Bahaar-e-Tehreer | Part 1

बहारे तहरीर
(पहला हिस्सा)
مخلفات
HM ABDE MUSTAFA
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हमारे प्यारे नबी صلى الله عليه وسلم की विलादत बारह रबीउल अव्वल को हुई
हमारे प्यारे नबी صلى الله عليه وسلم की विलादत माहे रबीउल अव्वल की बारहिीं तारीख़ को हुई और
इस पर हमारे पास कषरत से दलाईल मौजूद हैं। तारीखे विलादत में इख्तिलाफ भी है
लेवकन जम्हरूकेनज़दीक बारह रबीउल अव्वल ही दरुुस्त ह।ै नीचे कु छ वकताबों के
हिाला जात पेश वकये जाते हैं जजन में तारीखे विलादत बारह रबीउल अव्वल को ही
करार ददया गया है।
ریست انب ااحسق ہب وحاہل اولاف، ص87 (1)
ریست انب اشہم، ج،1 ص107 (2)
رخیربطی،ج (3)

رخیاالممواولملکارعملوفہبت

ت ،2 ص125
وۃ،ص (4)
ب

االعما 192 لن
حامک،ج (5)
درکلل

مست
ل
ا ،2 ص 603
،ج (6)

ویعناالث ،1 ص33
رخیانبدلخون،ج (7)

ت ،2 ص394
ریست انب دلخون، ص81 (8)
اوملرد ارلوی اقللری، ص96 (9)
دمحم روسل اہلل، ج،1 ص 102 (10)
ۃجح اہلل یلع ااعلنیمل، ج،1 ص231 (11)
امتبث ت ۃنسل،ص31 (12)
ونر االاصبر، ص13 (13)
اربکلی،ص (14)

مۃ
ع

ا 20 لب
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رخیاالسیم،ص (15)

ت 35
وۃ،ج (16)
ب

اعمرجا ،1 ص37 لن
وۃ،ج (17)
ب

دمارجا ،2 ص18 لن
ریستحلن ،1 ص93 ت ۃ،ج (18)
،ج (19)

 

اوملا ،1 ص132 ہ اللدن
ولبغ االامین، ج،2 ص 189 (20)
رخیاسیمخل،ص (21)

ت 196
ادبلاہی وااھنلہی، ج،2 ص260 (22)
ل (23)
ت لدا
م
وی،ص ل
ب
ایبنا

50 ن
حتف اابلری، ج،8 ص130 (24)
ھۃاۃنسل،ص (25)
فقی
60
،ص (26)

اتکباللطائ 230
رسور اولقلب، ص11 (27)
اتفوی روضہی، ج،26 ص411 (28)
االسیم زدنیگ، ص106 (29)
اتفوی ہیمیعن، ص46 (30)
ربتاکت دصر االافلض، ص199 (31)
راسلئ اکیمظ، ص2 (32)
ریست روسل رعیب، ص43 (33)
،ص (34)

ن
َسن
ح
ل
ذرکا 116
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اتفوی رہمہی، ص110 (35)
یتنج زویر، ص473 (36)
دنی یفطصم، ص 84 (37)
دمحم ونر، ص 56 (38)
اتکب افریس، ص80 (39)
اونار رشتعی، ص9 (40)
ابیطخل، ص121 (41)
وتارخی بیبح اہل، ص13 (42)
امجل روسل، ص11 (43)
راسہل الیمد ربمن، ص24 (44)
شیپ ظفل یفصت امنیب ینس و ہعیش (45)
ہلصیف تفہ ہلئسم، ص4 (46)
دویدنبویں، واہویبں اور وعیشں یک بتک ےس وبثت:
الیمد ایبنل از ارشف یلع اھتونی، ص90 (47)
،ص (48)

ریستاخمتاالن ،19 20
اہدی اعمل، ص43 (49)
تفہ روزہ، امرچ،1977 ص ،7 18 (50)
،ج (51)

ن
تن
ن

ت
ل
صصقا ،5 ص 27
ارعلب، (52)

حۃ
ف

ص 141 ن
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اتسکنروسلربمن،ص36 (53)
اخوتنت
رتمح اعمل، ص13 (54)
امانہہم لفحم الوہر، امرچ،1981 ص 65 (55)
اتسکنروسلربمن،ص839 (56)
اخوتنت
رہی،ص (57)
ب

ت
لع
ا

مام

لش
ا 8
روسل ارکم صلى الله عليه وسلم، ص،21 22 (58)
ارکام دمحمی، ص270 (59)
ریسۃ ارلوسل، دمحم نب دبع اولاہب (60)
دیس اوکلنین، ص60 (61)
ایحۃ اولقلب، ج،2 ص112 (62)
رخیوالدت

بتکاعہماورت :
دیس اولری، ج،1 ص88 (63)
ی،ج (64)
ی

ح ن
م
ریستادمح ،1 ص،5 ،147 149
ارکملہم،ج (65)

رخیمکۃ

ت ،1 ص211
االنیم صلى الله عليه وسلم، ص191 (66)
دمحم دیس ولالک، ص118 (67)
رےربمغیپ،ص (68)
ہ 219
ک،ص (69)
رےروسلت
ہ 43
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ندمحم،ص (70)

اتکبش 234
دمحم روسل اہلل، ص30 (71)
وۃ،ص (72)
ب

وشادہا 52 لن
ولعمامت اعہم، ص61 (73)
ونر اکلم، ص36 (74)
االسیمذہت یودمتن،ص347 (75)
امجناوسی،ص (76)

امانہہمث 71
امانہہم ونرابیبحل،اوتک ث،1989 ص41 (77)
،ص (78)

ریستوکث 18
ومعض ارقلآن،ص33 (79)
ڈنلیکر از العہم ارکم روضی (80)
ں،ص (81)

اجناجت 117
وملعا اوالدمک تبحم روسل اہلل، ص99 (82)
،ص (83)

ن
تن
ن

ت
ل
اخمتا 118
ایحت دمحم صلى الله عليه وسلم، ص26 (84)
امانہہماجمرعافن،اوتک ث1984 (85)
ت ۃ،الیمدربمن،1932 ص 140 ل (86)
تفہروزہا فق
آندیجم،ص (87)

ہمجق

ونراینعمشث 13
رخیاالسمازومحمدانسحل،ص (88)

ت 31
رخیتلم،ص (89)

ت 34
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آمب،ص (90)

راسل 9
اخمت ارملنیلس، ص 78 (91)
ریسفت ایضء ارقلآن، ج،5 ص665 (92)
احہیش ارلوض االفن، ج،1 ص 107 (93)
ایضے رحم، دیع الیمد ایبنل ربمن، ص 184 (94)
ریست رسور اعمل، ص93 (95)
ابطخت االدمحہی، ص 12 (96)
االسم یک یلہپ دیع، ص33 (97)
یکراںیت،ص (98)

ت لت

27 فض
ر،ص (99)
سب
ارشفا 146 ل
ریست روسل ارکم، ص 7 (100)
امانہہم ازتلہیک، وجالیئ،2002 ص 11 (101)
وجاز االافتخل، ص 12 (102)
ثاکتالیمدرشفی، ص3 (103)
رےوضحر، (104)
ہ 17
ومدات،ص (105)

زرںیق 401
اھبوگات رپان،ت ب،2 ولشک 18 ں (106)
ہبوحاہلاجناجت
ادلر امظتنمل، ص89 (107)
اونار رشتعی، ص9 (108)
وقیم داٹسجئ، وصخیص ربمن ،1989 ص50 (109)
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ابیطخل، ص 121 (110)
رۃ،ص (111)
سب
ہقفا 60 ل
رشنا ی، ص22 لطب تازاھتون (112)
ایحت روسل، ص92 (113)
وبحمب ےک نسح و امجل اک رظنم، ص11 (114)
دیع الیمد ایبنل یک رشیع تیثیح، ص1 (115)
رخی

یبتکاورت روہںیت

بتکاصنب،ارگن ث :
وسم (116)
اخدلداینیت ثاےامجع
مجنپ،ص (117)
داینیت ث 55 اےامجع
متفہ،ص (118)
ااتکلبارعلیب ث 16 اےامجع
اردو یک اسوتںی اتکب، ص17 (119)
اردو یک آوھٹںی اتکب، ص 3 (120)
اردو یک آوھٹںی اتکب، ص 18 (121)
االسایمت مہن و دمہ، ص88 (122)
اتسکنمہنودمہ،ص119 (123)
اطمہعلت
االسایمت الزیم یب اے (124)
ایعمر االسایمت الزیم یب اے (125)
ہاعمرف (126)

اردو،داث االسہیم، ،12 19
اقمہل ریست دمحم روسل اہلل صلى الله عليه وسلم، ص 12 (127)
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ت کست اشلگن یک آوھٹںی، ص،1 بوبرڈ (128)

اجنپبت
اشلگن یک دوسںی، ص5 (129)
ریست روسل اہلل، آوفسکرڈ ویوینریٹس دنلن، ص69 (130)
آفدمحم،ص (131)

دیالئ 23
ر،ص (132)
ح

من سی
دمحمدیافلنئ 50
رپوس سٹکیپ، ،2010 ص 162 (133)
صا:ًت رہرعیباالولا باجعمقیقحت)

ح
مل
)
अ़ब्दे मुस्तफा
ममलाद पर ख़ुशी मनाने का अनोखा अंदाज़
शाह िलीउल्लाह मुहद्दिसे देहेलिी के िाललद -ए- वगरामी शाह अब्दरुरहीम मुहद्दिसे
देहेलिी अलैहहररहमा ममलाद-ए-मुस्तफा صلى الله عليه وسلم की ख़ुशी में खाना बनिा कर लोगो में
तक़सीम करिाया करते थे।
एक मतरबा इत्तेफाक़न कु छ मयस्सर ना आ सका के कु छ पका कर वनयाज़ ददलिा सके
ललहाज़ा थोड़े से भुने हुए चने और कन्द पर इमिफा करते हुए वनयाज़ ददलिाई।
उसी रात हुज़ूर-ए-अकरम صلى الله عليه وسلم की जज़यारत हुई, आप صلى الله عليه وسلم की बारगाह में वकस्म-वकस्म के
खाने पेश वकये जा रहे थे, इसी दौरान िो भुने हुए चने और कन्द भी पेश वकये गए,
इंतेहाई ख़ुशी ि मस्सरत से आप صلى الله عليه وسلم ने िो क़ुबूल फरमाए और अपनी तरफ लाने का
इशारा फरमाया और थोड़ा सा उस में से तनािुल फरमा कर बाक़ी असहाब में तक़सीम
फरमा ददए।
صا:ًاافنسااعلرنیف،ص )

ح
مل
،118 119 ی باٹسلالوہر

( ،ق
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हमे चाहहए के इख्लास के साथ अपने नबी पाक صلى الله عليه وسلم की विलादत की ख़ुशी मनायें ताकी
हुज़ूर صلى الله عليه وسلم क़ुबूल फरमा लें।
ख़ुशी के नाम पर नाजायज़ कामो का इरतेकाब करना ये, हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की नाराज़गी का
सबब है।
अल्लाह त्आला हमे बुज़ुगो के नक़्शे कदम पर चलने की तौफीक अता फरमाये
आमीन
अ़ब्दे मुस्तफा
मीलादन
ु नबी की फज़ीलत पर ब ेअसल ररिायात
मीलाद -ए- मुस्तफा صلى الله عليه وسلم पर खुशशयााँ मनाना और इस पर रक़म खचर करना एक जायज़
ि मुस्तहसन अमल है, लेवकन इसकी फज़ीलत बयान करने के ललये वकसी गैर सावबत
ररिायत को बयान करना हरवगज़ दरुुस्त नहीं।
मीलादनु नबी पर रक़म खचर करनेकी फज़ीलत पर हज़रतेअबूबकर ससिीक
रददअल्लाहु तआ् ला अन्हुका क़ौल बयान वकया जाता हैवक “जो शख्स मीलाद पर
एक ददरहम खचर करता है िो क़यामत के ददन जन्नत में मेरे साथ होगा” इसके अलािा
भी कु छ ममलते जुलते अक़्िाल खुल्फा-ए-राशशदीन और दीगर बुज़ुगाने दीन के हिाले
से बयान वकये जाते हैं।
हज़रत मौलाना मुहम्मद इरफान मदनी हमफज़हुल्लाह (अल मुताखस्सस्सस मफल मफक़्हे
इस्लामी) ललखते है वक (हज़रत अबू बकर ससिीक रददअल्लाहु तआ् ला अन्हुकी तरफ
मन्सूब) मज़्कू रा बाला ररिायत हदीस की वकसी मुस्तनद वकताब मे नहीं ममलती, ये
ररिायत “नैमतुल कु बरा” वकताब में मौजूद है और ये वकताब अल्लामा इब्ने हजर मक्की
अलैहहररहमा की तरफ मनसूब है, लेवकन असल वकताब “नैमतुल कु बरा” जो अल्लामा
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इब्ने हजर मक्की की है उसमे ये ररिायत मौजूद नहीं है जजससे सावबत होता है वक ये
वकताब जजसमें ये ररिायत है, ये अल्लामा इब्ने हजर मक्की की असल वकताब नहीं है।
हज़रत अल्लामा अब्दल हकीम शरफ क़ादरी अलैहहररहमा ने इसके जो ज ु िाबात ददये हैं
उनमे से चन्द पेशे जखदमत है :-
(1) अल्लामा इब्ने हजर मक्की दसिीं सदी के बुज़ुगर हैं तो लाज़मी अम्र है वक उन्होने
मज़्कू रा बाला ररिायत सहाबा ए वकराम से नहीं सुनी ललहाज़ा िो सनद मालूम होनी
चाहहये जजस की वबना पर अहादीस ररिायत की गयी है ख्वाह िो सनद ज़ईफ ही क्यों
ना हो या इन ररिायत का कोई मुस्तनद माखज़ ममलना चाहहये।
हज़रत अब्दल्लु ाह वबन मबुारक रहीमहुल्लाह फरमातेहैंवक अस्नाद दीन सेह, ैंअगर सनद
ना होती तो जजस के ददल में जो आता कह देता।
(2) हज़रत अबू हुरैरा रददअल्लाहु तआ् ला अन्हुफरमातेहैंवक नबी -ए- करीम صلى الله عليه وسلم ने
इरशाद फरमाया वक मेरी उम्मत के आजखर में ऐसे लोग होंगे जो तुमको ऐसी हदीसें
बयान करेंगे जो ना तुमने सुनी होगी और ना तुम्हारे आबा ने, तमु उनसेदरूरहना!
सिाल ये है वक खुल्फा-ए-राशशदीन रददअल्लाहु त्आला अन्हम और दीगर बुज़ुगाने दीन ु
के ये इरशादात इमाम अहमद रज़ा खान फाजजले बरेलिी, शैख अब्दलु हक़ महुद्दिस
दहेल्वी, इमाम रब्बानी मुजद्दिद-ए-अल्फे सानी, मुल्ला अली कारी, इमाम सुयूती,
अल्लामा नब्हानी और दीगर उलमा-ए-इस्लाम की वनगाहों से क्यूाँ पोशीदा रहे? जबवक
इन हज़रात की िुस’अत -ए- इल्मी के अपने और बेगाने सब ही मोतररफ हैं ।
(3) अल्लामा यूसुफ नब्हानी रहीमहुल्लाह ने जिाहहरुल वबहार की तीसरी जजल्द में
अल्लामा इब्ने हजर मक्की के असल ररसाले “नैमतुल कु ब्रा” की तल्खीस नक़ल की है
वक जो खुद अल्लामा इब्ने हजर मक्की ने तैयार की थी, असल वकताब में हर बात पूरी
सनद के साथ बयान की गई थी, तख्लीस में सनदों को हज़फ कर ददया गया है।
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अल्लामा इब्ने हजर फरमाते है वक मेरी ये वकताब मनगढंत ररिायात और मुस्सिद ि
मुफ्तरी लोगों के इन्तेसाब से खाली है जबवक लोगों के हाथों में जो मीलाद नामे पाये
जाते हैं इनमे अकसर झूठी ि मौजू ररिायत मौजूद हैं।
इस वकताब में खुल्फा -ए- राशशदीन और दीगर बुज़ुगाने दीन के मज़्कू रा बाला अक़्िाल
का नामो वनशान तक नहीं है
इससेनतीजा वनकालनेमेंकोई दशु िारी नहीं आती वक येएक जाली वकताब हैजो
अल्लामा इब्ने हजर मक्की की तरफ मनसूब कर दी गयी है।
अल्लामा सैय्यद मुहम्मद आवबदीन शामी (साहहबेरिलु महतार) केभतीजेअल्लामा
सैय्यद अहमद शामी ने असल नैमतुल कु ब्रा की शरह ललखी है जजसके मुत’अिद
इमिसाबात अल्लामा नब्हानी ने जिाहहरुल वबहार जजल्द सोम में नक़ल वकये है, इसमें
भी खुल्फा -ए- राशशदीन के मज़्कू रा िाला अक़्िाल का कोई जज़क्र नहीं है।
لجم امرچ )

اربلاہناقحل،ونجریت ،2012 ص 9

( ت11
अ़ब्दे मुस्तफा
आला हज़रत और 8 रबीउल अव्वल
जब आशशकाने मुस्तफा अपने नबी صلى الله عليه وسلم की आमद की खुशशयां मनाते हैं तो कु छ काललमा
पढने िालों को ही बहुत तकलीफ होती है ओर उन की ये परेशानी ऐतेराज़ बन कर
हमारे सामने आती है।
रबीउल अव्वल की बारहिी तारीख को हुज़ूर -ए- अकरम صلى الله عليه وسلم, की आमद का जश्न मनाया
जाता है तो इस पर ये ऐतेराज़ वकया जाता है के नबी -ए- करीम صلى الله عليه وسلم की विलादत तो 8
तारीख को हुई थी जैसा के आला हज़रत ने ललखा है तो मफर बारह 12 तारीख को जश्न
क्यों?
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हक़ीक़त में इसे ही कहते हैं “जखससयानी वबल्ली खम्बा नोचे” लेवकन यहां तो खम्बा भी
नहीं!
अगर हम इस बात को तस्लीम भी करलें के आला हज़रत ने 8 रबीउल अव्वल को ही
दरुुस्त क़रार ददया है और 8 ही तारीख को जश्न मनाना शुरू भी करदें तो क्या इनको
तकलीफ नही होगी? वबल्कु ल होगी ओर ये कहेंगे के जब जमहूर उलमा का क़ौल 12
रबीउल अव्वल है तो मफर 8 तारीख को जश्न क्यों?
दर असल मसला यहां तारीख का नहीं है बल्कल्क मक़सूद मुसलमानों को एक कारे खैर
सेदरुकरना ह।ै
हमेंचाहहए केऐसेलोगों की बातों को एक कान सेसनुेंऔर दसू रेकान सेवनकाल दें,
ये लोग हमारे बुज़ुगों वबल खुसुस आला हज़रत रहीमहुल्लाह की इबारात में खयानत
करते हैं और आधी अधूरी बात को ददखा कर अिाम को गुमराह करना चाहते हैं
आला हज़रत रहीमहुल्लाह के मुताल्लल्लक़ ये कहना के उनके नज़दीक हुज़ूर -ए- अकरम
صلى الله عليه وسلم की तारीख ए विलादत 8 रबीउल अव्वल है, येक़तई दरुुस्त नही और इस पर ज़्यादा
कु छ ना के ह कर हम उनके एक शेर को नक़ल करने पर इकतेफा करते हैं
बारहिीं के चांद का मुजरा है सजदा नुर का,
बाराह बुजों से झुका इक इक ससतारा नूर का
(इमाम ए अहले सुन्नत, आला हज़रत अलैहीररहमा)
अ़ब्दे मुस्तफा
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पेट भर कर खाना भी वबद्अत है!
उम्मुल मुममनीन, सय्यदा आईशा ससद्दिका रदीअल्लाहु त्आला अन्हा फरमाती हैं के
रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم के(दवुनया सेतशररफ लेजानेके) बाद जो वबद्अत सबसेपहलेज़ाहहर
हुइ िो शशकम सैरर (पेट भर कर खाना) है।
،ص )

مہلکات،اتکبرسکاوہشلنیت،اافلدئةااخلمسة
ل
ومادلنی،رعبا
(اایحء ،1010 ط دارااتکلبارعلیب ریبوت، س1429ھ عل
िहावबयों को चाहहए के ममलाद शरीफ ओर ददगर मामुलाते अह्ले सुन्नत पर वबद्अत
वबद्अत के फतिे लगाने के बजाऐ शशकम सैरर जैसी हकीकी वबद्अत के जख़लफ
आिाज़ उठाए!
और ख़ुद भी कम खाने वक सुन्नत पर अमल करे तावक आपके ददमागों को कु छ हिा
लगे ,सोचनेसमझने वक सलाहहयत बेदार हो और उम्मत पर ज़ाललमाना फत्वे दाग़्ने से
बाज़ आ जाए।
अल्लामा लुक्मान शाहहद साहब वकब्ला
कोई खुश कोई गमगीन
हुज़ुर -ए- अकरम صلى الله عليه وسلم की आमद पर ससिाए कु छ बदनसीबों के सभी खुश हैं और खुशीया
मना रहे हैं।
वनसार तेरी चहल पहल पर हज़ार ईदें रबीउल अव्वल
ससिाए इबलीस के जहान में सभी तो खुशीया मना रहे हैं!
कोई आममना के लाल صلى الله عليه وسلم की मुहब्बत में उनको याद कर के खुश हो रहा है तो वकसी
के ललए ये यादें तकलीफ का सबब बनी हुई हैं। ये भी मेरे आका صلى الله عليه وسلم का जलिा है के
आप صلى الله عليه وسلم वक फूल सी ख़ुबसूरत यादें गिारों के ददल में कांटा बन कर चुभ रही है।
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आला हज़रत क्या खूब फरमाते हैं,
कोई जान बस के महक रही वकसी ददल में इससे ख़टक रही
नहीं इसके जलिे में यक रही कहीं फुल है कहीं खार है
मेरे इमाम फरमाते हैं के वकसी ने हुज़ूर -ए- अकरम صلى الله عليه وسلم की मुहब्बत को अपनी जान में
बसाया हुआ है और आपकी यादे िफादारों के ददलों में जान बन कर महक रही है और
कु छ िो बदबि हैं के जजनको इससे तकलीफ हो रही है यानी आपके जलिे एक काम
नहीं करते बल्कल्क दो काम करते हैं, िफादारों को आपकी यादों से सुकू न हाससल होता
है और गिारों को इज़ा पहुंचती है।
अ़ब्दे मुस्तफा
मीलाद -ए- मुस्तफा पर शैतान का रोना पीटना
जब नबीय्ये अकरम, नूरे मुजस्सम, इमामुल अम्बम्बया, सरकारे मदीना صلى الله عليه وسلم की पैदाइश हुई
तो शैतान लईन ने रोना शुरू कर ददया और ये कोई िाईज़ाना बात नहीं है बल्कल्क एक
हक़ीक़त है। उस के चीख़ो पुकार करने के दलाईल हसबे ज़ेल हैं :-
ریسفت وعیق تحت وسرۂ افحت (1)
ریسفت انب دلخم تحت وسرۂ افحت (2)
یبطتحتوسرۂافحت (3)

ریسفتق
ریسفتدروثنمر ،1 ص17 للسن ویط،ج (4)
،اوباخیشل،ص (5)

مۃ

لعظ
اتکبا 428
ی اۃغلل،انبافرس،ج (6)
مجعماقم ،2 ص 380
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ی،ج (7)
مضطف
ل
رشفا ،1 ص 347
ملفاالول،ج (8)
ل
صا
ض

ح
م
ل
ا ،1 ص394
ۃیلح االوایل، ج،3 ص341 (9)
(10)
ت لت

فض
ااطلنیبل،ت ب

ت ۃ

ن

ع
ارلوض االفن، ج،1 ص ،74 ص278 (12 11,)
ومدل ارعلوس، ص3 (13)
ۃنماغمزیروسلاہللصلى الله عليه وسلم،ج (14)

ت
م

ض

االافتکءامب ،1 ص98 ن
ااتخملرہ،ج (15)
االاحد ،4 ص114 ی
،ج (16)

ویعناالث ،1 ص34
ادبلاہی وااھنلہی، ج،3 ص42 (17)
وۃیالنبریثک،ج (18)
ب

لن
رۃا
سب
ا ،1 ص212 ل
ارصتخمل اریبکل یف ریسۃ ارلوسل، ج،1 ص 7 (19)
د،ج (21 20,)

لبسادہلیوارلش ،1ص 35و ج،2 ص 218
،ج (22)

ت ۃ
حلن
ل
رۃا
سب
ا ،1 ص99 ل
میفومدلایبنلاالمظع،ص (23)

ظ

مب
ل
ادلرا 82
ایضء ایبنل، ج،2 ص56 (24)
صا:ًاعملتیفطصمصلى الله عليه وسلم، )

ح
مل
( ص ،41 42
अ़ब्दे मुस्तफा
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सहाबा और हुज़ूर के नालैन
सहाबा -ए- वकराम रददअल्लाहो त’आला अन्हमु नेहुज़रू صلى الله عليه وسلم की मुहब्बत में जो कारनामे
अंजाम ददए है उन को आइना बना कर देखा जाये तो हम भी अपने वक़रदार को आसानी
से संिार सकते है।
सहाबा-ए-वकराम की जज़िंदगीयो का मुता’अला वकया जाये तो मालूम होता है के उन्हें
अपने नबी صلى الله عليه وسلم से वनस्बत रखने िाली हर शै से मुहब्बत थी।
हज़रत अब्दल्लु ाह इब्नेमस’उद रददअल्लाहो त’आला अन्हुनबी -ए- करीम صلى الله عليه وسلم के नालैन
को अपने पास रखा करते थे जब नबी -ए- करीम صلى الله عليه وسلم मजललस बखास्त फरमाते तो आप
हुज़ूर صلى الله عليه وسلم को नालैन पहनाया करते थे और जब उतारते तो आप नालैन को झाड़ कर
अपनी आस्तीन में रख ललया करते थे और ता वकयाम -ए- सानी अपने पास ही रखते।
حاریفاضفلئایبنلااتخملر،ج )
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( ،1 ص،41 ،42 ط ایضء ارقلآن یلبپ زنشیک الوہر، س2013
अ़ब्दे मुस्तफा

क्या एक बुदढया हमारे नबी पर कू ड़ा डालती थी?
हुज़ूर -ए- अकरम, सय्यद -ए- आलम صلى الله عليه وسلم के अख़लाक़ो वकरदार का तज़वकरा करते हुए
एक िावक़या बयान वकया जाता है के एक बूढी औरत थी जो रोज़ाना हमारे नबी صلى الله عليه وسلم पर
कू ड़ा फें का करती थी मगर हमारे नबी صلى الله عليه وسلم उसे कु छ नहीं कहते थे।
िो बुदढया जब बीमार पड़ी तो हुज़ूर صلى الله عليه وسلم उसकी ईयादत के ललए तशरीफ ले गए और उसे
दआु एं भी दी, जब उस बुदढया ने ये करीमाना अंदाज़ देखा तो इमान ले आयी!
ये िावक़या इतना मशहूर है के बच्चों से ले कर बूढों तक को ज़ुबानी याद है।
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अगर वकसी मक़ु रर
ि
र को तक़रीर केललए “अखलाक़-ए-मुस्तफा” मौज़ू ददया जाए तो
इस ररिायत को बयान वकये वबना उसकी तक़रीर ही मुकम्मल नहीं होगी और हो गयी
तो ये अनोखी बात है।
कुछ लोगों की जुबानों पर एक जमुला गदद
ि
श करतेरहता हैके”ईस्लाम तलिार सेनहीं
फैला” और इस जमुलेकेसाथ येिावकया ऐसा जड़ुा हुआ हैगोया एक केबगैर दसू रा
अधूरा है। नीज़ एक तबका जो कहता है के वकसी को बुरा भला नहीं कहना चहहये, िो
भी इस िावक़ये को हहफ़्ज़ ज़रूर करता है और इसे दलील बना कर कहता है के देखो
नबी ने तो अपने ऊपर कू ड़ा फें कने िाली बुदढया को भी बुरा भला नहीं कहा ललहाज़ा
हमें भी वकसी को….अलख़।
हम आपको बताना चाहते हैं के ये ररिायत हदीस की वकसी वकताब में मौजूद नहीं!
अगर है तो ददखाई जाए।
ईसी ररिायत के मुताल्लल्लक़ एक िसीउल मुताला बुज़ुगर, खलीफा -ए- हुज़ूर मुख्तफ्तए
आज़म -ए- हहिंद, शारेह बुख़ारी, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफु ल हक अमजदी
अलैहहररहमा से सिाल वकया गया जजसके जिाब में आप रहहमहुल्लाह ने ललखा वक
कू ड़ा करकट डालने की ररिायत इस िक़्त याद नहीं है (ललहाज़ा) इसके बारे में कु छ नहीं
कह सकता।
رحاخبری،ج )

(اتفویش ،1 ص415
मुजाहहद -ए- अहले सुन्नत, हज़रत अल्लामा ख़ाददम हुसैन ररज़िी साहब वक़ब्ला फरमाते
हैं के ये ररिायत मौज़ू है और अंग्रेज़ो ने घड़ी है।
(العہم اخدم نیسح روضیاص حہلبقےکایبنےساموخذ)
अ़ब्दे मुस्तफा
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उलमा का इह़वतराम अल्लाह और रसूल का इह़वतराम है
फक़ीह -ए- ममल्लत, हज़रत अल्लामा मुफ्ती जलालुिीन अहमद अमजदी रहीमहुल्लाह
ललखते है वक हज़रत जावबर रददअल्लाहु त्आला अन्हो से ररिायत है :-
اکرموا العلماءفاھنم ورثۃ االن بیاءفمناکرمھمفقداکرماللہورسولہ
مال،ج )
(زنکا ،10 ص78 لع
तजुरमा : आललमों की इज़्ज़त करो इसललये वक िो अम्बम्बया के िाररस हैं, जजसने इनकी
इज़्ज़त की तहक़ीक़ उसने अल्लाह और रसूल अज़्ज़िजल्ला ि صلى الله عليه وسلم की इज़्ज़त की
(ارظن: اضفلئ ملع و املع، ص65)
इस ररिायत में उलमा के इह़वतराम को अल्लाह और रसूल का इह़वतराम क़रार ददया
गया है! अब जो लोग उलमा की तौहीन करते है िो ज़रा गौर करें वक क्या करते हैं
अ़ब्दे मुस्तफा
800 जजल्दों पर मुश्तममल वकताब
हम अगर सही से एक वकताब ललखना चाहे तो सालो का िक़्त ससफर मिाद जमा करने
में गुज़र जाता है लेवकन कु छ हस्तस्तयां ऐसी भी गुज़री है जजन्होंने मैदान -ए- तसनीफ में
ऐसी धमू मचाई हैकेदवुनया उन्हेंभूल नहीं सकती।
चुनांचे अल्लामा इब्ने जौज़ी रहहमहुल्लाह ललखते है के अबुल िफा वबन अकील अल्लाह
का िो बन्दा है जजसने 80 फु नून के बारे में वकताबे ललखी है और इन की एक वकताब
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800 जजल्दों मेंहैऔर कहा जाता हैकेदवुनया मेंललखी जानेिाली वकताबो मेंयेसबसे
बड़ी वकताब है!
صا:ً )

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اتسکن مل
ملع اور املع یک اتیمہ، ص20 ت
ۃاہلل،ہبتکمالہس

واریسفتلیتفمدمحماقمساقدریحفط
( ،خیشادحل ی
अ़ब्दे मुस्तफा
30,000 अिराक़ (पन्नों) की तफसीर
एक ददन इमाम इब्ने जरीर रहीमहुल्लाह ने अपने शावगदों से फरमाया वक अगर मै क़ुरान
की तफसीर ललखूाँ तो तुम पढोगे?
शावगदों ने कहा वक वकतनी बड़ी तफसीर होगी!
फरमाने लगे वक 30,000 (तीस हज़ार) अिराक़ (पन्नों) पर मुश्तममल होगी!
शावगदर कहने लगे वक इतनी लम्बी तफसीर पढने के ललये इतनी लम्बी उम्र कहां से
लायेंगे?
मफर इमाम इब्ने जरीर रहीमहुल्लाह ने तीन हज़ार अिराक़ पर मुश्तममल तफसीर ललखी
(अल्लाहु अकबर)
) اوراکروانملع،ص

اتمعوق 184ہب وحاہل ملع اور املع یک اتیمہ، ص20 واریسفتلیتفمدمحماقمس

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ہبتکمالہس (
अ़ब्दे मुस्तफा
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इब्लीस की बेटी और दामाद
हज़रतेसम्बय्यदनुा अली खव्वास रहमतल्लु ाही त्आला अलहै फरमातेहैंवक पूरी दवुनया
इब्लीस लईन की बेटी है और इससे मुहब्बत करने िाला हर शख्स उसकी बेटी का
खाविन्द है ललहाज़ा इब्लीस अपनी बेटी की खावतर दवुनयादार शख्स केपास आता
रहता है।
ودادمحملۃی،مسقااملومرات،ص )
ھ
ع
( 125ہب وحاہل ادحلۃقی ادنلۃی رشح ارطلۃقی ادمحملۃی، ج،1 ص 136
कहीं हम भी दवुनया सेमुहब्बत करकेइब्लीस केदामाद तो नहीं बन बैठे?
आज हमारेपास दन्यु ािी इल्म हैदीनी नहीं, अाँग्रेज़ी बोलना जानते है लेवकन अरबी
पढना नहीं, घर में गादड़यां, सोफा, ए सी, मिज िगैरह है मगर दीनी वकताबें नहीं!!!
कहीं हम सही में इब्लीस के दामाद तो नहीं?
अ़ब्दे मुस्तफा
इमाम कस्तलानी और मीलाद
शारहे बुखारी, इमाम कस्तलानी अलैहहररहमा फरमाते हैं वक हुज़ूर صلى الله عليه وسلم की पैदाइश के
महीने में अहले इस्लाम हमेशा से महेमफलें मुनक्कक्कद करते चले आये है और ख़ुशी के
साथ खाने पकाते रहे और दाित -ए- त्आम करते रहे है और इन रातो में अनिा -ओअक़्साम (तरह तरह के ) खैरात करते रहे और सुरूर ज़ाहहर करते चले आये हैं और नेक
कामो में हमेशा ज़्यादती करते रहे हैं और हुज़ूर صلى الله عليه وسلم के मौललद -ए- करीम की वकरात का
एहतेमाम -ए- खास करते रहे हैं जजनकी बरकतों से इन पर अल्लाह त्आला का फज़्ल
ज़ाहहर होता रहा है और इसके खिास से ये अम्र मुजररब है के इवनकादे महमफले मीलाद
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उस साल में अमन -ओ- अमान का सबब होता है और हर मक़सूद ि मुराद पाने के ललए
जल्दी आने िाली ख़ुशख़बरी होती है तो अल्लाह त्आला उस शख्स पर बहुत रहमतें
फरमाये जजसने माहे मीलाद मुबारक की हर रात को ईद बना ललया तावक ये ईद मीलाद
सि तरीन इल्लत हो जाये उस शख्स पर जजसके ददल में मज़र ि इनाद है।
अल्लामा इब्ने हाज ने मदखल में तिील कलाम वकया है उन चीज़ों के इंकार करने में
जो लोगों ने वबद’अते और नफ़्सानी ख्वाहहशें पैदा कर दी हैं और आलात -ए- मुहररमा
के साथ अमल -ए- मौलूद शरीफ में व़िना को शाममल कर ददया है तो अल्लाह त्आला
उनको उनकेक़स्द -ए- जमील पर सिाब दे और हमें सुन्नत की राह चलाये, बेशक िो
हमें काफी है और बहुत अच्छा िकील है।
،ج )

 

(وما ،1 ص ،27 وبطمہع رصم ہ اللدن
अल्लामा कस्तलानी अलैहहररहमा की इस इबारत से हस्बे ज़ेल उमूर सावबत हुए:-
(1) माहे मीलाद (रबीउल अव्वल) में इवनकादे महमफले मीलाद अहले इस्लाम का तरीका
रहा है।
(2) खाने पकाने के एहतेमाम, अनिा -ओ- अक़्साम के खैरात ि सदक़ात माहे मीलाद
की रातों में अहले इस्लाम हमेशा करते रहे हैं।
(3) माहे रबीउल अव्वल में ख़ुशी ि मसररत ि सुरूर का इज़हार शशआर -ए- मुक्कस्लमीन
है।
(4) माहे मीलाद की रातों में ज़्यादा से ज़्यादा नेक काम करना मुसलमानों का पसंदीदा
तरीक़ा चला आ रहा है।
(5) माहे रबीउल अव्वल में मीलाद शरीफ पढना और वकरात -ए- मीलादे पाक का
एहतेमाम -ए- खास करना मुसलमानों का महबूब तज़े अमल है।
(6) मीलाद की बरकतों से मीलाद करने िालो पर अल्लाह त्आला का फज़्ले अमीम
हमेशा से ज़ाहहर होता चला आया है।
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(7) महेमफल -ए- मीलाद के खिास से ये मुजररब खास्सा है के जजस साल में महेमफल –
ए- मीलाद मुनक्कक्कद की जायें िो तमाम साल अमनो अमान से गुज़रता है।
(8) इवनकादे महमफले मीलाद मक़सूद ि मतलब पाने के ललए बुशरा -ए- आजीला
(जल्द आने िाली खुशखबरी) है।
(9) मीलाद मुबारक की रातों को ईद मनाने िाले मुसलमान अल्लाह त्आला की रहमतों
के अहल हैं।
(10) रिीउल अव्वल में मीलाद शरीफ की महमफलें मुनक्कक्कद करना और माहे मीलाद
की हर रात को ईद बनाना यानी ईद -ए- मीलाद मनाना उन लोगों के ललये सि
मुसीबत है जजनके ददलों में वनफाक़ का मज़र और अदािते रसूल की बीमारी है।
(11)अल्लामा इब्ने हाज ने मद्खल में जो इन्कार वकया है िो इवनकादे महमफले मीलाद
पर नहीं बल्कल्क उन वबद’आत और नफ्सानी ख्वाहहशात पर है जो लोगों ने महमफले
मीलाद में शाममल कर दी थी, आलाते मुहररमा के साथ गाना बजाना मीलाद शरीफ की
महमफलों में शाममल कर ददया गया था, ऐसे मुनवकरात पर साहहबे मद्खल ने इन्कार
फरमाया और ऐसे नाजायज़ उमूर पर हर सुन्नी मुसलमान इन्कार करता है।
साहहबे मद्खल की इबारात से धोखा देने िालों को मालूम होना चाहहये वक इमाम
क़स्तलानी ने उनका ये वतललस्म भी तोड़ फोड़कर रख ददया है।
अल्लामा शैख इस्माईल हक्की रहीमहुल्लाह फरमाते हैं वक इमाम जलालुिीन सुयूती ने
फरमाया वक हुजूर صلى الله عليه وسلم की विलादते बा स’आदत पर शुक्र ज़ाहहर करना हमारे ललये
मुस्तहब है।
(ریسفت روح اایبلن، ج،9 ص25)
(اموخذ از الیمد ایبنل، زغایل زامں، العہم دیس ادمح دیعس اکیمظ رہمح اہلل)
अ़ब्दे मुस्तफा
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इसे कहते हैं दीन की जखदमत
इमाम शारानी रहीमहुल्लाह ललखते हैं वक हाफ़फज़ इब्ने शाहीन की मुस्नद फ़फल हदीस
1600 जजल्दों पर मुश्तममल है!
और ललखते हैं वक उन्होनें जो क़ुरआन की तफसीर ललखी है िो 1000 जजल्दों पर
मुश्तममल है। और इसके इलािा आपकी 330 वकताबें हैं।
बयान वकया गया हैवक शैख अब्दलु गफ्फार क़ौसी नेमज़हबेशाफयी केबयान में
1000 जजल्दें तस्नीफ फरमायी।
अल्लामा इब्ने जौज़ी ललखते हैं वक अबुल िफा वबन अक़ील की एक वकताब 800
जजल्दों में है और आपने 80 फु नून पर वकताबें ललखी हैं ।
बयान वकया गया है वक शैख अबुल हसन अश’अरी ने 600 जजल्दों की एक तफसीर
ललखी है।
शैखे अकबर की तफसीर 100 जजल्दों में है।
इमाम इब्ने जरीर ने अपने शावगदों से फरमाया था वक अगर मै क़ुरआन की तफसीर
ललखूं तो िो 30000 अिराक़ पर मुश्तममल होगी।
इमाम मुहम्मद की तालीफत 1000 के क़रीब हैं।
इमाम इब्ने जरीर ने अपनी जज़न्दगी में 3,58,000 अिराक़ (पन्ने) ललखे।
अल्लामा बाक़्लानी ने ससफर मोतजज़ला के रि में 70000 अिराक़ ललखे।
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इमाम सुयूती की तसानीफ की तादाद 500 के क़रीब है जजनमें बहुत सी कई जजल्दों
पर मुश्तममल हैं।
इमाम गज़ाली ने 78 वकताबें ललखी जजनमें से ससफर एक वकताब 40 जजल्दों की है।
मशहूर तबीब इब्ने सीना की भी कई वकताबें हैं जो कई जजल्दों पर मुश्तममल है।
हामफज़ इब्ने कसीर अस्क़लानी की एक वकताब 14 जजल्दों में है, एक 12 जजल्दों में है
और एक 5 जजल्दों में है और इसके अलािा भी कई वकताबें आपकी हैं।
इमाम-ए-अहले सुन्नत, सरकार आला हज़रत, मुजद्दिदे दीनो ममल्लत, इमाम अहमद रज़ा
रहीमहुल्लाह ने 1000 से ज़्यादा वकताबें तस्नीफ फरमायी।
داایحلریوملعواملعیکاتیمہ)

(اموخذازارش
अल्लाह त्आला इन बुज़ुगों के सद्क़े हमें भी ललखने की सलाहहयत अता फरमाए
(आमीन)
अ़ब्दे मुस्तफा
उलमा अम्बम्बया के िाररस हैं
क़ुरआन -ओ- अहादीस में मुताअ’ददि मक़ामात पर उलमा -ए- हक़ की अज़मत -ओअहममयत को बयान वकया गया है। कहीं उलमा की ताज़ीम को अल्लाहो रसूल की
ताज़ीम करार ददया गया है तो कहीं उलमा का जज़क्र मफररशतो के साथ वकया गया है!
उलमा की शानो शौकत का क्या कहना के खुद आमीना के लाल, रसूल -ए- बेममसाल,
नबी -ए- करीम صلى الله عليه وسلم ने इन्हें अपना िारीस बनाया है।
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हदीस -ए- पाक में इरशाद -ए- नबिी है :-
انالعلماءورثۃاالنبیاء
तजुरमा: बे शक उलमा अम्बम्बया के िाररस हैं।
) قطا:ًننسایبداؤد،ج

ملب ،2 اتکب املعل،ح3641و انب امہج، ج،1 ح223(
इस ररिायात को पढ कर बाज़ लोगो को शुब्हा हो सकता है के यहााँ उलमा से मुराद
कौन हैं? क्या इस से ससफर औललया -ए- दीन मुराद हैं या हर आललम -ए- दीन?
इस जज़म्न में हम फतािा रज़विया से एक इक़्तेबास पेश करते हैं, मुलाहहज़ा फरमाये :-
इमाम -ए- अहले सुन्नत, आला हज़रत रहहमहुल्लाह से दो लोगो के मुताल्लल्लक़ सिाल
हुआ जजस में से ज़ैद का कहना है के “उलमा अम्बम्बया के िाररस है” में उलमा -एशरीअत ि तरीक़त दोनो दाजखल है और जो शरीअत ि तरीक़त का जामे है िो विरासत
केअज़ीम मतरबेपर फाइज़ हैजबवक (दसरे शख्स) अम्र ू का बयान है के शरीअत तो बस
नाम है चंद फराइज़ ि िाजजबात ि सुनन ि मुस्तहहब्बात ि चंद मसाइल -ए- हलाल –
ओ- हराम का और तरीक़त नाम है िुसूल इल्लल्लाह (अल्लाह का क़ुबर हाससल करने)
का और इस में हक़ीक़त -ए- नमाज़ िगैरा मुनक्शीफ होती है तरीक़त बहरे नापेदा वकनार
(वबना वकनारेका समन्दर) है और दरया -ए- ज़खार (मौजे मारता हुआ दरया) है िो इस
दरया के मुकाबले में एक क़तरा है।
विरासत -ए- अम्बम्बया का यही िुसूल इलल्लाह मक़सूद ि मन्शा है और यही शान -एररसालत -ओ- नबूित का तकाज़ा है, इसी के ललए िो मअ’बूस हुए।
ज़ाहहरी उलमा वकसी तरह इस विरासत के कावबल नहीं हो सकते और न िो उलमा –
ए- रब्बानी है…..अलख
आलाहज़रत रहहमहुल्लाह ने फरमाया के ज़ैद का क़ौल हक़ ि सहीह और अम्र का ज़ैमे
बावतल ि क़बीह ि इिाद -ए- सरीह है (अम्र के बयान का रि करते हुए मज़ीद फरमाते
है के ) शरीअत ससफर चंद अहकाम का ही नाम नहीं बल्कल्क तमाम अहकाम -ए- जजस्मो
जान ि रूह -ओ- क़ल्ब ि जुमला उलूम -ए- इलाहहया ि मआररफ -ए- ना मुतनाहहया
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को जामेहैजजन मेंसेएक एक टुकड़ेका नाम तरीक़त ि माररफत है(मज़ीद ललखतेहै
के ) तरीक़त में जो कु छ मुनकशशफ होता है िो शरीअत ही के इत्तेबाअ का सदका है।
हुज़ूर -ए- अकरम صلى الله عليه وسلم ने उम्र भर जजस रास्ते की तरफ बुलाया तो उस का खाददम, उस
का हामी और उस का आललम क्यों कर उनका िाररस न होगा? हम पूछते है के अगर
वबल्फज़र शरीअत ससफर चंद अहकाम ही के इल्म का नाम हो तो ये इल्म रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم
से है या वकसी और से? इस्लाम का दािा करने िाला ये ज़रूर कहेगा के ये इल्म हुज़ूर
صلى الله عليه وسلم ही से है, मफर इसका आललम हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का िाररस न हुआ तो वकस का होगा?
इल्म उन का तरका है मफर इसे पाने िाला उनका िाररस न हो इस के क्या माना?
अगर येकहेकेइल्म तो ज़रूर उनका हैमगर दसू रा हहस्सा यानी इल्मेबावतन इसनेन
पाया ललहाज़ा िाररस न ठहेरा तो ए जाहहल! क्या िाररस के ललए ये ज़रूरी है के मोररस
का कु ल माल पाए? यूाँ तो आलम में कोई ससिीक़ उनका िाररस न ठहेरेगा और इरशाद
-ए- अक़दस صلى الله عليه وسلم” उलमा अम्बम्बया के िाररस है” गलत बन कर मुहाल हो जायेगा के
उनका कु ल इल्म तो वकसी को ममल ही नहीं सकता।
صا:ً )

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قطاًو

( اقملارعلافءت زعا -ہی راسہل اتفوی روضہی یک 26وںی دلج ںیم وموجد ےہ ملب زرشعواملعء
मज़कूरा इक़्तेबास केमुताअलेसेयेखलजान दरूहो जाना चाहहए केअम्बम्बया केिाररस
कौन से उलमा है।
अ़ब्दे मुस्तफा
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इब्लीस की बीिी का नाम
एक शख्स ने इमाम शयबी रददअल्लाहु त्आला अन्हुसेपूछ ललया वक इब्लीस की बीिी
का क्या नाम था?
अब बताईये वक इसका जिाब जानकर उस शख्स को क्या फायदा होता? क्या ये
अक़ाइद का हहस्सा है या कोई ज़रूरी मस’अला है?
इमाम शयबी रददअल्लाहु त्आला ने भी सिाल के जैसा ही जिाब अता फरमाया।
आपने फरमाया वक इब्लीस के वनकाह में मै शरीक नही हो पाया था, इसललये (उसकी
बीिी के ) नाम से िावक़फ नहीं।
یعف،ص )

اح،اوباربلاکتدبرادلنیدمحمش

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م
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ارملاحیفا 69 صاً

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، )
हमें चाहहये वक जब उल्मा से सिाल करने का मौका मयस्सर आये तो फालतू सिाल
करके िक़्त को बरबाद ना वकया जाये बल्कल्क ज़रूरी सिाल वकया जाये जजसका जिाब
मुफीद सावबत हो
अ़ब्दे मुस्तफा
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िो जो ना थे तो
इमाम -ए- आज़म, इमाम अबु हनीफा अलैहहररहमा ललखते हैं के :-
انتالذیلوالکماخلقامرؤ
کالوالخلقالوریلوالکــــــ
यानी आप صلى الله عليه وسلم की ज़ात िो मुक़िस ज़ात है के अगर आप صلى الله عليه وسلم ना होते तो कोई फदे बशर
पैदा न होता बल्कल्क ससरे से वकसी मख्लूक की तखलीक ही ना होती
इसी फ़फक्र के जलिे इमाम -ए- अहले सुन्नत, आलाहज़रत रहहमहुल्लाह के कलाम में
भी झलकते है, चुनान्चे आप ललखते है :-
िो जो ना थे तो कु छ ना था
िो जो ना हो तो कु छ ना हो
जान है िो जहान की
जान है तो जहान है
صاً)

ح
مل
دمحمفینحیبیبحابصمیح،

ومالت
(اموخذازومضمن”الکمراضںیمرکفوبہفینحےکولجے”رحمرخیشادحل ی
अ़ब्दे मुस्तफा
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दआ
ु -ए- मुस्तफा صلى الله عليه وسلم और हज़रत अमीर -ए- मुआविया
नबीए करीम صلى الله عليه وسلم ने हज़रत अमीर -ए- मुआविया रददअल्लाहो त’आला अन्हुके ललए
दआु फरमाई के ए अल्लाह! इसे हादी ि महदी बना, इसे हहदायत दे और इस के ज़ररये
लोगों को हहदायत दे।
ذمی،ج (1)

ننسث ،5 ص،687 ر3842
ااتلرخی اریبکل، ج،5 ص ،240 ر791 (2)
ا ،7 ص ،292 ر3746 لطب قاتاربکلی،ج (3)
ت ل،ج (4)

حن
دنسمادمحنب ،29 ص،426 ر1789
سف ،1 ص349 ااتلرخیاریبکل)ا زااثلین(،ج ل (5)
اآلاحد وااثملین، ج،2 ص،358 ر1129 (6)
اۃنسل، ج،2 ص،450 ر،697 699 (7)
مجعم ااحصلہب، ج،4 ص،490 ر1948 (8)
مجعم ااحصلہب، ج،2 ص146 (9)
ماالوطس،ج (10)

ج
مع
ل
ا ،1 ص،205 ر656
،ج (11)

دنسمااشل ،1 ص،181 ر311 م
ارشلہعی، ج،5 ص،2436 ر1915 (12)
اقبطت ادحملنیث، ج،2 ص343 (13)
وفادئ، ص،211 ر452 (14)
ھان،ج (15)
صی
رخیا

ت ،1 ص221
Bahaar-e-Tehreer | Part 1
Page | 30
ااحصلہب،ج (16)

رعمف ،4 ص،1836 ر4634
ۃیلح االوایلء، ج،8 ص358 (17)
نمومسماعت،ص (18)
ءیفااحد ی

51 ج
یلصیخلت (19)

ت اۃب،ج

س

من
ل
ا ،2 ص،539 ر328
ورشحدیقعۃ (20)

ح ۃ
ج
م
ل
یفایبنا

ح ۃ
ج
ل
ا الہ اۃنسل، ج،2 ص،404 ر379
رخیدقشم،ج (21)

ت ،59 ص 80

ت83
اربکلی،ج (22)

االاکحمارشلعت ۃ ،4 ص428
اجعم االوصل، ج،9 ص 107 (23)
ااحصلہب،ج (24)

ادسااغلہبیفرعمف ،5 ص،155 ر4985
یاالامسء (25)

ھد

ت
وااغللت، ج،2 ص 104
وکشمٰۃ ااصملحیب، ج،3 ص ،1758 ر6244 (26)
ھ (27)

یاامکللیفاامسءارلاجل،ج ت

د ،17 ص322
ت لء،ج (28)

ریساالعما ،3 ص ،125 126 لن
مجعم اویشلخ اریبکل، ج،1ص 155 (29)
رخیاالسم،ج (30)

ت ،4 ص 301
اولایفت ولایفت،ج،18 ص 124 (31)
اجعم ااسملدین، ج،5ص 536 (32)
ادبلاہی وااھنلہی، ج،8 ص129 (33)
زۃت وفلادئ (34)
ھ
م
ل
ااحتفا رۃ،ج

ش
لع
رۃنمارطافا
ک

ت
من
ل
ا ،10 ص،625 ر13513
ارطاف ادنسمل، ج،4 ص،268 ر5869 (35)
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Page | 31
رخیاافلخلء،ص (36)

ت 152
قارحملہق،ص (37)
ع
اوصلا 310
ین(،وتکمب (38)

وتکمت ت)ااممدجمدافلت ،251 درتف اول، ج،1 ص58
لعب ون،ج (39)
نا

ان ،3 ص136
سمطاوجنلم،ج،3 ص 155 (40)
ازا فاء،ج (41)

ح
ل
ا

ل ،1 ص،571 572
،ص (42)

اانلھت ۃ 15
ख़्याल रह!ेयेदआु उस ज़ात नेफरमाई हैजजसकेगुलाम मस्तु जजबुिािात है
دہاص حہلبق)

:نموھاعموہیازالعہمامقلنش

(امخ
अ़ब्दे मुस्तफा
हज़रते अमीर -ए- मुआविया मोममनो के मामू हैं
हज़रते अमीर -ए- मुआविया रददअल्लाहो त’आला अन्हुनबी – ए- करीम صلى الله عليه وسلم की ज़ौजा
सैयदा उम्मे हबीबा वबन्ते अबु सुमफयान के भाई है ललहाज़ा मोममनो की मााँ के भाई
मोममनो के मामू हुए और कई मोतबर उलमा -ए- वकराम ने ये बात ससफर ललखी ही नहीं
बल्कल्क इस पर ऐतेराज़ करने िालो को मुंह तोड़ जिाब भी ददया है।
اۃنسل، ج،2 ص،434 ر659 (1)
ااضی،ً ر658 (2)
ااضی،ً ص ،433 ر657 (3)
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نینماعموہی،ص (4)

و
م
ل
اخلا
ب

ااکستاالکلبااعلوۃی ب 75
(5)
ۃورصعہادلول

ت
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ت اۃن،ص214
لسف
اعموہینبایبایفسن ا
ارشلہعی، ج،5 ص،2448 ر1930 (6)
ربمن (7)
ریسفتانبابعس،تحتریسفتوسرہہنحتمم،آ 7 ی
ی،ص (8)
ح ل
للع
ااقثلت ،127 ،128 ر218
ادبلء وااتلرخی، ج،5 ص13 (9)
ااضی،ً ص149 (10)
ارشلہعی، ،5 ص،2431 ،2448 ر1930 ح لل (11)
االاقتعد، ااقتعد یف ااحصلۃب، ص 43 (12)
ورشحدیقعۃالہاۃنسل،ج (13)

ح ۃ
ج
م
ل
یفایبنا

ح ۃ
ج
ل
ا ،1 ص248
طت لواانملریکوااحصلحوااشملریھ، (14)
االت ص،116 ر191
،ص (15)

 

اواالرنیعبااطلن

ن
قن

مب
ل
نیایلانمزلا

دااسلث

اتکباالرنیعبیفارش 174
رخیدقشم،ج (16)

ت ،59 ص ،55 ر7510
ونثمی ومولی نعم امنزاگیبہدش،ہحفصربمن (17)

ی،درتفدوم،دیباررکدناسیلباعموہیراہک ثزیخہکوق 63
،ج (18)

رماقۃاافملت ،4 ص1557
رمآۃ اانملحیج، ج،3 ص320 (19)
اریماعموہیےکاحالت،الہپت ب،ص40 (20)
االاقتعد،ص (21)

مۃ
40 لع
رخیدقشمالنباسعرک،ج (22)

رصتخمت ،2 ص284
ادبلاہی وااھنلہی، ج،4 ص163 (23)
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ااضی،ً ج،8 ص125(24)
اخل،ج (25)

فاءت ابخراالئ

حب
ل
ااعتظا ،1 ص 131
قارحمل (26)
ع
اوصلا ہق، ص355
رماقۃ اقللری، ج،8 ص،3258 ر5203 (27)
ذغاء االابلب، ج،2 ص457 (28)
قیقحت اقحل از ریپ رہم یلع، ص 159 (29)
،ص (30)

اضیفنس ،937 938
اموخ دہاص حہلبق)

( ذازنموھاعموہیہفنصمالعہمامقلنش
अ़ब्दे मुस्तफा
इमाम आमश और वकस्सा गो मकु रर
ि

जब इमाम आमश रहीमहुल्लाह बसरा गये तो िहााँ की जामा मख्तिद में तशरीफ ले
गये।
आपने मख्तिद में देखा वक एक वक़स्सा गो शख्स ये बयान कर रहा था वक “हज़रत
आमश से हज़रत अबु इस्हाक ने ररिायत वकया और हज़रत आमश ने अबु िामयल से
ररिायत वकया……”
ये सुनकर इमाम आमश रहीमहुल्लाह हल्क़े (महमफल) के दरममयान खड़े हो गये और
बाज़ू बुलंद करके बगल के बाल उखाड़ने लगे!
Bahaar-e-Tehreer | Part 1
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जब उस वक़स्सा गो मुक़रर
ि
र नेइमाम आमश को देखा तो कहनेलगा “ए बूढेइन्सान!
क्या तुझे इतनी भी हया नहीं वक हम यहााँ ईल्म की महमफल में बैठे है और तू ऐसा काम
कर रहा है?”
इमाम आमश ने फरमाया वक मै जो काम कर रहा हूाँ िो उससे बेहतर है जो तुम कर रहे
हो!
िो बोला कै से?
इमाम आमश रहीमहुल्लाह ने फरमाया:
इसललये वक मै एक सुन्नत अदा कर रहा हूाँ और तू झूठ बोल रहा है,
मै ही आमश हूाँ और जो कु छ तुम बोल रहे थे उसमे से कु छ भी मैने तुमसे बयान नहीं
वकया ।
जब लोगों नेइमाम आमश रहीमहुल्लाह की बात सनुी तो उस वक़स्सा गो मक़ु रर
ि
र से
हटकर आपके वगदर जमा हो गये और अजर करने लगे वक “ए अबू मुहम्मद! हमें अहादीसे
मुबारका सुनाईये”
ذحت ثاوخلاصللسن 14ہب وحاہل وقت اولقلب، ج،1 ص723 ص ) ویط،الصفلااعلرشیفزت دات،ص

ح
مل
، اً(
अ़ब्दे मुस्तफा
लाख गुनहगार है लेवकन मेरे सहाबा का गुस्ताख तो नहीं
इमाम अहमद वबन हम्बल रहीमहुल्लाह के पड़ोस में एक फाससक़ो फाजजर शख्स रहता
था।
एक ददन उसने इमाम अहमद वबन हम्बल रहीमहुल्लाह को सलाम वकया तो आपने
सहीह से जिाब ना ददया और नाखुशी का इज़हार वकया।
Bahaar-e-Tehreer | Part 1
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उस शख्स नेकहा : ए अबुअब्दल्लु ाह! आप मझु सेनाखुश क्यों ह? ैं आपको मेरे (गुनाहों
के ) बारे में जो कु छ मालूम है, एक ख्वाब देखने के बाद मै उससे तौबा कर चुका हूाँ।
इमाम अहमद वबन हम्बल रहीमहुल्लाह ने फरमाया क्या ख्वाब देखा?
उस शख्स ने कहा : मुझे ख्वाब में जाने जहााँ, सरिरे कौनो मकााँ صلى الله عليه وسلم की इस तरह जज़यारत
हुई वक आप صلى الله عليه وسلم ज़मीन के एक बुलन्द हहस्से पर तशरीफ फरमा हैं और बहुत से लोग
नीचे बैठे हुए हैं उनमें से एक एक शख्स उठकर आप صلى الله عليه وسلم की जखदमत में हाजज़र होता है
और अज़रकरता हैवक हुज़ूर मेरेललयेदआु फरमाय, ेंआप صلى الله عليه وسلم हर एक के ललयेदआु
फरमाते। िहााँ मौजूद तमाम लोगों नेदआु करिायी, ससफर मै बाकी रह गया
मैने खड़े होने का इरादा वकया लेवकन अपने बुरे आमाल की वबना पर शरमा गया और
मुझे उठने की हहम्मत ना हुई
रहमते आलम صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फरमाया : ए फु लााँ, तू उठ कर हमारे पास क्यों नहीं आता,
हमसेदआु की दरख्वास्त क्यों नहीं करता? तावक हम तेरेललयेभी दआु करें
मैने अज़र वक या रसूलल्लाह صلى الله عليه وسلم मरेेकरततू बहुत बुरेहैंजजसकी िजह सेमैंशमम
ि
न्दा हूाँ
और ये शमरशारी मुझे खड़ा होने से रोक रही है।
सुल्ताने दो जहााँ صلى الله عليه وسلم ने इरशाद फरमाया : अगर शमर तुझे खड़ा होने से रोक रही है तो हम
तुम्हें कहते हैंवक उठकर हमसे दरख्वास्त करो, हम तम्हु ारेललयेदआु करेंगे(सुब्हान
अल्लाह) क्यों वक तुम (गुनहगार तो हो लेवकन) हमारे वकसी सहाबी को गाली नहीं देते
(उनकी बुराई नहीं करते)।
मैं उठकर खड़ा हो गया, आप صلى الله عليه وسلم नेमेरेललयेभी दआु फरमायी, मै जब बेदार हुआ तो
मुझे अपने तमाम बुरे कामों से नफरत हो चुकी थी
इमाम अहमद वबन हम्बल रहीमहुल्लाह अपने शावगदों को हुक्म ददया करते थे वक इस
हहकायत को याद कर लो और इसे बयान वकया करो क्योंवक ये फायदेमंद है।
اہلبازاقیضاوبیلعییلبنح، )

ت
ح
ل
لمہبوحاہلاقبطتا

(ارظن:ابصمحا 1/118 لط
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अल्लाह त्आला हमें सहाबा-ए-वकराम की सच्ची मुहब्बत अता फरमाए और उनके
गुस्ताखों की सोहबत से बचाये (आमीन)
अ़ब्दे मुस्तफा
अल्लामा इब्ने हजर मक्की और हज़रत अमीर -ए- मुआविया
मशहूर मुहद्दिस, शैखुल इस्लाम, इमाम इब्ने हजर मक्की शाफई रहमतुल्लाहह त’आला
अलैह (मुतिफ्फा 979 हहजरी) फरमाते हैके वबला शुब्हा सय्यीदनुा मआु विया
रददअल्लाह तआ् ला अन्हुनसब, क़राबत -ए- रसूल, हहल्म और इल्म के ऐतबार से
अकाबीर सहाबा में से है।
पस इन अिसाफ की िजह से जो आपकी ज़ात में वबल इजमा पाए जाते है िाजजब
ज़रूरी है के आपसे मुहब्बत की जाये।
اعموہینبایبایفسن،ہحفصربمن )

تدیست
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ف

لب
وروا
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ح
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(ریہطتاانجلنوااسللننعا 3ہب وحاہل نم وھ اعموہی
अ़ब्दे मुस्तफा
आला हज़रत और तक़रीर
इमाम -ए- अहले सुन्नत, आला हज़रत रहहमहुल्लाह ज़्यादा िाज़ न फरमाया करते, आप
का मामूल था वक साल में तीन िाज़ मुस्तवकलन फरमाया करते।
हर वकसी की तक़रीर नहीं सुनते थे:-
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हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहहमहुल्लाह फरमाते है के आला हज़रत
की आदत थी के दो तीन आदममयों के इलािा वकसी की तक़रीर नहीं सुनते थे उन दो
तीन आदमीयो में मैं भी एक था।
आलाहज़रत ये इरशाद फरमाया करतेथे के उमूमन मुक़रर
ि
रीन और िायेज़ीन मेंइफरात
ि तफरीत होती है, अहादीस के बयान करने में बहुत सी बातें अपनी तरफ से ममला
ददया करते है और इन को हदीस करार ददया करते है जो यक़ीनन हदीस नहीं है, अलफाज़
-ए- हदीस की तफ़्सीर ि तशरीह और इस में बयान -ए- वनकात अम्रे आजखर हैऔर ये
जाएज़ है मगर नफ़्स -ए- हदीस में इजाफा और जजस शै को हुज़ूर صلى الله عليه وسلم ने ना फरमाया हो
उसका हुज़ूर صلى الله عليه وسلم से वनस्बत करना यक़ीनन हदीस घढना है जजस पर सि िईद िाररद है
ललहाज़ा मैं ऐसी मजललस में शशरकत पसंद नहीं करता जहा इस वकस्म की जखलाफ –
ए- शरह बात हो
صا:ًایحت )

ح
رکۂایلع مل

( ایلعرضحتوی رضحت
अ़ब्दे मुस्तफा
हुज़ूर ़िौसे पाक और धोबी का झूटा िावकया
बयान वकया जाता है के हुज़ूर गौसे पाक अलैहहररहमा का एक धोबी था, जब उस का
इंतेक़ाल हुआ तो क़ब्र में मफररश्तो ने उस से सिाल वकए जैसा के सब से करते है।
उस ने हर सिाल के जिाब में कहा के “मैं गौसे पाक का धोबी हूाँ” और उसे बख्श ददया
गया।
इस ररिायात के मुताल्लल्लक़ फक़ीह -ए- ममल्लत, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती जलालुिीन
अहमद अमजदी रहहमहुल्लाह ललखते है के ये ररिायात बे अस्ल है, इसका बयान करना
दरुुस्त नहीं ललहाज़ा जजस नेइसेबयान वकया िो इस सेरुजू करे और आईन्दा इस
ररिायात के ना बयान करने का अहेद करे, अगर िो ऐसा ना करे तो वकसी मोअतमद
वकताब से इस ररिायात को सावबत करे
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( ،طریبش ث 2005ء ارظن: اتفوی ہیقف تلم، اتکب ایتشل، ج،2 ص 411 ادرزالوہر،س )
शारेहे बुखारी, हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शरीफ उल हक अमजदी अलैहहररहमा इस
ररिायात केमुताल्लल्लक़ ललखते है के ये हहकायत ना मैंने वकसी वकताब में देखी है और
ना वकसी से सुनी है
अहादीस में तसरीह है के अगर (मरने िाला) मोममन होता है तो क़ब्र के तीनों बुवनयादी
सिालो का जिाब दे देता है, मुनाफ़फक़ या कामफर होता है तो ये कहता है के हाय हाय
मैं नहीं जानता ललहाज़ा ये ररिायात हदीस के जखलाफ है मगर ये बात हक़ है के हज़रात
-ए- औललया -ए- वकराम, अइम्मा -ए- दीन, बुज़ुगाने दीन अपने मुरीदीन और
मुताल्लल्लक़ीन की क़ब्रो में नवकरैंन के सिालात के िक़्त तशरीफ लाते है और जिाब में
आसानी पैदा करते है।
(

قطا:ًاتفویش

صاًوملب

ح
رحاخبری،اتکبا ،2 ص125 ۃاربلاکتوھگیس،س لعقادئ،ج مل

( ،طداث 1433ھ
मुख्तफ्त -ए- आज़म हॉलैंड, हज़रत अल्लामा मफ़्तु ी अब्दलु िाजजद क़ादरी रहहमहुल्लाह
मज़कू रा ररिायत के बारे में ललखते है के ़िाललबन यही िावकया या इस के ममस्ल
“तफरीहुल खावतर” में है लेवकन इस के बयान में तहक़ीक़ ज़रूरी है, यूाँ ही मुबहम तौर पर
वबला तौजीह के बयान करना जखलाफ -ए- एहवतयात है जजससे बचना ज़रूरी है
ۃ،ص )
ٰ
و
(ارظن:اتفویویرپ،اتکبا 220 لصل
हज़रत मौलाना मुहम्मद अजमल अत्तारी साहब इस ररिायात को नक़ल करने के बाद
फक़ीह -ए- ममल्लत का क़ौल बयान करते है के ररिायात -ए- मज़कू रा बे अस्ल है, इस
का बयान करना दरुुस्त नहीं ललहाज़ा जजस नेइसेबयान वकया िो इस सेरुजू
करे…..अलख़
(ارظن: اامم االوایلء، ص،70 ط ہبتکم ایلع رضحت الوہر، س1433ھ)
अ़ब्दे मुस्तफा
OUR OTHER PAMPHLETS
TEHOEEDI PAMPHLET NG.4)
Oa
AZAAN -E-BILAL
AUR
SURAJ KA NIKALNA BAHAAR
TEHREER
Part1
TEHQEEQO PAMPILETINO.2
مصطفی
Iiei Tehgeg Aur lhiTohrers P Mustala لله
Gaana Bajana
Band Karo
Tum Musalman Ho!
गाना बजाना
बंद करो
तुम मसलमान हो!
Tagreer Karne Waala
Kaisa Ho
Colio
مصطفای
مقرر كيسابو؟
عبد مصطفى
؟ ہے کی ہر شخص تقریر کر کا با متر، والا خلب کیا ہوا گے: مقرر کیا ہو؟ ایک مختصر مضمون جس میں آپ پڑھیں
یہ وعظ نیت کے کیا شرائ
کم ہ۔ ہیں؟ یہ ایک دے داری
و アレ
ترینہ
این کے
کرنے کے لے کر کیا پیار
ال جدا
منتخب مضامین کا مجموعہ
جن میں عتق مجازی پر چند منتخب مضامین
کچھ ضروری ق مجازی کی شر می حیثیت
مصطفی بیان لیے گئے ہیں۔ یا میں اور اسباب وصل
AbdeMustafa
AllAh TA’AlA
Ko “Uparwala” Ya “Allah Miyan” Kehna Kaisa?
Aala Hazrat, Sadar
BahuUo
Hakeemul
مصطفی Rahim

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