Kamli Wale Nigahe Karam Ho Agar Lyrics
Kamli Wale Nigahe Karam Ho Agar
Bahut Aise Hain Jo Tewo Tabar Rakhte Hain
Bahut Aise Hain Jo Ilm O Hunar Rakhte Hain
Bahut Aise Hain Jo Hashmat O Zar Rakhte Hain
Ham Faqat Teri Kareemi Pe Nazar Rakhte Hainkamli Wale Nigahe Karam Ho Agar
Na Dawa Chaahiye Na Shafa Chaahiye
Main Mareez E Muhabbat Hoon Mujhko Toh Bas
Ik Nazar Ya Habeeb E Khuda Chaahiyeab Toh Ho Nazre Rehmat Mere Mustafa
Gham Ka Maara Hoon Besahaara Hoon
Kuch Bhi Hoon Aaka Main Tumhaara Hoon
Aa Jaye Yasrat Tumhari Ik Nazar Darkaar Hai
Ik Nazar Ehmat Ki Ho Jaaye Toh Beda Paar Hai
Tu Hi Sultan E Aalam Ya Muhammad
Zaroo E Lutf Sooe Mann Nazar Kun
Ab Toh Ho Nazre Rehmat Mere Mustafa
Aakhiri Waqt Hai Tere Bemaar Ka
Kuch Bhi Iske Siwa Main Nahi Maangta
Tere Daaman Ki Thandi Hawa Chaahiye
Talkhi E Hashar Kya Humko Tadpaayegi
Khud Hi Kadmon Mein Jannat Chali Aayegi
Baat Bigdi Hui Sab Ki Ban Jayegi
Bas Tere Naam Ka Aasra Chaahiye
Maut Kuch Bhi Nahi Maut Se Kyun Darun
Ek Jaan Ke Fida Laakh Jaane Karun
Roz Marke Jeeyun Roz Jee Ke Marun
Par Madine Mein Aani Kaza Chaahiye
Taajdare Do Aalam Habeeb E Khuda
Kaun Jaane Ke Kitna Hai Rutba Tera
Chaahte Hai Do Aalam Khuda Ki Raza
Rabb E Aalam Ko Teri Raza Chaahiye
Tu Hi Eemaan Se Hamko Waaiz Bata
Kisse Mangein Bhala Mustafa Ke Siwa
Ambiya Bhi Pukaarenge Mehshar Ke Din
Mustafa Chaahiye Mustafa Chaahiye
Nekiyan Karne Waale Hain Yeh Sochta
Khaali ‘Sayim’ Ka Daaman Hai Aabal Se
Panj Tan Ki Ghulami Mili Hai Mujhe
Maghfirat Ke Liye Aur Kya Chaahiye
Kamli Wale Nigahe Karam Lyrics In Hindi
क़व्वाल : उस्ताद नुसरत फतेह अली खान
बहुत ऐसे हैं कि जो तेग़-ओ-तबर रखते हैं
बहुत ऐसे हैं कि जो इ़ल्म-ओ-हुनर रखते हैं
बहुत ऐसे हैं कि जो ह़शमत-ओ-ज़र रखते हैं
हम फ़क़त तेरी करीमी पे नज़र रखते हैं।
कमली वाले..
कमली वाले निगाह-ए-करम करम हो अगर
ना दवा चाहिए ना शिफ़ा चाहिए
कमली वाले निगाह-ए-करम करम हो अगर
ना दवा चाहिए ना शिफ़ा चाहिए
मैं मरीज़-ए-मोहब्बत हूं मुझको तो बस
इक नज़र या हबीब-ए-ख़ुदा चाहिए।
मैं मरीज़-ए-मोहब्बत हूं मुझको तो बस
इक नज़र या हबीब-ए-ख़ुदा चाहिए….
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा…
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा…
ग़म का मारा हूं, बे सहारा हूं
कुछ भी हूं, आक़ा मैं तुम्हारा हूं
मेरे मुस्तफ़ा..
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा…×
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत
आजाइए, इस दम तुम्हारी इक नज़र दरकार है
इक नज़र रहमत की हो जाए तो बेड़ा पार है
मेरे मुस्तफ़ा..
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा…×
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत
तुई सुल्त़ान-ए-आ़लम या मुहम्मद ﷺ
ज़े रू-ए-लुत्फ़ सू-ए-मन नज़र कुन
मेरे मुस्तफ़ा..
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा…×
अब तो हो नज़्र-ए-रहमत मेरे मुस्तफ़ा ﷺ
आख़िरी वक़्त है तेरे बीमार का,
कुछ भी इसके सिवा मैं नहीं मॉंगता
तेरे दामन की ठण्डी हवा चाहिए।
तल्ख़ी-ए-ह़श्र क्या हमको तड़पाएगी
ख़ुद ही क़दमों में जन्नत चली आएगी,
बात बिगड़ी हुई सब की बन जाएगी
बस तेरे नाम का आसरा चाहिए।
मौत कुछ भी नहीं मौत से क्यों डरूं
एक जां क्या! फ़िदा लाख जानें करूं,
रोज़ मरकर जियूं, रोज़ जी कर मरूं
पर मदीने में आली क़ज़ा चाहिए।
ताजदार-ए-दो-आ़लम ह़बीब-ए-ख़ुदा
कौन जाने कि कितना है रुतबा तेरा!
चाहते हैं दो आ़लम ख़ुदा की रज़ा
रब्ब-ए-आलम को तेरी रज़ा चाहिए।
तू ही ईमान से हमको ज़ाहिद बता
किस से मॉंगें भला, मुस्त़फ़ा के सिवा,
अंबिया भी पुकारेंगे महशर के दिन
मुस़्त़फ़ा चाहिए, मुस़्त़फ़ा चाहिए।
नेकियां करने वाले हैं ये सोचते
ख़ाली स़ाइम का दामन है आ़माल से,
पंजतन की ग़ुलामी मिली है मुझे
मग़फ़िरत के लिए और क्या चाहिए।
कमली वाले निगाह-ए-करम करम हो अगर
ना दवा चाहिए ना शिफ़ा चाहिए