَعْرِ غَنَمِ کَلْبٍ .
ترجمہ : ام المؤمنین سیدتنا عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا نے فرمایا میں نے ایک رات حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کو نہ پایا ،میں نکلی اور دیکھاکہ آپ بقیع میں تشریف فرما ہیں، حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کیا تمہیں اندیشہ ہوا کہ اللہ تعالیٰ اور اس کے رسول تم پر زیادتی کریں گے؟ میں نے عرض کیا یا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم! میں نے خیال کیا کہ آپ کسی اور زوجۂ مطہرہ کے پاس تشریف لے گئے ہوںگے تو حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالیٰ شب براء ت کو آسمان دنیا پر نزول اجلال فرماتا ہے اور بنی کلب کی بکریوں کے بالوں کی تعداد سے زیادہ لوگوں کی مغفرت فرماتا ہے ۔ (جامع ترمذی شریف ابواب الصوم ،باب ماجاء فی لیلۃ النصف من شعبان ج1 ص156، حدیث نمبر:744۔ سنن ابن ماجہ شریف،ابواب اقامۃ الصلوۃ و السنۃ فیہا ، باب ماجاء فی لیلۃ النصف من شعبان حدیث نمبر: 1379،ج1 ص99۔ مسند احمد حدیث نمبر24825۔ مسند الانصار ، حدیث نمبر: 2482۔ مصنف ابن ابی شیبہ، ج7ص139۔ شعب الایمان للبیہقی ، حدیث نمبر: 3666۔ کنزالعمال ، تابع لکتاب الفضائل ، حدیث نمبر: 35184۔ تفسیر الدرالمنثور :سورۃ الدخان۔1۔ الترغیب والترھیب ج2 ص119۔ الغنیۃ لطالبی طریق الحق ج1ص191،چشتی)

خوشبوئے جانفزا وجود گرامی کا پتہ دیتی ہے : حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم ازواج مطہرات کے ساتھ رہنے کے لئے باری مقرر فرمایا کرتے تھے جس وقت سرکار دوعالم صلی اللہ علیہ وسلم حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا کے دولت کدہ میں تشریف فرما تھے اس وقت رات کا کچھ حصہ گزار نے کے بعد ام المومنین کے پاس سے بقیع شریف زیارت کے لئے تشریف لے گئے۔ ام المومنین رضی اللہ عنہا نے حضور اقدس صلی اللہ علیہ وسلم کو اپنے حجرہ شریفہ میں نہ پایا تو ابتدائًً خیال گذرا کہ شاید دیگر ازواج مطہرات میں سے کسی زوجہ مبارکہ کے پاس تشریف لے گئے ہوں۔ پھر جب آپ نے حبیب پاک علیہ الصلوٰۃ والسلام کا مراقبہ کیا تو خوشبوئے جاں فزا نے دامن دل کھینچ کر بقیع شریف تک پہنچادیا۔ سید المرسلین صلی اللہ علیہ وسلم کی خوشبو سے گلیاں، فضائیں معطر رہتیں اور عاشقوں کو پتہ دیتیں کہ محبوب کی سواری یہاں سے گذری ہے اور عاشقان گم گشتۂ ہوش و خرد،َنفَسِ رحمانی کی ہدایت پر حالت مراقبہ میں راہ طے کرتے ہوئے حبیب پاک علیہ الصلوٰۃ والسلام کے مشاہدہ سے بہرہ مندہوجاتے ہیں۔ چنانچہ ام المومنین نے دیکھا کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم بقیع شریف میں بحالت سجدہ دعا گو ہیں ۔

جیسا کہ حضرت ملا علی قاری مرقاۃ ،شرح مشکوۃ میں فرماتے ہیں : وفی روایۃ اخری۔ ۔ ۔ فاذاھو ساجد بالبقیع فأطال السجود حتی ظننت انہ قبض فلما سلم التفت الی ۔ اور دوسری روایت میں ہے:ام المومنین رضی اللہ عنہا نے دیکھا کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم بقیع شریف میں سجدہ ریز ہیں، اتنا طویل سجدہ فرمایا کہ میں سمجھی کہ آپ حضوریٔ حق سے واپس نہ ہونگے ‘ وصال فرماگئے ہوں۔پھرجب حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے سلام پھیرا تو میری طرف توجہ رحمت فرمائی ۔ (مرقاۃ المفاتیح ‘ج2 ص171،چشتی) ۔ اس مبارک رات میں حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کے بقیع شریف قدم رنجہ فرمانے سے معلوم ہوتا ہے کہ اس رات بھی زیارت قبورمسنون ومستحب ہے۔

کیا ہر سال شب براء ت کے موقع پر زیارت قبور سنت ہے ؟ بعض لوگ یہ کہتے ہیں کہ ’’حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم ایک مرتبہ شب براء ت میں زیارت قبور کے لئے تشریف لے گئے تھے ،اسی لئے زندگی میں صرف ایک بار زیارت کرلی جائے تو کوئی حرج نہیں، ہر سال شب براء ت کے موقع پر زیارت قبور کا اہتمام بدعت ہے‘‘ان کا یہ قول بغیر دلیل کے دعویٰ اوراستدلال کرنا ہے، جوازروئے شرع قابل قبول نہیں ہوسکتا،کیونکہ احادیث شریفہ کے ذخیرہ میں کہیں یہ صراحت نہیں آئی ہے کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے بار بار یا ہر سال زیارت نہیں فرمائی بلکہ اس کے برعکس یہ شہادت موجود ہے کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم عام دنوں میں بھی زیارت قبور کا التزام واہتمام فرمایا کرتے ،اور یہ بات حقیقت سے نہایت بعید ہے کہ حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم صرف ایک بار شب براء ت میں زیارت قبور کے لئے تشریف لے گئے ہوں کیونکہ حدیث شریف میں آیا ہے کہ جب بھی حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا کی باری ہوتی حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم اس رات بقیع شریف تشریف لے جاتے۔ جیساکہ صحیح مسلم شریف کتاب الجنائز،ج1ص313 میں حدیث مبارک ہے : عَنْ عَائِشَۃَ أَنَّہَا قَالَتْ کَانَ رَسُولُ اللَّہ صلی اللہ علیہ وسلم کُلَّمَا کَانَ لَیْلَتُہَا مِنْ رَسُولِ اللَّہِ صلی اللہ علیہ وسلم یَخْرُجُ مِنْ آخِرِ اللَّیْلِ إِلَی الْبَقِیعِ فَیَقُولُ السَّلاَمُ عَلَیْکُمْ دَارَ قَوْمٍ مُؤْمِنِینَ وَأَتَاکُمْ مَا تُوعَدُونَ غَدًا مُؤَجَّلُونَ وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللَّہُ بِکُمْ لاَحِقُونَ اللَّہُمَّ اغْفِرْ لأَہْلِ بَقِیعِ الْغَرْقَدِ ۔
ترجمہ : حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے، فرماتی ہیں: جب بھی حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ ان کی باری ہوتی تو آپ رات کے آخری حصہ میں بقیع مبارک تشریف لے جاتے اور فرماتے’’ تم پر سلامتی ہو اے ایمان والو!تمہارے پاس پہنچا ہے جس کا تم سے وعدہ کیا جاتا تھا، روزمحشر ملنے والی نعمتیں تمہارے لئے تیار رکھی ہوئی ہیںاور یقیناً ہم تم سے ملنے والے ہیں۔ اے اللہ! اہل بقیع کی بخشش فرمادے ۔ (صحیح مسلم ، کتاب الجنائز،ج۱ص313کتاب الجنائز، حدیث نمبر2299!سنن النسائی، کتاب الجنائز، باب الامر بالاستغفار للمؤمنین، حدیث نمبر2012!مسندالامام احمد، مسند الانصار، حدیث نمبر:24297!صحیح ابن حبان ،فصل فی زیارۃالقبور، ج7 ، ص444، حدیث نمبر:3172.زجاجۃ المصابیح،باب زیارۃ القبور، ج1ص487)
اگرکسی کو یہی اصرار ہو کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے صرف ایک بار زیارت فرمائی ہے تب بھی نفس زیارت تو ثابت ہوئی، اگر کوئی امتی ایک بار یا ہر سال اہتمام کرے تو بہر طور وہ اللہ تعالی کے پاس محبوب وپسندیدہ ہی ہوگا ،کتب اسلامیہ کا مطالعہ کرنے والوں پر یہ بات پوشیدہ نہیں کہ جو عمل حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک مرتبہ یا چند مرتبہ فرمایا ہو اس پر امت کی پابندی و مواظبت سے وہ سنت بدعت نہیں ہوتی بلکہ بقدر پابندی عمل کرنے والا اجروثواب کا مستحق ہوتاہے۔
جیسا کہ صحیح بخاری شریف میں حدیث پاک میں ہے : وان احب الاعمال الی اللہ ادومھا وان قل ۔ بے شک اللہ تعالیٰ کے پاس محبوب ترین عمل وہ ہے جس پر مواظبت و پابندی کی جائے، اگرچہ وہ تھوڑاہو ۔ (صحیح بخاری،کتاب الرقاق، باب القصد والمداومۃ علی العمل،حدیث نمبر:6464!صحیح مسلم،،کتاب صلوۃ المسافرین وقصرھا ،حدیث نمبر783 !سنن نسائی،ابواب القبلۃ،باب المصلی یکون بینہ وبین الامام سترۃ،حدیث نمبر:754 )
اور صحیح مسلم شریف کی روایت میں ہے : وَکَانَ آلُ مُحَمَّدٍ صلی اللہ علیہ وسلم إِذَا عَمِلُوا عَمَلاً أَثْبَتُوہُ . حضور اکرم صلی اللہ علیہ وسلم کے اہل بیت کرام جب بھی کوئی عمل کرتے تو اس پر مواظبت کرتے۔(صحیح مسلم ،کتاب صلوۃ المسافرین وقصرھا ،حدیث نمبر1863،چشتی)

شب براء ت میں آتش بازی کی قباحت : آتش بازی میں بلا کسی فائدہ کے مال ضائع ہو تا ہے ، یہ فضول خرچی اور اسراف ہے ،اللہ تعالی کا ارشاد ہے : وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِیرًا . إِنَّ الْمُبَذِّرِینَ کَانُوا إِخْوَانَ الشَّیَاطِینْ ۔ اور فضول خرچی بالکل مت کرو ، بیشک فضول خرچی کرنے والے شیاطین کے بھائی ہیں ۔ (سورۃ بنی اسرائیل،آیت:26/27) ۔ آتش بازی میں کسی عضوکے ہلاک ہونے کااندیشہ رہتا ہے جبکہ شریعت مطہرہ میں اپنے آپ کو ہلاکت میںڈالنے سے منع کیاگیا ہے، ارشاد باری تعالی ہے : وَلَا تُلْقُوا بِأَیْدِیکُمْ إِلَی التَّہْلُکَۃِ ۔ تم اپنے ہی ہاتھوں خود کو ہلاکت میں نہ ڈالو۔ (سورۃ البقرۃ،آ یت:195)

مسلمان کی یہ شان نہیں کہ وہ اپنے وقت عزیز کو لایعنی اور بے فائدہ امور میں صرف کرے، جیسا کہ جامع ترمذی شریف ج2ص58میں حدیث پاک ہے : من حسن اسلام المرء ترکہ مالا یعنیہ ۔ ترجمہ : انسان کے مسلمان ہونے کی خوبی یہ ہیکہ وہ بے فائدہ چیز چھوڑدے ۔ اسی لئے فقہاء کرام نے یہ صراحت کی ہے : (و)کرہ (کل لھو)لقولہ علیہ الصلاۃ والسلام کل لھو المسلم حرام الا ثلاثۃ ۔ ۔ ۔ ۔ یعنی مسلمان کیلئے ہر غافل کرنے والے کھیل مکروہ ہیں بجزتین کے ۔ ۔ ۔ ۔ (الدرالمختار، ج:5ص279)
ان مفاسد و خرابیوں کی وجہ سے آتش بازی شریعت اسلامیہ میں فی نفسہ درست نہیں بالخصوص اس مبارک و باعظمت رات میں اللہ تعالی کی رضاجوئی اور توبہ و استغفارکرنے کے بجائے آتش بازی میں مشغول رہنا رحمت الٰہی سے روگردانی اختیار کرنے اور نعمت خداوندی کی ناقدری کرنے کے برابر ہے ۔
حضرت شاہ عبدالحق محدث دہلوی رحمۃ اللہ علیہ نے لکھا ہے : ومن البدع الشنیعۃ ما تعارف الناس فی اکثر بلا دالھند من…….و اجتما عھم اللھوواللعب بالنار واحتراق الکبریت ۔ ان بری بدعتوں میں جو ہندوستان کے باشندوں میں رواج پکڑی ہے آتشبازی، پٹاخے چھوڑنا اور گندہک جلانا ہے ۔ (ما ثبت بالسنۃ،ص:87)
مسلمان اس متبرک اور رحمت والی رات میں آتش بازی جیسے لا یعنی اوربے فائدہ امور سے احتراز کریں اور اللہ تعالی کی رحمتوں سے اپنے دامن مراد کو بھرلیں۔

شب براء ت بطور خاص غیر شرعی امور سے باز رہیں : اسلام ‘امن و سلامتی عطا کرنے والا تہذیب وشائستگی کی تعلیم دینے والامقدس دین ہے، جس کے احکام وقوانین اقوام عالم کے ہر فرد و ہر قبیلہ، ہر رنگ و نسل، ہر زماں و مکاں کیلئے امن و شانتی ‘راحت و اطمینان فراہم کرتے ہیں، جس کا پیغامِ امن اپنے ماننے والوں تک ہی محدود نہیں بلکہ تمام عالم انسانیت کیلئے ہے ۔
زمین پر کسی بھی قسم کا فتنہ وفساد، نقصان و خسران،قتل و غارتگری اس دین متین میںبالکل ناجائز و ممنوع ہے، ارشاد باری تعالی ہے : وَلَا تُفْسِدُوا فِی الْأَرْضِ بَعْدَ إِصْلَاحِہَا ۔ ترجمہ:تم زمین میں اصلاح کے بعد فساد مت کرو!۔(سورۃالاعراف،آیت:65)

مسلمان کی شان یہ ہے کہ وہ اپنے طرز عمل اور گفتار سے کسی کو تکلیف نہ پہنچائے اور سارے لوگ اس سے محفوظ و مامون رہیں، مشکوۃ ، ج1’ص15‘ میںجامع ترمذی اور سنن نسائی کے حوالہ سے منقول ہے:

عن ابی ھریرۃ رضی اللہ عنہ قال قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم: المسلم من سلم المسلمون من لسانہ ویدہ والمؤمن من امنہ الناس علی دمائھم واموالھم۔
ترجمہ : سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے حضرت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشاد فرمایا: مسلمان وہ ہے جس کی زبان اور ہاتھ سے مسلمان محفوظ رہیں، اور مؤمن وہ ہے جس سے سارے لوگ اپنی جان ومال سے متعلق بے خوف رہیں ۔

اسلامی قانون میں اس بات کی صراحت ہے کہ غیر مسلم سے بھی تکلیف کودور کرنا اور اس کی ایذاء رسانی سے احتراز کرنا ضروری ہے،در مختار میں ہے : ویجب کف الاذی عنہ وتحریم غیبتہ کالمسلم ۔ غیر مسلم کی تکلیف دور کرنا لازم اور اس کی غیبت کرنا حرام ہے جس طرح کسی مسلمان کو تکلیف دینا اور اس کی غیبت کرنا حرام ہے ۔ ( درمختار ’ج3ص272،چشتی)

رات دیر گئے نوجوانوں کا گروہوں کی شکل میں ٹوویلر اور فور ویلر پر سوار ہو کر راہرووں کو ایذاء پہنچانا،سواریوں، دفاتر ‘دکانوں اور لوگوں کی دیگر املاک پر سنگباری کرنا اور راستے مسدود کر کے سواریوں پر مختلف کرتب دکھانا،آتش بازی کے ذریعہ پرُامن فضامیں خوف و دہشت کا ماحول پیدا کرنا‘اسلامی احکام و قوانین کے بھی متضاد اور مخالف ہے اور بتقاضۂ انسانیت بھی قابل مذمت ہے۔ خاص طور پر مقدس راتوں میں اس طرح کا عمل سخت ترین گناہ ہے۔ حضور رحمت عالم صلی اللہ علیہ وسلم نے راستے کے حقوق و آداب بیان فرماتے ہوئے ارشاد فرمایا: جب تم کوبیٹھنا ہی ہوتو راستے کا حق دیا کرو! صحابہ کرام نے عرض کیا: راستہ کا حق کیا ہے؟ یا رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم! تو آپ نے ارشاد فرمایا:نظر نیچی رکھنا، تکلیف دہ چیز کو دور کرنا، سلام کا جواب دینا، نیکی کا حکم کرنااور برائی سے روکنا ۔
(صحیح البخاری ، کتاب المظالم،باب افنیۃ الدور والجلوس فیھا،حدیث نمبر2465-صحیح مسلم،کتاب اللباس والزینۃ،باب النھی عن الجلوس فی الطرقات،حدیث نمبر 5685۔زجاجۃ المصابیح ج4ص 7،چشتی)
لہٰذاان مقدس راتوں میں ہر طرح کے غیر شرعی امور سے اجتناب کریں، عبادت و اطاعت کے ذریعہ رحمت و سعادت حاصل کرنے کی سعی کریں ۔
شب معراج‘ شب براء ت اور دیگر مقدس راتوںاور ایام میں زندگی کواللہ تعالی اوراس کے حبیب پاک صلی اللہ علیہ وسلم کی محبت و اطاعت اور ان کی رضا و خوشنودی میں گزاریں ۔

چودہ 14 رکعات نمازکی خصوصی فضیلت : شب براء ت میں کس طرح عبادت کی جائے اس سے متعلق امام بیہقی نے شعب الایمان میں حدیث پاک نقل کی ہے : عن ابراہیم ، قال ، قال علی ، رایت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم لیلۃ النصف من شعبان قام فصلی أربع عشرۃ رکعۃ ۔ثم جلس بعد الفراغ، فقرأبأم القرآن أربع عشرۃ مرۃ ، وقل ہو اللہ أحد أربع عشرۃ مرۃ وقل أعوذبرب الفلق أربع عشرۃ مرۃ وقل أعوذبرب الناس أربع عشرۃ مرۃ ،وآیۃ الکرسی مرۃ و’’لقد جاء کم رسول من انفسکم ، الآیۃ ‘‘، فلمافرغ من صلاتہ سألتہ عما رایت من صنیعہ قال : (من صنع مثل الذی رایت کان لہ کعشرین حجۃ مبرورۃ ،وصیام عشرین سنۃ مقبولۃ ، فان اصبح فی ذلک الیوم صائماکان لہ کصیام سنتین سنۃ ماضیۃ ، وسنۃ مستقبلۃ ۔
ترجمہ : حضرت ابراہیم رضی اللہ عنہ سے روایت ہے آپ نے فرمایا کہ حضرت علی مرتضی رضی اللہ عنہ نے ارشاد فرمایا: میں نے حضرت رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو شعبان کی پندرھویں رات قیام فرما دیکھا او رآپ نے چودہ 14 رکعت نماز ادا فرمائی ۔ پھر بعد فراغت نماز آپ تشریف فرما ہوئے اور چودہ مرتبہ سورۃ الفاتحہ ، چودہ مرتبہ سورۃ الاخلاص ، چودہ مرتبہ سورۃ الفلق ،چودہ مرتبہ سورۃ الناس اور ایک مرتبہ آیۃ الکرسی او ر(سورہ توبہ کی آیت128) لقد جاء کم رسول من انفسکم تلاوت فرمائی۔جب حضور پاک صلی اللہ علیہ وسلم اپنی دعا سے فارغ ہوئے تو میں نے حضور پاک صلی اللہ علیہ وسلم سے آپ کے اس مبارک عمل سے متعلق دریافت کیا جس کو میںنے دیکھا تھا ، تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے ارشاد فرمایا: جو کوئی شخص اس طرح عمل کرے گا جس طرح تم نے دیکھا ہے تو اس شخص کیلئے بیس 20 مقبول حج اوربیس 20 سال کے مقبول روزوں کا ثواب ہے۔اگر وہ اس دن (پندرھویں تاریخ کو)روزہ رکھے گا تو اس کیلئے دو سال ،ایک گزشتہ اور ایک آئندہ سال کے روزوں کا ثواب لکھا جائے گا ۔ ( شعب الایمان للبیھقی ،کتاب الصوم حدیث نمبر:3683، الدرالمنثور،سورۃ الدخان۔جامع الاحادیث ، مسند العشرۃ،حدیث نمبر:33372،چشتی)

گوکہ اس حدیث کی سند میں کلام ہے تاہم فضیلت عمل کے باب میں ضعیف اور متکلم فیہ روایت کو بھی قبولیت حاصل ہے‘ جس طرح ماہ رمضان کی فضیلت کے بارے میں حضرت سلمان فارسی رضی اللہ عنہ سے ایک طویل روایت مروی ہے ،جس کو امام بیہقی نے شعب الایمان(حدیث نمبر:3455) میں نقل کیا ہے، اُس حدیث کو دیگر مکاتب فکر کے علماء بھی بیان کرتے ہیں ‘حالانکہ اس کی سند میں بھی کلام ہے ، علامہ بدرالدین عینی ودیگر شارحین حدیث نے تو فضائل رمضان سے متعلق حضرت سلمان فارسی رضی اللہ عنہ کی روایت کو ’’منکر‘‘ کہا ہے ۔ جیسا کہ صحیح بخاری شریف کی عظیم شرح’’عمدۃ القاری ‘‘میں علامہ عینی لکھتے ہیں : ولا یصح إسنادہ وفی سندہ إیاس قال شیخنا الظاہر أنہ ابن أبی إیاس قال صاحب(المیزان ) إیاس بن أبی إیاس عن سعید بن المسیب لا یعرف والخبر منکر . اس حدیث کی سند صحیح نہیں ہے اور اس سند میں’’ایاس‘‘ہیں،ہمارے شیخ نے کہا:ظاہر بات ہے کہ اس سند میں’’ابن ابی ایاس‘‘ ہیں، صاحب المیزان نے کہاکہ’’ ایاس ابن ابی ایاس‘‘کا حضرت سعید بن مسیب رضی اللہ عنہ سے روایت کرنا معروف نہیں!لہذا یہ روایت منکر ہے ۔ (عمدۃ القاری ، باب ھل یقال رمضان او شھر رمضان ومن رای کلہ واسعا،حدیث نمبر:9981،چشتی)
فضائل رمضان والی حضرت سلمان فارسی رضی اللہ عنہ کی روایت منکر ہونے کے باوجوددیگر مکاتب فکرکے علماء بھی عملی طور پر اُسے قبول کرتے ہیں اور اپنی کتابوں میں لکھتے ہیں تو پھر شب براء ت میں چودہ رکعت نماز والی اس روایت کو قبول کرنے میں کیا امر مانع ہے ‘ اگر عمل نہ بھی کریں تو کم ازکم اتنا تو کریں کہ جو عمل کر رہے ہیں ان پر ردوانکار نہ کریں ۔

شب براء ت کی مسنون دعائیں : حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا فرماتی ہیں: شب براء ت میں نے حضور صلی اللہ علیہ والہ وسلم کو یہ دعا کرتے ہوئے سنا : اَعُوْذُ بِعَفْوِکَ مِنْ عِقَابِکَ وَاَعُوْذُ بِرِضَاکَ مِنْ سَخَطِکَ وَ اَعُوْذُ بِکَ مِنْکَ جَلَّ وَجْھُکَ لا اُحْصِیْ ثَنَائً عَلَیْکَ اَنْتَ کَمَا اَثْنَیْتَ عَلٰی نَفْسِکَ ۔
ترجمہ : ائے اللہ! میں تیری سزا سے تیرے عفو کی پناہ چاہتا ہوں‘ تیرے غضب سے تیری رضا کی پناہ میں آتاہوں اورتجھ سے تیری ہی پناہ میں آتاہوں‘ تیری ذات بزرگی والی ہے اے اللہ! میں تیری مکمل تعریف کا احاطہ نہیں کرسکتا‘ تو ویسا ہی ہے جس طرح تو نے خود اپنی کی تعریف وثناء کی ۔ پھر حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا سے فرمایا : یا عائشۃ تعلمتھن فقلت نعم فقال تعلمیھن و علمیھن ۔اے عائشہ !کیا تم نے ان (کلمات) کویادکرلیاہے؟ (حضرت عائشہ فرماتی ہیں:) میں نے عرض کیا: ہاں! تو حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم اسے یاد رکھو اور دوسروں کو سکھاؤ ۔ (شعب الایمان للبیھقی‘ حدیث نمبر:3678،چشتی)

رسول کریم صلی اللہ علیہ وسلم جہاں محبوبیت کے اعلی مقام پر متمکن ہیں وہیں بارگاہ ایزدی میں عبدیت ونیازمندی کے بھی اعلی مدارج پر فائز ہیں‘ چنانچہ سید الانبیاء صلی اللہ علیہ وسلم نے امت کو بارگاہ الہی میں نیازمندیوں کا نذرانہ پیش کرنے کی تعلیم دی اوریہ کلمات ادا کئے ‘جیسا کہ حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ عنہا سے مروی ہے کہ حضور صلی اللہ علیہ والہ وسلم نے پندرھویں شعبان کی رات یہ دعا فرمائی : سَجَدَ لَکَ خَیَالِیْ وَ سَوَادِیْ وَ آمَنَ بِکَ فُؤادِیْ فَھٰذِہِ یَدِیْ وَمَا جَنَیْتُ بِھَا عَلٰی نَفْسِیْ، یَا عَظِیْمُ یُرْجٰی لِکُلِّ عَظِیْم، اِغْفِرِ الذَّنْبَ العَظِیْمَ، سَجَدَ وَجْھِیْ لِلَّذِیْ خَلَقَہُ وَ شَقَّ سَمْعَہُ وَ بَصَرَہُ ۔ ترجمہ : تجھ کو میرے باطن و ظاہر نے سجدہ کیا اور میرا دل تجھ پر ایمان رکھتا ہے تو یہ میرا ہاتھ ہے اور جو کچھ میں نے اس سے اعمال کئے ہیں‘ اے بزرگ و برتر جس کی ہر بڑے مقصد کے لئے امید کی جاتی ہے (میری امت کے) بڑے گناہ کو معاف فرمادے‘ میرے چہرہ نے اس ذات کو سجدہ کیا جس نے اس کو پیدا کیااور اس میں کان اور آنکھ بنائے ۔

(شعب الایمان للبیھقی‘ حدیث نمبر :3680)۔

shabe barat 2023

شبِ برأت میں بھی چند افراد کی دعا قبول نہیں ہوتی
عالم اسلام کو شب براءت مبارک
اللّٰه پاك اس گروپ کے تمام ممبران کی جان ، مال ، ایمان ، اعمال ، عزت ، آبرو ، روزی ، كمائی ، رزق ، علم ، عمل ، گھر ، کاروبار ، دسترخوان ، اولاد ، زندگی ، خوشیوں ، عبادات ، تقوٰی ، اخلاص ، اخلاق ، سادگی ، عاجزی ، انکساری اور عمر میں بے پناہ برکتیں ، رحمتیں ، وسعتیں ، رفعتیں نازل فرمائے اور عروج و بلندیاں عطا فرما ، آمین ثم آمین یا رب العالمین

07 مارچ 2023ء کا دن گزار کر آنے والی رات شب براءت ہے.
اس رات کی بے شمار برکتیں ہیں. مختلف روایات اس پر شاہد ہیں کہ اس شب کو امت مسلمہ کو بخشش و مغفرت کا عام پروانہ دیا جاتا ہے. لیکن افسوس عام مغفرت کے باوجود درج ذیل افراد کی مغفرت نہیں ہوتی:
(1) والدین کے ساتھ بد سلوکی یعنی انہیں ناراض کرنے والا
(2) سود خور جس نے کم از کم تین بار بلا ضرورت شرعیہ سود دیا ہو یا لیا ہو.
(3) شراب پینے کا عادی
(4) زنا و بدکاری کا عادی
(5) بد عقیدہ جو جماعت اہل سنت سے خارج ہے
(6) جو کسی مومن کے لیے کینہ رکھے
(7) جو رشتہ داروں سے رشتہ کاٹے
لہٰذا اس رات کی برکتیں پانے کے لیے ضروری ہے کہ ہم میں سے کوئی اگر مذکورہ بالا گناہوں میں مبتلا ہے تو اس سے توبہ کرے- خصوصاً ماں باپ اور جس کا بھی دل دکھایا ہے اس سے معافی مانگے-
عبادات و معمولات:
ہمارے نبی صلی اللہ علیہ والہ و سلم شعبان المعظم کے پورے مہینے یا کم از کم 15-16 روزے رکھتے.
▪️لہٰذا کم از کم (7-8 مارچ) دو روزے رکھیں. ممکن ہو تو زیادہ سے زیادہ روزے رکھیں-
▪️7 اپریل بعد عصر درود شریف اور توبہ و استغفار کی کثرت کریں.
▪️بعد مغرب دو دو کرکے 6 رکعات نفل نماز پڑھیں. بلا اور ہر چھوٹی بڑی بیماری، آفت و مصیبت، روزگار میں برکت، کامیابی، اپنی اور دیگر بہن بھائی کے اچھے رشتے، خوش حال زندگی الغرض آپ جس نیت خیر کے ساتھ چاہے پڑھ سکتے ہیں.
نیت: بس دل میں ارادہ کرکے کہ اللہ کی بارگاہ میں فلاں حاجت کی خاطر میں نے دو رکعت کی نیت کی اللہ اکبر
▪️کم سے کم ایک بار سورہ یٰسین شریف پڑھ اور 300 بار درود شریف پڑھ کر اپنی اور اپنے تمام مسلمان بھائیوں کے لیے دین و دنیا کی بھلائی کی دعا کریں.
▪️عشا اور فجر کی نماز جماعت کے ساتھ ہی پڑھیں.
▪️شب بیداری میں زیادہ سے زیادہ قضا نمازیں پڑھیں. اس میں صرف فرض اور واجب پڑھا جائے گا. 2 فجر، 4ظهر ،4عصر، 3مغرب، 4عشا اور 3وتر. ایک دن کی کل بیس رکعات. آسانی کے لیے چھوٹی چھوٹی سورتیں پڑھ سکتے ہیں- “انا اعطینک” قل ھو اللہ وغیرہ. دعائے ماثورہ و دعائے قنوت کی جگہ صرف “اللّٰہم اغفر لنا” یہ اس صورت میں ہے تاکہ قضا نمازیں زیادہ سے زیادہ پڑھی جائیں-
قضا نمازوں کا ثواب نفل نمازوں سے بہت زیادہ ہے-

دعائے نصف شعبان المعظم

اَللَّهُمَّ يَا ذَا الْمَنِّ، ولا يُمَنُّ عَلَيْهِ، يا ذَا الْجَلالِ والإكْرَامِ، يا ذَا الطَّوْلِ والإنْعَامِ، لا إلَهَ إلاَّ أَنْتَ، ظَهْرُ اللاَّجِئِيْنَ، وجَارُ الْمُسْتَجِيْرِيْنَ، وأَمَانُ الْخَائِفِيْنَ، اَللَّهُمَّ إنْ كُنْتَ كَتَبْتَنِي عِنْدَكَ في أُمِّ الْكِتَابِ شَقِيًّا، أَوْ مَحْرُومًا، أَوْ مَطْرُوْدًا، أَوْ مُقَتَّراً عَلَيَّ في الرِّزْقِ، فَامْحُ اللَّهُمَّ بِفَضْلِكَ شَقَاوَتِي، وحِرْمَانِي، وطَرْدِي، واقْتِتارَ رِزْقي، وأَثْبِتْنِي عِنْدَكَ في أُمِّ الْكِتَاب سَعِيْدًا مَرْزُوقًا، مُوَفَّقًا لِلْخَيْرَاتِ، فإنَّكَ قُلْتَ وقَوْلُكَ الْحَقُّ في كِتَابِكَ الْمُنَـزَّلِ عَلَى لِسَانِ نَبِيِّكَ الْمُرْسَلِ، يَمْحُو اللهُ ما يَشَاءُ ويُثْبِتُ وعِنْدَهُ أُمُّ الْكِتَاب.
إلَهِي بالتَّجَلِّي الأَعْظَمِ في لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَهْرِ شَعْبَانَ الْمُكَرَّمِ الَّتِي يُفْرَقُ فِيْهَا كُلُّ أَمْرٍ حَكِيْمٍ، ويُبْرَمُ أَنْ تَكْشِفَ عَنَّا مِنَ الْبَلاَء والْبَلوَاء ما نَعْلَمُ ومَا لا نَعْلَمُ، وأَنْتَ بهِ أَعْلَمُ، إنَّكَ أَنْتَ الأَعَزُّ الأَكْرَمُ، وصَلَّى اللهُ تعالى على سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وعَلَى آلِهِ وأَصْحَابهِ وسَلَّمَ والْحَمْدُ لله رَبِّ الْعَالَمِيْنَ.

shabe barat

فاتحہ کرنے کا طریقہ، خود ہی اپنے گھروں میں فاتحہ کا اہتمام کریں
فاتحہ کرنے کا طریقہ، خود ہی اپنے گھروں میں فاتحہ کا اہتمام کریں ۔

 

پہلے تین بار درود شریف پڑھے پھر کم سے کم چاروں قل سورۂ فاتحہ اور الۤم سے مُفْلِحُوْنَ تک پڑھے اس کے بعد پڑھے وَ اِلٰـہُکُمْ اِلٰہٌ وّٰحِدٌۚ لَاۤ اِلٰہَ اِلَّا ہُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِیۡمُ﴿۱۶۳﴾٪ اور اِنَّ رَحْمَتَ اللہِ قَرِیْبٌ مِّنَ الْمُحْسِنِیْنَO وَمَآ اَرْسَلْنٰکَ اِلَّارَحْمَۃً لِّلْعٰلَمِیْنَ _ مَاکَانَ مُحَمَّدٌ اَبَآ اَحَدٍ مِّنْ رِّجَا لِکُمْ وَلٰکِنْ رَّسُوْلَ اللہِ وَ خَاتَمَ النَّبِیّٖنَ وَ کَانَ اللہُ بِکُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمًا_O اِنَّ اﷲَ وَمَلٰئِکَتَہٗ یُصَلُّوْنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ یٰاَیُّھَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْاصَلُّوْاعَلَیْہِ وَسَلِّمُوْ ا تَسْلِیْمًاO
اب تین بار درود شریف پڑھے- اور سُبْحٰنَ رَبِّکَ رَبِّ الْعِزَّۃِ عَمَّا یَصِفُوْنَ وَ سَلَامٌ عَلَی الْمُرْسَلِیْنَ وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ پڑھ کر بارگاہِ الٰہی عزوجل میں ہاتھ اٹھا کر یوں دعا کرے، یا ﷲ عزوجل! ہم نے جو کچھ درود شریف پڑھا ہے اور قرآن مجید کی آیتیں تلاوت کی ہیں ان کو قبول فرما اور ان کا ثواب (اگر کھانا یا شیرینی بھی ہو تو اتنا اور کہے کہ اس کھانے اور شیرینی کا ثواب) ہماری جانب سے حضور سرور کائنات صلی اللہ تعالیٰ علیہ واٰلہٖ وسلّم کو نذر عطاء فرما پھر آپ کے وسیلہ سے تمام انبیائے کرام علیہم السَّلَام و صحابہ عظام و ازواج مطہرات و اہل بیت اطہار و شہدائے کربلا اور تمام اولیاء وعلماء و صلحاء وشہداء کو عطا فرما (پھر اگر کسی خاص بزرگ کو ایصال ثواب کرنا ہو تو ان کا نام خصوصیت کے ساتھ لے، مثلاً یوں کہے کہ خصوصاً حضرت غوث پاک رحمۃ اﷲ تعالی علیہ کو نذر عطا فرما) اور جملہ مومنین و مومنات کی ارواح کو ثواب عطا فرما اور کسی عام آدمی کو ایصال ثواب کرنا ہو تو اس کا ذکر خصوصیت سے کرے مثلاً یوں کہے کہ خصوصاً ہمارے والد یا والدہ کی روح کو ثواب فرما۔ آمین یا رب العلمین وَ صَلّی اللہُ عَلٰی خَیْرِ خَلْقِہٖ سَیِّدِنَا وَ مَوْلَانَا مُحَمَّدٍ وَّاٰلِہٖ وَصَحْبِہٖ اَجْمَعِیْنO بِرَحْمَتِکَ یَا اَرْحَمَ الرَّاحِمِّیْن۔

شبِ برأت میں سب سے پہلے کیا کرنا ہے اوپر لِنک پر کلک کر کے سُنیں اور آگے بھی شیئر کریں، تاکہ اور بھائیوں کو بھی یہ بات معلوم ہو سکے،

شبِ برات میں کیا کرنا ہے، شاندار بیان حضرت علامہ مفتی محمد مجیب علی قادری رضوی صاحب قبلہ ( حضور شہبازِ ڈکن حیدرآباد ) نیچے لنک پر کلک کر کے سُنیں،
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شب برأت کی اہمیت و فضیلت احادیث کی روشنی میں

ماہ شعبان کی پندرہویں رات کو شب برأت کہا جاتا ہے شب کے معنی ہیں رات اوربرأت کے معنی بری ہونے أور قطع تعلق کرنے کے ہیں‘چونکہ اس رات مسلمان توبہ کرکے گناہوں سے قطع تعلق کرتے ہیں اوراللہ تعالیٰ کی رحمت سے بے شمار مسلمان جہنم سے نجات پاتے ہیں اس لئے اس رات کوشب برأت کہتے ہیں‘ اس رات کولیلتہ المبارکہ یعنی برکتوں والی رات لیلتہ الصک یعنی تقسیم امور کی رات اور لیلتہ الرحمتہ رحمت نازل ہونے کی رات بھی کہاجاتا ہے۔

جلیل القدر تابعی حضرت عطاء بن یساررضی اللہ تعالیٰ عنہ فرماتے ہیں’’لیلتہ القدر کے بعد شعبان کی پندرہویں شب سے افضل کوئی رات نہیں‘‘(لطائف المعارف‘صفحہ145)

جس طرح مسلمانوں کے لئے زمین میں دوعیدیں ہیں اسی طرح فرشتوں کے لئے آسمان میں دوعیدیں ہیں ایک شب برأت اوردوسری شب قدر جس طرح مومنوں کی عیدیں عیدالفطر اورعیدالاضحی ہیں فرشتوں کی عیدیں رات کواس لئے ہیں کہ وہ رات کوسوتے نہیں جب کہ آدمی سوتے ہیں اس لئے ان کی عیدیں دن کوہیں(غنیتہ الطالبین‘ صفحہ449)

تقسیم امور کی رات

ارشادباری تعالیٰ ہوا’’قسم ہے اس روشن کتاب کی بے شک ہم نے اسے برکت والی رات میں اتاراہے‘ بے شک ہم ڈرسنانے والے ہیں اس میں بانٹ دیاجاتا ہے ہرحکمت والا کام(الدخان: 2-4‘کنزالایمان)

’’اس رات سے مرادشب قدر ہے یا شب برأت‘‘(خزائن العرفان)ان آیات کی تفسیر میں حضرت عکرمہ رضی اللہ تعالیٰ عنہ اوربعض دیگر مفسرین نے بیان کیا ہے کہ ’’لیلتہ مبارکہ‘‘سے پندرہ شعبان کی رات مراد ہے۔اس رات میں زندہ رہنے والے ‘فوت ہونے والے اور حج کرنے والے سب کے ناموں کی فہرست تیار کی جاتی ہے اور جس کی تعمیل میں ذرا بھی کمی بیشی نہیں ہوتی۔ اس روایت کوابن جریر‘ابن منذر اورابن ابی حاتم نے بھی لکھا ہے‘اگرچہ اس کی ابتداء پندرہویں شعبان کی شب سے ہوتی ہے(ماثبت من السنہ‘ صفحہ194)

علامہ قرطبی مالکی رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں ایک قول یہ ہے کہ ان امور کے لوح محفوظ سے نقل کرنے کاآغاز شب برأت سے ہوتا ہے اوراختتام لیلتہ القدر میں ہوتاہے۔

(الجامع لاحکام القرآن‘ جلد 16 ‘صفحہ128)

یہاں ایک شبہ یہ پیدا ہوتا ہے کہ یہ امورتوپہلے ہی سے لوح محفوظ میں تحریر ہیں پھر ان شب میں ان کے لکھے جانے کا کیامطلب ہے؟جواب یہ ہے کہ یہ امور بلاشبہ لوح محفوظ میں تحریر ہیں لیکن اس شب میں مذکورہ امور کی فہرست لوح محفوظ سے نقل کرکے ان فرشتوں کے سپرد کی جاتی ہے جن کے ذمہ یہ امورہیں۔

حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ تعالیٰ عنہا فرماتی ہیں کہ رسول کریمﷺ نے فرمایا کیا تم جانتی ہوکہ شعبان کی پندرہویں شب میں کیا ہوتا ہے؟ میں نے عرض کی یارسول اللہﷺ آپ فرمائیے۔ارشادہوا آئندہ سال میں جتنے بھی پیدا ہونے والے ہوتے ہیں وہ سب اس شب میں لکھ دیئے جاتے ہیں اورجتنے لوگ آئندہ سال مرنے والے ہوتے ہیں وہ بھی اس رات میں لکھ دیئے جاتے ہیں اوراس رات میں لوگوں کے(سال بھرکے)اعمال اٹھائے جاتے ہیں اوراس میں لوگوں کامقررہ رزق اتاراجاتاہے۔

(مشکوۃ‘جلد 1صفحہ277)

حضرت عطاء بن یساررضی اللہ تعالیٰ عنہ فرماتے ہیں’’شعبان کی پندرہویں رات میں اللہ تعالیٰ ملک الموت کوایک فہرست دے کرحکم فرماتا ہے کہ جن جن لوگوں کے نام اس میں لکھے ہیں ان کی روحوں کوآئندہ سال مقررہ وقتوں پرقبض کرنا‘تواس شب میں لوگوں کے حالات یہ ہوتے ہیں کہ کوئی باغوں میں درخت لگانے کی فکر میں ہوتا ہے کوئی شادی کی تیاریوں میں مصروف ہوتا ہے‘ کوئی کوٹھی بنگلہ بنوارہاہوتاہے حالانکہ ان کے نام مردوں کی فہرست میں لکھے جاچکے ہوتے ہیں۔

(مصنف عبدالرزاق‘جلد4 ‘صفحہ317‘ماثبت من السنہ صفحہ193)

حضرت عثمان بن محمدرضی اللہ تعالیٰ عنہ سے مروی ہے کہ سرکارمدینہﷺ نے فرمایا ایک شعبان سے دوسرے شعبان تک لوگوں کی زندگی منقطع کرنے کاوقت اس رات میں لکھاجاتا ہے یہاں تک کہ انسان شادی بیاہ کرتا ہے اوراس کے بچے پیدا ہوتے ہیں حالانکہ اس کانام مردوں کی فہرست میں لکھاجاچکاہوتاہے۔

(الجامع لاحکام القرآن‘جلد16‘صفحہ126 ‘شعب الایمان ‘لبیہقی‘ جلد3صفحہ386)

چونکہ یہ رات گزشتہ سال کے تمام اعمال بارگاہ الہٰی میں پیش ہونے اورآئندہ سال ملنے واالی زندگی اوررزق وغیرہ کے حساب کتاب کی رات ہے اس لئے اس رات میںعبادت الہٰی میں مشغول رہنا رب کریم کی رحمتوں کے مستحق ہونے کاباعث ہے اورسرکاردوعالمﷺکی یہی تعلیم ہے۔

مغفرت کی رات

شب برأت کی ایک بڑی خصوصیت یہ ہے کہ اس شب میں اللہ تعالیٰ اپنے فضل وکرم سے بے شمارلوگوں کی بخشش فرمادیتا ہے اسی حوالے سے چند احادیث مبارکہ ملاحظہ فرمائیں۔

-1 حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ تعالیٰ عنہافرماتی ہیں کہ ایک رات میں نے حضوراکرمﷺ کواپنے پاس نہ پایا تو میں آپ کی تلاش میں نکلی میں نے دیکھاکہ آپﷺ جنت البقیع میں تشریف فرما ہیں آپ نے فرمایا کیا تمہیں یہ خوف ہے کہ اللہ تعالیٰ اوراس کارسولﷺ تمہارے ساتھ زیادتی کریں گے میں نے عرض کی یارسول اللہﷺ مجھے یہ خیال ہوا کہ شاید آپ کسی دوسری اہلیہ کے پاس تشریف لے گئے ہیں آقا ومولیٰﷺ نے فرمایا بے شک اللہ تعالیٰ شعبان کی پندرہویں شب آسمان دنیا پر(اپنی شان کے مطابق) جلوہ گرہوتا ہے اورقبیلہ بنوکلب کی بکریوں کے بالوں سے زیادہ لوگوں کی مغفرت فرماتا ہے(ترمذی‘جلد1صفحہ156‘ابن ماجہ‘ صفحہ100‘مسند احمد‘جلد 6‘صفحہ238 مشکوۃ جلد1‘صفحہ277مصنف ابن ابی شیبہ‘ جلد 1صفحہ237 شعب الایمان للبیہقی‘ جلد3صفحہ379)

شارحین فرماتے ہیں کہ یہ حدیث پاک اتنی زیادہ اسناد سے مروی ہے کہ درجہ صحت کوپہنچ گئی۔

-2حضرت ابوبکر صدیق رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ آقامولیٰﷺ نے فرمایا’’شعبان کی پندرہویں شب میں اللہ تعالیٰ آسمان دنیا پر(اپنی شان کے مطابق) جلوہ گرہوتا ہے اوراس شب میں ہرکسی کی مغفرت فرمادیتا ہے سوائے مشرک اوربغض رکھنے والے کے‘‘(شعب الایمان للبیہقی‘جلد3صفحہ380)

-3 حضرت ابوموسیٰ رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے مروی ہے کہ نبی کریم ﷺ کاارشاد ہے اللہ تعالیٰ شعبان کی پندرہویں شب میں اپنے رحم وکرم سے تمام مخلوق کوبخش دیتا ہے سوائے مشرک اورکینہ رکھنے والے کے‘‘۔

ابن ماجہ صفحہ101‘شعب الایمان‘جلد3صفحہ382‘مشکوۃ‘جلد1صفحہ277)

-4حضرت ابوہریرہ ‘حضرت معاذ بن جبل‘ حضرت ابوثعلبتہ اورحضرت عوف بن مالک رضی اللہ تعالیٰ عنہم سے بھی ایساہی مضمون مروی ہے(مجمع الزوائد‘جلد8 صفحہ65)

-5 حضرت عبداللہ بن عمروبن عاص رضی اللہ تعالیٰ عنہا سے روایت ہے کہ آقاومولیٰﷺ نے فرمایا’’شعبان کی پندرہویں رات میں اللہ تعالیٰ اپنی رحمت سے دو اشخاص کے سوا سب مسلمانوں کی مغفرت فرمادیتا ہے ایک کینہ پرور اوردوسرا کسی کوناحق قتل کرنے والا‘‘

(مسنداحمد‘جلد2صفحہ176‘مشکوۃ‘جلد1صفحہ278)

-6امام بیہقی نے شعب الایمان(جلد نمبر3صفحہ 384 )میں حضرت عائشہ رضی اللہ تعالیٰ عنہا کی ایک طویل روایت بیان کی ہے جس میں مغفرت سے محروم رہنے والوں میں ان لوگوں کابھی ذکر ہے: رشتے ناتے توڑنے والا‘بطورتکبرازارٹخنوں سے نیچے رکھنے والا‘ماں باپ کانافرمان ‘شراب نوشی کرنے والے۔

-7غنیتہ الطالبین‘صفحہ449 پرحضرت ابوہریرہ رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے مروی طویل حدیث میںان لوگوں کابھی ذکر ہے جادوگر‘کاہن ‘سودخور اوربدلہ کار‘یہ وہ لوگ ہیں کہ اپنے اپنے گناہوں سے توبہ کئے بغیر ان کی مغفرت نہیں ہوتی‘ پس ایسے لوگوں کوچاہئے کہ اپنے اپنے گناہوں سے جلد ازجلد سچی توبہ کرلیں تاکہ یہ بھی شب برأت کی رحمتوں اوربخشش ومغفرت کے حق دارہوجائیں۔

’’ارشادباری تعالیٰ ہوا: اے ایمان والو! اللہ کی طرف ایسی توبہ کروجوآگے کونصیحت ہوجائے‘‘(التحریم8کنزالایمان)

یعنی توبہ ایسی ہونی چاہئے جس کااثر توبہ کرنے والے کے اعمال میں ظاہر ہو اوراس کی زندگی گناہوں سے پاک اورعبادتوں سے معمورہوجائے‘ حضرت معاذ بن جبل رضی اللہ تعالیٰ عنہ نے بارگاہ رسالت میں عرض کی۔یارسول اللہﷺ توبتہ النصوح کسے کہتے ہیں ارشاد ہوا بندہ اپنے گناہ پرسخت نادم اورشرمسارہو‘پھربارگاہ الہٰی میں گڑگڑاکر مغفرت مانگے اورگناہوں سے بچنے کاپختہ عزم کرے تو جس طرح دودھ دوبارہ تھنوں میں داخل نہیں ہوسکتا اسی طرح اس بندے سے یہ گناہ کبھی سرزدنہ ہوگا۔

رحمت کی رات

شب برأت فرشتوں کوبعض اموردیئے جانے اورمسلمانوں کی مغفرت کی رات ہے اس کی ایک اورخصوصیت یہ ہے کہ یہ رب کریم کی رحمتوں کے نزول کی اوردعائوں کے قبول ہونے کی رات ہے۔

-1حضرت عثمان بن ابی العاص رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ حضور اکرمﷺ کاارشاد ہے‘جب شعبان کی پندرہویں شب آتی ہے تو اللہ تعالیٰ کی طرف سے اعلان ہوتا ہے۔ہے کوئی مغفرت کاطالب کہ اس کے گناہ بخش دوں‘ ہے کوئی مجھ سے مانگنے والا کہ اسے عطا کروں۔اس وقت اللہ تعالیٰ سے جومانگاجائے وہ ملتاہے۔وہ سب کی دعا قبول فرماتا ہے۔سوائے بدکارعورت اورمشرک کے‘‘

(شعب الایمان للبیہقی‘ جلد 3صفحہ383)

-2حضرت علی رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے روایت ہے کہ غیب بتانے والے آقا ومولیٰ ﷺ نے فرمایا جب شعبان کی پندرہویں شب ہوتو رات کوقیام کرواوردن کوروزہ رکھو کیونکہ غروب آفتاب کے وقت سے ہی اللہ تعالیٰ کی رحمت آسمان دنیا پرنازل ہوجاتی ہے اوراللہ تعالیٰ ارشاد فرماتا ہے ‘ہے کوئی مغفرت کاطلب کرنے والاکہ میں اسے بخش دوں‘ ہے کوئی رزاق مانگنے والاکہ میں اس کورزق دوں ہے کوئی مصیبت زدہ کہ میں اسے مصیبت سے نجات دوں‘یہ اعلان طلوع فجر تک ہوتارہتاہے۔

(ابن ماجہ صفحہ100‘شعب الایمان للبیہقی‘جلد3‘صفحہ378‘مشکوۃ جلد1صفحہ278)

یہ نداہررات میں ہوتی ہے لیکن رات کے آخری حصے میں جیسا کہ کتاب کے آغاز میں شب بیداری کی فضیلت کے عنوان کے تحت حدیث پاک تحریرکی گئی شب برأت کی خاص بات یہ ہے کہ اس میں یہ نداغروب آفتاب ہی سے شروع ہوجاتی ہے گویا صالحین اورشب بیدار مومنوں کے لئے توہررات شب برأت ہے مگریہ رات خطاکاروں کے لئے رحمت وعطااوربخشش ومغفرت کی رات ہے اس لئے ہمیں چاہئے کہ اس رات میں اپنے گناہوں پرندامت کے آنسو بہائیں اور رب کریم سے دنیا وآخرت کی بھلائی مانگیں‘اس شب رحمت خداوند ہرپیا سے کوسیراب کردیناچاہتی ہے اورہرمنگتے کی جھولی گوہر مراد سے بھردینے پرمائل ہوتی ہے‘ بقول اقبال‘رحمت الہٰی یہ ندا کرتی ہے۔

ہم تو مائل بہ کرم ہیں کوئی سائل ہی نہیں

راہ دکھلائیں کسی راہرو منزل ہی نہیں

شب بیداری کااہتمام

شب برأت میں سرکاردوعالمﷺ نے خود بھی شب بیداری کی اوردوسروں کوبھی شب بیداری کی تلقین فرمائی آپﷺ کافرمان عالیشان اوپرمذکورہوا کہ جب شعبان کی پندرہویں رات ہوتوشب بیداری کرو اوردن کوروزہ رکھو‘اس فرمان جلیل کی تعمیل میں اکابر علماء اہلسنّت اورعوام اہلسنّت کاہمیشہ یہ معمول رہا ہے کہ اس رات میں شب بیداری کااہتمام کرتے چلے آئے ہیں۔

شیخ عبدالحق محدث دہلوی رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں ’’تابعین میں سے جلیل القدر حضرات مثلاً حضرت خالدبن معدان‘حضرت مکحول‘حضرت لقمان بن عامر اورحضرت اسحٰق بن راہویہ رضی اللہ تعالیٰ عنہم مسجد میں جمع ہوکر شعبان کی پندرہویں شب میں شب بیداری کرتے تھے اوررات بھر مسجد میں عبادات میں مصروف رہتے تھے‘‘۔

(ماثبت من السنہ‘صفحہ202‘لطائف المعارف‘ صفحہ144)

علامہ ابن الحاج مالکی رحمتہ اللہ علیہ شب برأت کے متعلق رقمطرازہیں’’اورکوئی شک نہیں کہ یہ رات بڑی بابرکت اوراللہ تعالیٰ کے نزدیک بڑی عظمت والی ہے‘ ہمارے اسلاف رضی اللہ تعالیٰ عنہم اس کی بہت تعظیم کرتے اوراس کے آنے سے قبل اس کے لئے تیاری کرتے تھے ۔پھرجب یہ رات آتی تووہ خوش وجذبہ سے اس کااستقبال کرتے اور مستعدی کے ساتھ اس رات میں عبادت کیا کرتے تھے کیونکہ یہ بات ثابت ہوچکی ہے کہ ہمارے اسلاف شعائر اللہ کابہت احترام کیاکرتے تھے (المدخل‘جلد1صفحہ392)

مذکورہ بالاحوالوں سے یہ بات ثابت ہوئی کہ اس مقدس رات میں مسجد میں جمع ہوکرعبادات میں مشغول رہنا اوراس رات شب بیداری کااہتمام کرنا تابعین کرام کاطریقہ رہا ہے‘شیخ عبدالحق محدث دہلوی قدس سرہ فرماتے ہیں اب جوشخص شعبان کی پندرہویں رات میں شب بیداری کرے تویہ فعل احادیث کی مطابقت میں بالکل مستحب ہے‘رسول کریمﷺ کایہ عمل بھی احادیث سے ثابت ہے کہ شب برأت میں آپ مسلمانوں کی دعائے مغفرت کے لئے قبرستان تشریف لے گئے تھے(ماثبت من السنہ صفحہ205)

آقاومولیٰ ﷺ نے زیارت قبورکی ایک بڑی حکمت یہ بیان فرمائی ہے کہ اس سے موت یادآتی ہے اورآخرت کی فکر پیدا ہوتی ہے(زیارت قبورکے دلائل وفوائد سے متعلق تفصیلی گفتگوفقیر کی کتاب’’مزارات اولیاء اورتوسل‘‘ میں ملاحظہ فرمائیں۔شب برأت میں زیارت قبور کاواضح مقصد یہی ہے کہ اس مبارک شب میں ہم اپنی موت کویاد رکھیں تاکہ گناہوں سے سچی توبہ کرنے میں آسانی ہو‘ یہی شب بیداری کااصل مقصد ہے۔

اس سلسلے میں حضرت حسن بصری رضی اللہ تعالیٰ عنہ کاایمان افروز واقعہ بھی ملاحظہ فرمائیں منقول ہے کہ جب آپ شب برأت میں گھر سے باہرتشریف لائے توآپ کاچہرہ یوں دکھائی دیتا تھاجس طرح کسی کوقبر میں دفن کرنے کے بعد باہر نکالاگیا ہو۔آپ سے اس کاسبب پوچھاگیاتوآپ نے فرمایاخدا کی قسم میری مثال ایسی ہے جیسے کسی کی کشتی سمندر میں ٹوٹ چکی ہو اور وہ ڈوب رہا ہو اوربچنے کی کوئی امید نہ ہو‘پوچھاگیا آپ کی ایسی حالت کیوں ہے؟ فرمایا میرے گناہ یقینی ہیں‘ لیکن اپنی نیکیوں کے متعلق میں نہیں جانتا کہ وہ مجھ سے قبول کی جائیں گی یا پھرردکردی جائیں گی۔(غنیتہ الطالبین‘ صفحہ250)

اللہ اکبر نیک ومتقی لوگوں کایہ حال ہے جوہررات شب بیداری کرتے ہیں اورتمام دن اطاعت الہٰی میں گزارتے ہیں جب کہ اس کے برعکس بعض لوگ ایسے کم نصیب ہیں جواس مقدس رات میں فکر آخرت اورعبادت ودعا میں مشغول ہونے کی بجائے مزید لہو ولعب میں مبتلاہوجاتی ہیں آتش بازی پٹاخے اوردیگرناجائز امورمیں مبتلاہوکر وہ اس مبارک رات کاتقدس پامال کرتے ہیں‘حالانکہ آتش بازی اورپٹاخے نہ صرف ان لوگوں اوران کے بچوں کی جان کیلئے خطرہ ہیں بلکہ اردگرد کے لوگوں کی جان کیلئے بھی خطرے کاباعث بنتے ہیں‘ایسے لوگ’’مال برباد اورگناہ لازم‘‘کامصداق ہیں۔

ہمیں چاہئے کہ ایسے گناہ کے کاموں سے خود بھی بچیں اوردوسروں کوبھی بچائیں اوربچوں کوسمجھائیں کہ ایسے لغو کاموں سے اللہ تعالیٰ اورا س کے پیارے حبیبﷺ ناراض ہوتے ہیں‘ مجددبرحق اعلیٰ حضرت امام احمد رضا محدث بریلوی رحمتہ اللہ علیہ فرماتے ہیں‘آتشبازی جس طرح شادیوں اورشب برأت میں رائج ہے‘ بے شک حرام اورپورا جرم ہے کہ اس میں مال کاضیاع ہے‘ قرآن مجید میں ایسے لوگوں کوشیطان کے بھائی فرمایا گیا‘ارشا ہوا’’اورفضول نہ اڑابے شک(مال)اڑانے والے شیطانوں کے بھائی ہیں‘‘(بنی اسرائیل)

شعبان کے روزے

حضرت عائشہ صدیقہ رضی اللہ تعالیٰ عنہا فرماتی ہیں کہ’’میں نے آقاومولیٰﷺ کوماہ رمضان کے علاوہ ماہ شعبان سے زیادہ کسی مہینے میں روزے رکھتے نہیں دیکھا‘‘(بخاری مسلم‘مشکوۃ‘جلد1صفحہ441)ایک اورروایت میں فرمایا’’نبی کریمﷺ چند دن چھوڑ کرپورے ماہ شعبان کے روزے رکھتے تھے‘‘(ایضاً۔

آپ ہی سے مروی ہے کہ سرکاردعالمﷺ نے فرمایا شعبان میرا مہینہ ہے اوررمضان میری امت کامہینہ ہے(ماثبت من السنہ‘ صفحہ188)

نبی کریم ﷺ کاارشاد گرامی ہے’’جن لوگوں کی روحیں قبض کرنی ہوتی ہیں ان کے ناموں کی فہرست ماہ شعبان میں ملک الموت کودی جاتی ہے اس لئے مجھے یہ بات پسند ہے کہ میرانام اس وقت فہرست میں لکھاجائے جب کہ میں روزے کی حالت میں ہوں‘‘یہ حدیث پہلے مذکورہوچکی ہے کہ مرنے والوں کے ناموں کی فہرست پندرہویں شعبان کی رات کوتیار کی جاتی ہے‘حضورعلیہ الصلوۃ والسلام کے اس ارشاد سے معلوم ہوتاہے کہ اگرچہ رات کے وقت روزہ نہیں ہوتا اس کے باوجود روزہ دارلکھے جانے کامطلب یہ ہے کہ بوقت کتابت(شب)اللہ تعالیٰ روزہ کی برکت کوجاری رکھتاہے(ماثبت من السنہ‘صفحہ192)
دینی اور اہم مسائل کی جانکاری حاصل کرنے کے لئے رضوی چینل لوہردگا کو سبسکرائب ضرور کریں اور دینی فائدہ لیں، پلیز سبسکرائب ضرور کریں

shabe barat ki namaz

معافی مانگنے کے اصول و ضوابط
माफीनामा❓ शब-ए-बराअत
👉शोशल मिडिया पर माफ़ीनामा की ह़क़ीक़त
वीडियो टाइम ⏰ 08:26
🎤आवाज़👉मुफ़्ती अ़ली ह़ुसैन रज़वी साह़ब

 

معافی مانگنے کے اصول و ضوابط، ایک مرتبہ پڑھکر شیئرضرور کریں
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#پیشکشیوٹوبرضویچینللوھردگا
https://www.youtube.com/channel/UC8Jb9pWR1Fjc2bUp44_hgaw
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15شعبانُ المعظم سے چند دن پہلے سے ہی مسلمانوں میں معافی تلافی کا سلسلہ شروع ہو جاتا ہے اس کے لئے سوشل میڈیا وغیرہ کے ذریعے میسج کا استعمال کثرت سے ہوتاہے. یقیناً معافی مانگنا اور معاف کرنا بہت اچھا طریقہ ہے مگر اس کے کچھ آداب بھی ہیں جنہیں ملحوظ خاطر رکھنا چاہئے:-

دورِ حاضر میں موبائل فون اور سوشل میڈیا کے ذریعے رابطے زیادہ ہوگئے ہیں اور اصلی میل جول نہ ہونے کے برابر رہ گیا ہے-
بلکہ حقیقت یہ ہے کہ سوشل میڈیا کے رابطوں سے جن دوستوں اور رشتہ داروں کے ساتھ خلوص اور اخلاق کے تعلقات کے بلند و بانگ دعوے کیئے جاتے ہیں اگر وہ اصل میں ملنے آجائیں تے , اکثر لوگوں کے منہ پر 12 بجے ہوئے نظر آتے ہیں- اور ان آنے والوں کی پیٹھ پیچھے برائیوں کے دفتر کھولے جاتے ہیں –

اس سب کے باوجود اگر دو بدو یعنی آمنے سامنے معافی مانگی جائے تو زیادہ بہتر ہے , لیکن اگر کوئی بہت دور ہے اور اس کا آمنے سامنے آنا ممکن نہیں ہے تو فون پر بھی معافی مانگ سکتا ہے-

لیکن یہ یاد رہے کہ: جس کی حق تلفی کی ہے اسی سے معافی مانگی جائے , اور اس کا جو حق تلف کیا ہے وہ بھی ادا کریں اور پھر اسے فون کرے ,
نہ کہ میسج-
کیونکہ بعض دفعہ لوگ میسج نہیں پڑھتے – اور جس کی حق تلفی کی ہوتی ہے اسے میسج پہنچ تو گیا ہوتا ہے لیکن وہ پڑھ نہیں پاتا- لہذا فون یعنی کال کرنا زیادہ بہتر ہے-

اگر آپ کو مکمل علم ہو کہ اگلا شخص جس سے آپ معافی مانگ رہے ہیں وہ آپ کا میسج پڑھے گا, اور معافی کی رپلائی کرے گا تو میسج بھی کر سکتے ہیں-
مزید یہ کہ
معافی کے اعتبار سے حقوق تو بہت ہیں مگر

تین حقوق بہت اہم ہیں.

1-پہلے ہر انسان یہ سوچے کہ اس نے آج تک کی زندگی میں اللہ عزوجل کے کون سے حقوق ہیں جن میں کوتاہی کی ہے

ان سب کو بھی پیش نظر رکھ کر سب سے پہلے ندامت و شرمساری سے اپنے مالک و خالق سے معافی طلب کرے اور آئندہ حقوق اللہ کو ادا کرکے حق تلافی کی کماحقہ کوشش کرے..
اس کے بعد

2-نبی کریم صلی اللہ علیہ والہ وسلم کے حقوق بطور امتی ہم پر کیا ہیں اور آج تک ہم نے کس کس سنت مبارکہ سے اعراض کیا ہے اس کی بھی معافی طلب کرے اور آئندہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے اسوہ حسنہ پر چل کر حق تلافی کا ثبوت پیش کرے..
اس بعد

3- مخلوق کے حقوق جو ہم پر ہیں
جن کے ساتھ ہمارے معاملات
رشتہ دار، میاں،بیوی ماں باپ، محلے دار دوست احباب اساتذہ کرام. طلباء، پیر،مرید،امیر غریب،چوکیدار نیز ہر ہر وہ شعبہ جو ہمارے اور لوگوں کے درمیان ایک رابطے واسطے کا ذریعہ ہے ان سےمنسلک لوگوں سے اپنے رویوں پر معافی طلب کیجیے اور انہیں منائیے راضی کیجیے، ان کے حقوق دیجیے، انہیں عزت نفس دیجیے، اگر ان میں سے کسی کے ساتھ آپ کی کوئی شکر رنجی ہوئی ہے اسے محبت و ادب سے دور کیجیے،
معافی کے بعد جن جن حقوق پامال کیئے تھے ان کے حقوق کی تلافی لازمی ہے ,مثلاً کسی کا مال. پیسہ,جائداد,زیور,کپڑے, الغرض کوئی بھی حق مارا ہو تو وہ ادا کریں اور پھر معافی مانگیں-

کیا عجیب دھن ہے…

کسی کی ماں ناراض ہے

کسی کا باپ ناراض ہے

کسی کا بھائی ناراض ہے

کسی کی بہن ناراض ہے

کسی کا شوہر ناراض ہے

کسی کی بیوی ناراض ہے

کسی کا پڑوسی ناراض ہے

کسی کا دوست ناراض ہے

کسی کا رشتےدار ناراض

اور ہم فیس بک اور واٹس ایپ پر لوگوں سے معافی مانگ رہے ہیں جو ہم سے ناراض نہیں یا جنہیں ہم جانتے تک نہیں
ہم سب پہلے ان سے معافی مانگیں جو ہم سے ناراض ہیں یا ہم نے کسی کی دل آزاری کی ہو-
اللہ عزوجل اپنے حبیب مکرم ﷺ کے صدقے ہم سب مسلمانوں کوآپس میں اتفاق و اتحاد نصیب فرمائے۔امین.

واللہ تعالٰی اعلم ورسولہ اعلم عزوجل و ﷺ

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बेरी के पत्तों से ग़ुस्ल करने की फ़ज़ीलत
💖 बेरी के पत्तों से ग़ुस्ल करने की फ़ज़ीलत

🌟शबे बरात के दिन 14 शाबानुल मुअज्जम को सूरज गुरुब होने से पहले गुस्ल करना बला व सहर जादू और वबा से निजात है का मुजिब है और बेहतर यह है कि बेरी के सात पत्ते पीसकर या उबाल कर पानी में मिलाए फिर उस पानी से गुस्ल करें इमाम अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत आला हज़रत कुद्दुससिर्रहुल अज़ीज़ और सय्यदी मुरशिदी सरकार मुफ्ती आज़म हिन्द अलैहिरहमत वरिदवान का इस पर अमल था हज़रत मुफ्ती काजी अब्दुररहीम बस्तवी रहमतुल्लाह अलैह ने मजमूआ ए आमाल रज़ा में ज़िक्र फ़रमाया है। और बेहतर यह है कि शाबानुल मुअज्जम की 14 तारीख़ को अपने मुसलमान भाईयो के हुकूक को माफ़ कर दें और”उनसे अपने हुकूक माफ करा लें ताकि ज़िम्म से हुकूकुल इबाद साक़ित हो जाए और मुसलमान भाईयो को चाहिए कि मुसलमान भाई माज़रत लाए तो कुबूल करें और दिल से माफ़ कर दें।

📜हदीस शरीफ़ में है जिसके पास उसका मुसलमान भाई माज़रत लाए वाजिब है कि कुबूल कर ले वरना हौज़े कौसर पर आना न मिलेगा।

(📚फ़ज़ाइले शबे बराअत सफ़ह,14)

shabe barat ki dua

शबे क़द्र के वज़ाइफ़
📿शबे क़द्र के वज़ाइफ़ 📿

📿( 1 ) अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी बार बार पढ़ें ।

📿( 2 ) ला इलाहा इलल्लाह खूब कसरत से पढ़ें कि यह अफ़ज़ल ज़िक्र है ।

📿( 3 ) कम अज़ कम दस आयतों की तिलावत शबे क़द्र की निय्यत से करें ।

📿4 ) कुरआने मजीद की तिलावत में मसरूफ़ रहें कि तिलावते कुरआन बहुत ही अहम वज़ीफ़ा और अफ़ज़ल व बा बरकत ज़िक्र ।

📿( 5 ) हुजूर अलैहिस्सलाम पर अदब व एहतिराम के साथ | दुरूद पढ़ें कियह सआदत और खुशनसीबी की पहचान है ।

📿( 6 ) सुब्हानल्लाहि वबि हम्दिहि सुब्हानल्लाहिल अज़ीम | इसके पढ़ने वाले के लिये जन्नत में पोढ़ा लगा दिया जाता है ।

📿( 7 ) सुब्हानल्लाहि वलहम्दु लिल्लाहि वला इलाहा इलल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीम ।

📿( 8 ) अल्लाहुम्मग़ फ़िर लीवरहम्नी वहदिनिवर जुक़नीव आफ़िनी ।

📿( 9 ) अस्तग़फ़िरुल्लाहा रब्बियल अज़ीम ला इलाहा इल्ला हुवल हय्युल कय्यूम मिन कुल्लि ज़म्बिंव व अतूबुइलैहिला हौला वला कुव्वत इल्ला बिल्ला हिल अलिय्यिल अज़ीम । तीन बार ।

📿( 10 ) ला इलाहा इलल्लाहु वह दहु लाशरी का लहू , लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर । दस बार फिर हाथों को उठाकर पूरी तवज्जोह के साथ दुआ मांगे अपने I लिये , वालिदैन के लिये , दोस्त व अहबाब , भाई बहन अहलो अयाल और तमाम उम्मते मुस्लिमा के लिये , अपनी मुरादें मांगें , इन्शाअल्लाह आपकी दुआ कुबूल होगी ।

✨इसलिये कि जिन वक़्तों में अल्लाह तआला अपने बन्दों की दुआ कुबूल फ़रमाता है उनमें शबे क़दर भी है । और अल्लाह तआला ने वादा फ़रमाया है जो बन्दा उससे दुआ करेगा उसकी । दुआ ज़रूर कुबूल फ़रमाएगा बशर्ते कि बन्दा अपने रब की फ़रमाँ बरदारी करे , उसका हुक्म माने और उस पर ईमान रखे जैसाकि सूरए बक़रह , आयत नं . 186 में इरशाद हुआ ।

📍नोट : अगर आपके ज़िम्मे कज़ा ए उमरी नमाजें हैं तो पहले उन्हें अदा करें इनका अदा करना वाजिब इनके अदा किए बगैर आप जितने भी नफ्ल पढ़नगें वो कुबूल नहीं है ।

📕 माहे रमज़ान आया, सफा 37/38

shabe barat namaz

पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से
. पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से

पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से
हदीस मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि “जब शाबान की 15वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदाये तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफिरत का तलबगार कि मैं उसे बख्श दूं है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला कि मैं उसे रिहाई दूं रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक कि फज्र तुलु हो जाती है
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398
📕 मिश्कात,सफह 115
📕 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52

हदीस उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया कि आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था,जब हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था कि अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा कि शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,तो आप फरमाते हैं कि आज शाबान की 15वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है
📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389
📕 मिश्कात,सफह 114

ⓩ सोचिये कि जब एक नबी कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर उम्मती क्यों नहीं जा सकते, इस हदीस से कब्रिस्तान और मज़ारों पर जाना साबित हुआ

हदीस हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं
📕 निसाई,जिल्द 3,सफह 269

⏮ SAWAL ➖SHAB E BARAT KYA HAI AUR ISKI KYA AHMIYAT HAI❓

हदीस हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390

फुक़्हा बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें
📕 बारह माह के फज़ायल,सफह 406

फुक़्हा जो इस रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा
📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132

फुक़्हा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95

फुक़्हा अगर इस रात पानी में बैर की 7 पत्ती को जोश देकर उसे ग़ुस्ल करे तो इन शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा
📕 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77

ⓩ नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें कि नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहे वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि फर्ज़ ज़िम्मे पर बाकी ना हो,लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो इस रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि

फुक़्हा एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,नियत यूं करें सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर कह कर नियत बांध लें युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे,क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करने के बाद ज़ुहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदना मुहम्मदिंव व 1आलिही कह कर सलाम फेर दें, वित्र की तीनों रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62

हदीस उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द थे
📕 बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682

फुक़्हा शबे बरात में हलवा पका कर ईसाले सवाब करना जायज़ और बेहतर है
📕 जन्नती ज़ेवर,,

shabe barat image

 

शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से
【ﺑِﺴْــــــــــــــﻢِﷲِﺍﻟـــﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلْـــرﺣـــــــــــِﻴﻢ】

【اَلصَّلٰوةُ وَالسلَامُ عَلَي٘كَ يَارَسُوٌلَ الـلّٰهِ ﷺ】

 

पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से

हदीस – मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि “जब शाबान की 15वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदाये तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफिरत का तलबगार कि मैं उसे बख्श दूं है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला कि मैं उसे रिहाई दूं रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक कि फज्र तुलु हो जाती है
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398
📕 मिश्कात,सफह 115
📕 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52

हदीस – उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया कि आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था,जब हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था कि अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा कि शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,तो आप फरमाते हैं कि आज शाबान की 15वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है
📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389
📕 मिश्कात,सफह 114

ⓩ सोचिये कि जब एक नबी कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर उम्मती क्यों नहीं जा सकते,इस हदीस से कब्रिस्तान और मज़ारों पर जाना साबित हुआ

हदीस – हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं
📕 निसाई,जिल्द 3,सफह 269

हदीस – हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390

फुक़्हा – बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें
📕 बारह माह के फज़ायल,सफह 406

फुक़्हा – जो इस रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा
📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132

फुक़्हा – हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95

फुक़्हा – अगर इस रात पानी में बैर की 7 पत्ती को जोश देकर उसे ग़ुस्ल करे तो इन शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा
📕 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77

ⓩ नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें कि नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहे वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि फर्ज़ ज़िम्मे पर बाकी ना हो,लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो इस रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि

फुक़्हा – एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,नियत यूं करें सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर कहकर नियत बांध लें युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे,क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करने के बाद ज़ुहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदना मुहम्मदिंव व आलिही कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62

हदीस – उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द थे
📕 बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682

फुक़्हा – शबे बरात में हलवा पकाकर ईसाले सवाब करना जायज़ और बेहतर है
📕 जन्नती ज़ेवर,सफह 123

ⓩ मगर अवाम में जो ये मशहूर है कि इस दिन हज़रत उवैस करनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की फातिहा करते हैं और इसकी दलील ये देते हैं कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का जंगे उहद में दन्दाने मुबारक शहीद होने की खबर सुनकर हज़रत उवैस करनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने सारे दांत तोड़ डाले थे ये रिवायत सही नहीं है बल्कि शबे बरात और हज़रत उवैस करनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु में कोई कनेक्शन नहीं है,हां रही बात ईसाले सवाब की तो बिलकुल हज़रत उवैस करनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का नाम भी नज़्र में शामिल किया जाए इसमें कोई हर्ज नहीं मगर लोगों की इस्लाह की जाए कि बे अस्ल बातों से परहेज़ करें,युंही फातिहा व नज़रों नियाज़ हर उस चीज़ पर कर सकते हैं जिसका खाना जायज़ है उसके लिए किसी खास खाने की क़ैद लगाना भी दुरुस्त नहीं है लिहाज़ा जिसके जो दिल में आये पकाकर ईसाले सवाब करे,फातिहा मर्द व औरत में कोई भी दे सकता है बेहतर है कि जो सही क़ुर्आन पढ़ सकता हो वही फातिहा दे,तरीक़ा ये है

फातिहये रज़विया
दुरुदे ग़ौसिया 7 बार
सूरह फातिहा 1 बार
आयतल कुर्सी 1 बार
सूरह इख्लास 7 बार
फिर दुरुदे ग़ौसिया 3 बार

अब हाथ उठाकर बिस्मिल्लाह शरीफ और दुरुदे पाक शरीफ पढ़ें उसके बाद इस तरह बख्शें और युं कहें कि या रब्बे करीम जो कुछ भी मैंने ज़िक्रो अज़कार दुरुदो तिलावत की (या जो कुछ भी नज़रों नियाज़ पेश है) इनमे जो भी कमियां रह गई हों उन्हें अपने हबीब के सदक़े में माफ फरमा कर क़ुबूल फरमा,मौला इन तमाम पर अपने करम के हिसाब से अज्रो सवाब अता फरमा,इस सवाब को सबसे पहले मेरे आक़ा व मौला जनाब अहमदे मुजतबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की बारगाह में पहुंचा,उनके सदक़े व तुफैल से तमाम अम्बियाये किराम,सहाबाये किराम,अहले बैते किराम,औलियाये किराम,शोहदाये किराम,सालेहीने किराम खुसूसन हुज़ूर सय्यदना ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा,इन तमाम के सदक़े तुफैल से इसका सवाब तमाम सलासिल के पीराने ओज़ाम खुसूसन हिंदल वली हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में पहुंचा,बिलखुसूस सिलसिला आलिया क़ादिरिया बरकातिया रज़विया नूरिया के जितने भी मशायखे किराम हैं खुसूसन आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा खान रज़ियल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में पहुंचा,मौला तमाम के सदक़े व तुफैल से इन तमाम का सवाब खुसूसन ……….. को पहुंचाकर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आज तक व क़यामत तक जितने भी मोमेनीन मोमिनात गुज़र चुके या गुज़रते जायेंगे उन तमाम की रूहे पाक को पहुंचा फिर अपनी जायज़ दुआयें करके दुरुदे पाक और कल्मा शरीफ पढ़कर चेहरे पर हाथ फेरें

 

 

 

shabe barat mubarak images

 

shabe barat date

 

शाबानुल मुअ़ज़्ज़म की फ़ज़ीलत
माहे शाबानुल मुअ़ज़्ज़म की फ़ज़ीलत

 

माहे शाबानुल मुअज़्ज़म की फज़िलत

🌸हदीसे नबवी(ﷺ)🌸

💎हुज़ूर नबी-ए-करीम (ﷺ) सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का शाबानुल मुअज़्ज़म के बारे में फरमान है की…

❝ शाबान मेरा महीना है और रमज़ान अल्लाह (عَزَّوَجَلَّ) का महीना है.!❞

● सुब्हान’अल्लाह.! माहे शाबानुल मुअज़्ज़म की अज़्मतो पर कुर्बान.! इसकी फज़िलत के लिये इतना ही काफी है के हमारे आक़ा (صلى الله عليه وسلم) ने इसे “मेरा महीना” फ़रमाया.!

🍀शाबान के ५ हरुफ़ की बहारे🍀
🌹⬇🌹⬇🌹⬇
🌺हज़रत Gause आज़म (رضي الله عنه) लफ्ज़ “शाबान” के ५ हरुफ़ के मुतअल्लिक़ नकल फरमाते है…
★ शिन : से मुराद “शरफ” यानी बुज़ुर्गी,
★ ऍन : से मुराद “उलुव्व्” यानी बुलंदी,
★ बा : से मुराद “बीर” यानी एहसान व भलाई,
★ अलिफ़ : से मुराद “उल्फ़त” और,
★ नून : से मुराद “नूर” है.!

👉🏽तो ये तमाम चीज़े अल्लाह (عَزَّوَجَلَّ) अपने बन्दों को इस महीने में अता फरमाता है, ये वो महीना है जिस में नेकियों के दरवाज़े खोल दिये जाते है, बरकतों का नुज़ूल होता है, खताए मिटा दी जाती है और गुनाहो का कफ़्फ़ारा अदा किया जाता है, और हुज़ूर (ﷺ) पर दुरुदे पाक की कसरत की जाती है और ये नबी-ए-मुख्तार (صلى الله عليه وسلم) पर दुरुद भेजने का महीना है.!

•–⚀•RєԲ:➻┐
📚गुन्यातू-तालिबिन, जिल्द नंबर:१, सफ़ा नंबर:३४१.
📚आक़ा का महीना, सफ़ा नंबर:२-३.
🌺🌺🌺🌺🌺🌺

🌴ऐ अल्लाह (عَزَّوَجَلَّ)… हमे पढ़ने, लिखने, सुन्ने, सुनाने से ज़्यादा अमल करने की तौफ़ीको रफ़ीक अता फ़रमा.
●آمِيّنْ يَارَبَّ الْعَالَمِين.
●आमीन… या रब्बुल आलमीन.

 

 

 

 

shabe barat ki fazilat

 

उ़म्र भर की क़ज़ा नमाज़ों को अदा करने का त़रीक़ा ( क़ज़ाए उ़म्री )

 

ऐसे लोग जिनकी पिछली नमाज़ें बाक़ी हैं वो कज़ा नमाज़ें पढ़ें।
कज़ा नमाज़ें जल्द से जल्द अदा करना बहुत ज़रूरी है मालूम नहीं कि कब मोत आ जाए।
आपको फुर्सत का जो भी वक्त मिले उसमें कज़ा नमाज़ें पढ़ते रहें यहां तक के पूरी हो जाएं

आलाहज़रत ने कज़ा नमाज़े पढने का आसान तरीका बताकर मुशकिल आसान कर दी
_इस सिलसिले में आ़ला हज़रत इरशाद फरमायते हैं कि एक दिन की कज़ा 20 रकअतें होती है फज्र मे=2 जोहर मे=4 असर में=4 मगरिब में= 3 ओर इशा में 4 फ़र्ज़ ओर 3 वित्र
कुल =20

उम्र भर क़ज़ा नमाज़ों का हिसाब
जिसने कभी नमाज़ ही नहीं पढ़ी हो ओर तोफीक़ हुई ओर क़ज़ा ए उ़म्री पढ़ना चाहते हैं तो वो जब से बालिग़ हुआ है उस वक़्त से नमाज़ों का हिसाब लगाए ओर तारीखे बुलूग़ (बालिग़ होने की तारीख़) भी नहीं मालूम तो अहतियात इसी मे है के ओरत की नो साल की उम्र से ओर मर्द की 12 साल की उम्र से नमाज़ों का हिसाब लगा कर पढ़ें जल्द पढें न कम पढ़ें
अगर ज़्यादा पढी तो कोई बात नही नफल मे शुमार जाएंगी
हवाला= फतावा रज़विया,जिल्द 8 सफहा नं. 104

क़ज़ा करने में तरतीब– पढने वाले को इख्तियार है कि चाहे तो पहले फज्र की सब नमाज़े अदा करले फिर तमाम ज़ोहर की नमाज़ें इसी तरह असर फिर मग़रिब फिर इशा की पढें।

फर्ज़ नमाज़ बाक़ी हो तो नफिल नमाज़ कूबूल नहीं होती– कज़ा नमाज़ें नफिल नमाज़ों से ज़्यादा क़ीमती हैं ओर अहम हैं इसलिए एसे हमको चाहिए वक़्त पर जो नमाज़ पढते हैं उसमे नफिल की जगह क़ज़ा नमाज़ें पढ़ें ताकि कज़ा जल्द ख़त्म हो जाए

कज़ा नमाज़ों की नियत का तरीक़ा– नियत की मैंने सबसे पहली फ़ज्र की (या पहली ज़ोहर या अस्र की) जो मुझसे कज़ा हुई। वास्ते अल्लाह तआला के, मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहुअकबर (हर बार इसी तर नियत करें)

पहली आसानी– अगर चार फर्ज़ पढ़ रहे हैं तो तीसरी ओर चोथी रकात में अल्हम्दू शरीफ न पढ़कर उसकी जगह तीन बार सुब्हानल्लाह कहकर रुकूअ में चले जाएं

दूसरी आसानी– रुकूअ में तीन बार
“सुबहा- न – रब्बियल् अज़ीम” कहने की बजाए एक बार कहें। इसी तरह सज्दे में तीन बार
“सुब्हा- न – रब्बियल् आला” कहने की बजाए एक बार कहें

तीसरी आसानी– अत्तहीयात पढ़ने के बाद अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यिदिना मुहम्मदियूं व आलिही पढ़कर सलाम फेर दें अत्तहीयात के बाद दोनों दुरूद ओर दुआ न पढ़ें

चोथी आसानी– इशा की वित्र में तीसरी रकअत में दुआए क़ुनूत की जगह तीन या एक बार रब्बिग़फ़िरली कहें ओर रुकूअ में चले जाएं

नोट– 1. मगर वित्र की तीनों रकाअतों में अल्हम्दु शरीफ़ ओर सूरत दोनों ज़रूर पढ़ें।
2.मस्जिद में या लोगों की मोजूदगी में अगर वित्र की कज़ा पढ़ें तो तकबीरे क़ुनूत के लिए हाथ न उठाएं
3. नमाज़ के बाकी हिस्से को आम तरीके़ से पढ़ें
4. सफर की नमाज़ें क़स्र ही पढ़ी जाएंगी
5. तरावीह की कज़ा नहीं होती

ध्यान दें Aसूरज निकलने से लेकर बीस मिनट तक
ओर सूरज डूबने के बीस मिनट पहले से सूरज डूबने तक कोई नमाज़ जाइज़ नहीं । इसी तरह ठीक दोपहर (ज़वाल का वक़्त) ये तक़रीबन चालीस पचास मिनट होता है इन वक़तों में किसी भी तरह की नमाज़ पढ़ना जाइज़ नहीं है
हवाला– फतावा रज़विया

B आज अकसर लोग नमाज़ में पैन्ट या पाजामे की मोहरी पांयचे को लपेट कर चढ़ाते हैं जो मुकरूहे तहरीमी है
हदीष पाक में है कि रसूलुल्लाहﷺ ने फरमाया कि मुझे हुक्म दिया गया कि मैं सात हड्डियों पर सजदा करूं- पेशानी, दोनो हाथ, दोनो घुटने, दोनो पंजे ओर ये हुक्म दिया गया के नमाज़ में कपङे ओर बाल न समेटूं
हवाला– मिश्कात शरीफ पेज नं. 83
👆 इस हदीष पाक में साफ साफ कहा गया है कि नमाज़ में कपड़े का मुड़ा या सिमटा या चढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए।

C कुछ लोग नमाज़ में क़ुरआन की तिलावत करते वक़्त सिर्फ़ होंट हिलाते हैं ओर आवाज़ बिल्कुल नहीं निकालते हैं इस तरह पढ़ने से नमाज़ नही होगी । आहिस्ता पढ़ने का मतलब यह है कि कम से कम इतनी आवाज़ निकले कि कोई रुकावट (शोर) न हो तो खुद सुन ही ले
इसी तरह नमाज़ के बाहर भी अगर क़ुरआन पढ़ें तो खुद सुनले
आओ इ़ल्म दीन सीखें और सिखाएं …✍🏻

 

 

 

 

 

shabe barat status

400

2 December

shabe barat ki namaj

शबे बरात, मगरिब के बाद 6 नवाफ़िल
💝शबे बरात मगरिब के बाद 6 नवाफ़िल
#पेशकशयूट्यूबरज़वीचैनललोहरदगा
https://youtu.be/aIH3pnxjK3E
📝मामुलाते औलियाए किराम से है के मगरिब के फ़र्ज़ व सुन्नत वग़ैरह के बाद 6 रकअत नफ्ल 2-2 रकअत कर के अदा किये जाए।

✨पहली 2 रकअत इस की निय्यत से पढ़े “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से मुझे दराज़िये उम्र बिलखैर अता फ़रमा”

⭐दूसरी 2 रकअत “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से बालाओं से मेरी हिफाज़त फ़रमा”

💎तीसरी 2 रकअत “या अल्लाह इन 2 रकअत की बरकत से मुझे अपने सिवा किसी का मोहताज न कर”

➡ इन 6 रकअतो में सूरतुल फातिहा के बद जो चाहे वो सूरत पढ़ सकते है, बेहतर ये है के हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद 3 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये।

♻हर दो रकअत के बाद 1 बार सुरह यासीन शरीफ पढ़िये या 21 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये बल्कि हो सके तो दोनों ही पढ़ लीजिये।

हर बार सूरह यासीन शरीफ के बाद “दुआए निस्फ़े शाबान” भी पढ़िये,

(📚फ़ज़ाइले शबे बराअत सफ़ह,14)
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شب برأت کی فضیلت، حُضور تَاجُ الشَّریعَہ عَلَیہِ الرَّحمَہ کی مبارک آواز میں لنک پر کلک کر کے سماعت فرمائیں-
https://youtu.be/uEA2QjeK7Yg
शबे-बारात की फ़ज़ीलत, हुज़ूर ताजुश्शरिआ़ अ़लैहिर्रह़मह वर्रिज़वान की मुबारक आवाज़ में लिंक पर क्लिक कर के समाअ़त फ़रमाऐं।
📢📢📢📢📢📢📢

💖 बेरी के पत्तों से ग़ुस्ल करने की फ़ज़ीलत
https://youtu.be/BjnZRfhJzbM
🌟शबे बरात के दिन 14 शाबानुल मुअज्जम को सूरज गुरुब होने से पहले गुस्ल करना बला व सहर जादू और वबा से निजात है का मुजिब है और बेहतर यह है कि बेरी के सात पत्ते पीसकर या उबाल कर पानी में मिलाए फिर उस पानी से गुस्ल करें इमाम अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत आला हज़रत कुद्दुससिर्रहुल अज़ीज़ और सय्यदी मुरशिदी सरकार मुफ्ती आज़म हिन्द अलैहिरहमत वरिदवान का इस पर अमल था हज़रत मुफ्ती काजी अब्दुररहीम बस्तवी रहमतुल्लाह अलैह ने मजमूआ ए आमाल रज़ा में ज़िक्र फ़रमाया है। और बेहतर यह है कि शाबानुल मुअज्जम की 14 तारीख़ को अपने मुसलमान भाईयो के हुकूक को माफ़ कर दें और”उनसे अपने हुकूक माफ करा लें ताकि ज़िम्म से हुकूकुल इबाद साक़ित हो जाए और मुसलमान भाईयो को चाहिए कि मुसलमान भाई माज़रत लाए तो कुबूल करें और दिल से माफ़ कर दें।

📜हदीस शरीफ़ में है जिसके पास उसका मुसलमान भाई माज़रत लाए वाजिब है कि कुबूल कर ले वरना हौज़े कौसर पर आना न मिलेगा।
https://youtu.be/aIH3pnxjK3E

(📚फ़ज़ाइले शबे बराअत सफ़ह,14)

shabe barat date 2023

400

5 days

shabe barat dua

 

शबे बरात में मग़रिब के बाद 6 रकात नवाफ़िल
शबे बरात में मगरिब के बाद 6 नवाफ़िल

📝मामुलाते औलियाए किराम से है के मगरिब के फ़र्ज़ व सुन्नत वग़ैरह के बाद 6 रकअत नफ्ल 2-2 रकअत कर के अदा किये जाए।

✨पहली 2 रकअत इस की निय्यत से पढ़े “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से मुझे दराज़िये उम्र बिलखैर अता फ़रमा”

⭐दूसरी 2 रकअत “या अल्लाह इन 2 रकअतो की बरकत से बालाओं से मेरी हिफाज़त फ़रमा”

💎तीसरी 2 रकअत “या अल्लाह इन 2 रकअत की बरकत से मुझे अपने सिवा किसी का मोहताज न कर”

➡ इन 6 रकअतो में सूरतुल फातिहा के बद जो चाहे वो सूरत पढ़ सकते है, बेहतर ये है के हर रकअत में सूरतुल फातिहा के बाद 3 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये।

♻हर दो रकअत के बाद 1 बार सुरह यासीन शरीफ पढ़िये या 21 बार सूरतुल इखलास पढ़ लीजिये बल्कि हो सके तो दोनों ही पढ़ लीजिये।

हर बार सूरह यासीन शरीफ के बाद “दुआए निस्फ़े शाबान” भी पढ़िये,

(📚फ़ज़ाइले शबे बराअत सफ़ह,14)

 

shabe barat ki fatiha kiske naam se hoti hai

 

 

शबे बरात में पढ़ी जाने वाली चन्द नफ़्ल नमाज़ें
शबे बरात में पढ़ी जाने वाली चन्द नफ़्ल नमाज़े

इस रात (शब ए बरात) 7 पत्ते बेरी के लेकर पानी में डालकर पानी गरम कर लें, जब पानी नहाने लायक हो जाए तो उस पानी से ग़ुस्ल कर लें, अल्लाह ने चाहा तो पूरे साल जादू के असर से महफ़ूज़ रहेंगें।

जिनको भी👆ग़ुस्ल करना हो वो सब अलग अलग पानी गरम करें।

1️⃣ मग़रीब की नमाज़ के बाद ग़ुस्ल कर के 2 रक्अ़त नमाज़ तहयतुल वज़ु पढ़ें।
उस के बाद 8 रक्अ़त नमाज़ ए नफ़्ल, 4 सलाम से अदा करें। हर रक्अ़त में बाद अलहम्द शरीफ़ के सुरह इख़्लास 5 बार पढ़ें तो गुनाहों से पाक होगा, दुआएं क़ुबूल होंगी और सवाब ए अज़ीम हासिल होगा।
📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 14

2️⃣ 4 रक्अ़त नफ़्ल एक सलाम से पढ़ें हर रक्अ़त में बाद अलहम्द शरीफ़ के सुरह इख़्लास 50 बार पढ़ें तो गुनाहों से बाहर आएगा जैसा कि शिकम ए मादर से निकला था।
📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 14

3️⃣ 2 रक्अ़त नमाज़ पढ़ें हर रक्अ़त में बाद अलहम्द शरीफ़ के आयतलकुर्सी 1 बार और सुरह इख़्लास 15 बार बाद सलाम के दुरुद शरीफ़ 100 बार पढ़ें तो रिज़्क़ में उसअ़त होगी, ग़म व अलम से निजात मिलेगी, गुनाहों की बख़्शीश व मग़फ़ीरत होगी।
📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 14

4️⃣ 14 रक्अ़त नमाज़ ए नफ़्ल, 7 सलाम से अदा करें हर रक्अ़त में बाद अलहम्द शरीफ़ के जो सुरत चाहें पढ़ें बाद फ़ारिग़ नमाज़ के 100 मर्तबा दुरुद शरीफ़ पढ़ कर जो भी दुआ मांगे क़ुबूल होंगी।
📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 14

5️⃣ सलात ए फ़ातिमतुज़ ज़हरा رضی اللہ تعالٰی عنہا
➡️ इसे पढ़ने का तरीक़ा 8 रक्अ़त, 1 सलाम, 4 क़ायदा के साथ पढ़ें और हर रक्अ़त में बाद अलहम्द शरीफ़ के सुरह इख़्लास 11 बार पढ़ें और इसका सवाब हज़रत ए फ़ातमा رضی اللہ تعالٰی عنہا को बख़्शें। तो हज़रत ए फ़ातमा رضی اللہ تعالٰی عنہا फ़रमाती हैं कि मैं हरगिज़ क़दम न रखुगीं जन्नत में जब तक कि उस की शफ़ाअत न कराऊ।
📚ग़ुनियतुत तालिबिन
📚तीन नुरानी रातें, सफ़ा 16

6️⃣ इस रात सलातु तसबीह ज़रूर पढ़ें इसे पढ़ने का तरीक़ा 4 रक्अ़त, 1 सलाम से इस तरह अदा करें……

पहले नियत कर के सना के बाद 15 मर्तबा سُبْحَانَ اللّٰهِ وَ الْحَمْدُ لِلّٰهِ وَلَا اِلٰهَ اِلَّا اللّٰهُ وَ اللَّهُ اَكْبَرْ पढ़ें, उसके बाद اعوذ باللّٰه और بسم اللّٰه पढ़ें फिर अलहम्द शरीफ़ पढ़ें उसके बाद कोई और सुरत पढ़ कर 10 मर्तबा यही तसबीह पढ़ें, फ़िर रुकुअ़ में سُبْحَانَ رَبِّىَ العَظِيْم पढ़ने के बाद 10 बार फिर यही तसबीह पढ़ें, रुकुअ़ से सर उठाने के बाद फिर 10 बार यही तसबीह पढ़ें, फिर पहले सजदे में سُبْحَانَ رَبِّىَ الْاَعْلىٰ के बाद 10 बार फिर यही तसबीह पढ़ें, फिर सजदा से सर उठा कर 10 बार यही तसबीह पढ़ें, फिर दुसरे सजदे में سُبْحَانَ رَبِّىَ الْاَعْلىٰ के बाद 10 बार फिर से यही तसबीह पढ़ें। यानी 1 रक्अ़त में 75 बार तसबीह हुई। इसी तरह 4 रक्अ़त अदा करें। 4 रक्अ़त में पुरे 300 बार तसबीह हो जाएगी। बाद फ़ारिग़ ए नमाज़ इसतिग़फ़ार, दुरुद शरीफ़ 100-100 बार पढ़ कर सजदे में सर रख कर ख़ुदा ए तआला से नेक तौफ़िक़ की दुआ करें।
📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 15

7️⃣ इस रात में तीन मर्तबा सुरह यासीन शरीफ़ की तिलावत करनी चाहिए। पहली मर्तबा दराज़ी उम्र की नियत से दुसरी मर्तबा कुशादगी रिज़्क़ की नियत से और तीसरी मर्तबा दफ़ा ए अमराज़ व बलयात की नियत से। उसके बाद दुआ ए निस्फ़ शाअ्बान पढ़ें….

📚 तीन नुरानी रातें, सफ़ा 15
चन्द ज़रूरी मसाइल…..

➡️ बिला उज़रे शरई नमाज़ कज़ा कर देना बहुत सख़्त गुनाह है. उस पर फ़र्ज़ है कि उस की कज़ा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा करे।
📚क़ानून ए शरीअ़त, हिस्सा 1, सफ़ा 150

➡️ कज़ा नमाज़ें नवाफ़िल से अहम हैं यानी जिस वक़्त नफ़्ल पढ़ता है उन्हें छोड़ कर उन के बदले कज़ाएं पढ़े ताकि बरीउज़िम्मा हो जाए👇।
https://youtu.be/aIH3pnxjK3E
📚क़ानून ए शरीअ़त, हिस्सा 1, सफ़ा 153

ज़्यादा से ज़्यादा क़ज़ा नमाज़ पढने की कोशिश करें

जिस के ज़िम्मा बरसों की नमाज़ें क़ज़ा हों और ठीक याद ना हो कि कितने दिन से कोन – कोन क़ज़ा हुई, तो वह यूं नियत कर के पढ़े कि सबसे पहली फ़ज्र जो मुझ से क़ज़ा हुई उस को अदा करता हुँ या सब में पहली ज़ुहर, अस्र जिस की क़ज़ा पढ़ना चाहे उस की नियत करे और उसी तरह सब नमाज़ों की क़ज़ा पढ़ डाले। यहां तक के यक़ीन हो जाए कि सब अदा हो गए।
📚क़ानून ए शरीअ़त, हिस्सा 1, सफ़ा 153

 

 

 

shabe barat ka roza rakhne ki niyat

 

. पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से

पोस्ट शबे बरात के तअ़ल्लुक़ से
हदीस मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि “जब शाबान की 15वीं रात आये तो तुम लोग रात को इबादत करो और दिन को रोज़ा रखो,बेशक इस रात में खुदाये तआला आसमाने दुनिया पर तजल्ली फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफिरत का तलबगार कि मैं उसे बख्श दूं है कोई रोज़ी मांगने वाला कि मैं उसे रोज़ी दूं है कोई बला व मुसीबत से छुटकारा मांगने वाला कि मैं उसे रिहाई दूं रात भर ये ऐलान होता रहता है यहां तक कि फज्र तुलु हो जाती है
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 398
📕 मिश्कात,सफह 115
📕 अत्तरगीब,जिल्द 2,सफह 52

हदीस उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि एक रात हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से अचानक उठकर चले गए,जब मैंने उन्हें ना पाया तो उनकी तलाश में निकली तो आपको जन्नतुल बक़ी के कब्रिस्तान में पाया कि आपका सर मुबारक आसमान की तरफ था,जब हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे देखा तो फरमाया कि ऐ आईशा क्या तुझे ये गुमान था कि अल्लाह का रसूल तुम पर जुल्म करेगा इस पर मैंने अर्ज़ की कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम मैंने सोचा कि शायद आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए हैं,तो आप फरमाते हैं कि आज शाबान की 15वीं रात है आज रात मौला तआला इतने लोगों को बख्शता है जिनकी तादाद बनी क़ल्ब की बकरियों से भी ज़्यादा होती है
📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 1,सफह 403
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1389
📕 मिश्कात,सफह 114

ⓩ सोचिये कि जब एक नबी कब्रिस्तान जा सकते हैं तो फिर उम्मती क्यों नहीं जा सकते, इस हदीस से कब्रिस्तान और मज़ारों पर जाना साबित हुआ

हदीस हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम रमज़ान के अलावा सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान में रखते थे यहां तक कि कभी कभी पूरा महीना रोज़े से गुज़ार देते,सहाबिये रसूल हज़रत ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम से इसकी वजह पूछी तो आप फरमाते हैं कि इस महीने में बन्दे के आमाल खुदा की तरफ उठाये जाते हैं तो मैं ये चाहता हूं कि जब मेरे आमाल खुदा की तरफ जायें तो मैं रोज़े से रहूं
📕 निसाई,जिल्द 3,सफह 269

⏮ SAWAL ➖SHAB E BARAT KYA HAI AUR ISKI KYA AHMIYAT HAI❓
⏰ 04 MINUTE 20 SECOND ⏰
👇🏼👇🏼👇🏼
https://youtu.be/P8-svrB-FYo
🎙 JAWAB BY – KHALIFA E HUZOOR MUFTI E AZAM E HIND SAYYED SHAH TURABUL HAQ ALAIHIR RAHMAH
From #Razvi_Channel_Lohardaga
🌼🌼🌼
हदीस हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि बेशक इस रात अल्लाह तआला तमाम मख्लूक़ की बख्शिश फरमाता है सिवाये शिर्क करने वाले और कीना रखने वालों के
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,हदीस 1390

फुक़्हा बाज़ रिवायतों में मुशरिक,जादूगर,काहिन,ज़िनाकार और शराबी भी आया है कि इनकी बख्शिश नहीं होगी या ये कि तौबा कर लें
📕 बारह माह के फज़ायल,सफह 406

फुक़्हा जो इस रात में 2 रकात नमाज़ पढ़ेगा तो उसे 400 साल से भी ज़्यादा का सवाब अता किया जायेगा
📕 नुज़हतुल मजालिस,जिल्द 1,सफह 132

फुक़्हा हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि एक नफ्ल रोज़े का सवाब इतना है कि अगर पूरी रूए ज़मीन भर सोना दिया जाए तब भी पूरा ना होगा
📕 बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 95

फुक़्हा अगर इस रात पानी में बैर की 7 पत्ती को जोश देकर उसे ग़ुस्ल करे तो इन शा अल्लाह तआला पूरा साल जादू और सहर से महफूज़ रहेगा
📕 इस्लामी ज़िन्दगी,सफह 77

ⓩ नमाज़ें इस रात में बहुत हैं और सबकी अपनी अपनी फज़ीलत है मगर याद रखें कि नफ्ल इबादतें जितनी भी हैं चाहे वो नमाज़ हो या रोज़ा उसी वक़्त क़ुबूल होगी जब कि फर्ज़ ज़िम्मे पर बाकी ना हो,लिहाज़ा जिसकी नमाज़ क़ज़ा हो वो क़ज़ा-ए उमरी पढ़े और जिनका रमज़ान का रोज़ा क़ज़ा हो वो इस रोज़े के बदले रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नियत करे,जिनकी बहुत ज़्यादा नमाज़ें क़ज़ा हो उसको आसानी से अदा करने के लिए सरकारे आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि
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फुक़्हा एक दिन की 20 रकात नमाज़ पढ़नी होगी पांचों वक़्त की फर्ज़ और इशा की वित्र,नियत यूं करें सब में पहली वो फज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई अल्लाहु अकबर कहकर नियत बांध लें युंही फज्र की जगह ज़ुहर अस्र मग़रिब इशा वित्र सिर्फ नमाज़ो का नाम बदलता रहे,क़याम में सना छोड़ दे और बिस्मिल्लाह से शुरू करे,बाद सूरह फातिहा के कोई सूरह मिलाकर रुकू करे और रुकू की तस्बीह सिर्फ 1 बार पढ़े फिर युंही सजदों में भी 1 बार ही तस्बीह पढ़े इस तरह दो रकात पर क़ायदा करने के बाद ज़ुहर अस्र मग़रिब और इशा की तीसरी और चौथी रकात के क़याम में सिर्फ 3 बार सुब्हान अल्लाह कहे और रुकू करे आखरी क़ायदे में अत्तहयात के बाद दुरूद इब्राहीम और दुआए मासूरह की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदना मुहम्मदिंव व आलिही कहकर सलाम फेर दें,वित्र की तीनो रकात में सूरह मिलेगी मगर दुआये क़ुनूत की जगह सिर्फ अल्लाहुम्मग़ फिरली कह लेना काफी है
📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 62

हदीस उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि हुज़ूर सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को खाने में हलवा और शहद बहुत पसन्द थे
📕 बुखारी,जिल्द 2,हदीस 5682

फुक़्हा शबे बरात में हलवा पकाकर ईसाले सवाब करना जायज़ और बेहतर है
📕 जन्नती ज़ेवर,,
🏵️🏵️🏵️

📿शबे बरात की फजीलत📿

आला हज़रत रज़ियल्लाहु अन्हु का एक मकतूब
आला हज़रत इमाम अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रज़ा खां बरैलवी रज़ियल्लाहु अन्हु अपने एक मकतूब में तहरीर करते हैं कि शबे बरात करीब है उस रात तमाम बंदों के आमाल हज़रते इज्जत में पेश होते हैं । मौला अज्ज़ा व जल्ला बतुफैल हुजूर पुर नूर शाफेअ यौमुल नशूर अलैहि अफज़ल अस्सलातु वस्सलाम मुसलमानों के जनूब माफ़ फ़रमाता है मगर चंद इनमें वह दो मुसलमान जो बाहम दुनियावी वजह से रंजिश रखते हैं। फरमाता है उनको रहने दो जब तक आपस में सुलह न कर लें। लिहाज़ा अहले सुन्नत को चाहिये कि हत्तुल वसअ कबल गुरूब आफ़ताब 14 शाबान बाहम एक दूसरे से सफ़ाई कर लें एक दूसरे के हक अदा कर दें या माफ़ करा लें कि बिइज़िही तआला हुकूकुल इबाद से सहायफे आमाल खाली होकर बारगाहे इज्जत में पेश हों । हुकूक मौला तआला के लिये तौबा सादिका काफी है.! التَّآئِبُ مِنَ الذَّنبِ کَمَنْ لاَّذَنْبِ لَهٗ ऐसी हालत में बइज़बना तआला ज़रूर इस शब में उम्मीद मग्फिरत तामा हैं.! बशर्त सेहत अकीदा وَھُوَالْغَفُوْرُالرَّحِیْمُ यह सुन्नत मसालेहत अख्वान व माफी हुकूक बहम्देहि तआला यहां सालहाए दराज से जारी है.!
उम्मीद है कि आप भी वहां के मुसलमानों में अज्र करके मिसदाक हों। यानी जो इस्लाम में अच्छी राह निकाले उसके लिये इस का सवाब है और कयामत तक जो इस पर अमल करे उन सबका सवाब हमेशा उसके नामए आमाल में लिखा जाये बगैर इसके कि उनके सवाबों में कुछ कमी आये। और इस फकीर नाकारा ( अहले उमर अन्सारी ) के लिये अफूव आफ़ियत दारैन की दुआ फ़रमायें फकीर आपके लिये दुआ करेगा और करता है।
सब मुसलमानों को समझाया जाये कि वहां न खाली जुबान देखी जाती है न निफाक पसंद है सुलह माफ़ी सब सच्चे दिल से हो।
✍🏼बाकी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
📓तीन नूरानी रातें -24

 

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خدائے پاک کی رحمت شب برأت آئی
ہمارے واسطے نعمت شب برأت آئی


مکین گنبد خضریٰ پہ ہوں کروڑوں سلام
کرو درود کی کثرت شرب برأت آئی


خدا کو راضی کرو کثرتِ نوافل سے
کرو قرآں کی تلاوت شب برأت آئی برأت


ہزار ماہ کی عبادت سے بھی ہے یہ افضل
ملے نجات کی دولت شب برأت آئی


خدا کی رحمتیں آواز دے رہی ہیں چلو
کرو نہ اب تو بغاوت شب برأت آئی


بڑی فضیلتیں رکھی ہے رب نے اس شب میں
کرو حضور کی مدحت شب برأت آئی


حبیب رب ہے جو تائب ہوا جوانی میں
ہے قول شاہ رسالت شب برأت آئی


خدا کے شکر کے سجدے کرو گنہگاروں
ہر ایک قلب کی راحت سب برأت آئی


کرے گی سرد یقیناً غضب کو مولا کے
بہاؤ اشک ندامت شب برأت آئی


کھلا ہوا در بخشش ہے آج سب کے لئے
بڑی ہے اس کی فضیلت شب برأت آئی


گناہوں سے کرو توبہ وسیلے آقا کے
خدا سے مانگ لو جنت شب برأت آئی


نہ مجھ سے پوچھ مزاج آج میرا اے توصیفؔ
بڑی ہے شدت فرحت شب برأت آئی

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