Ya Sayyidi Irhamlana Naat Lyrics

Ya Sayyidi Irhamlana Naat Lyrics

 

 

Ya Sayyidi Irhamlana Ya Syedi Irhamlana
Ya Syayidi Irhamlana Ya Syedi Irhamlana

 

Innil Tiya ree Hassaba Youmun Ilaa Ardil Haram
Balligh Salaami Roudatun Feehannabiyul Mohtaram

 

Maw Wajhohu Shams-ud-Duha Mun Khaddohu Badr-ud-Duja
Maw Zaatohu Noor-ul-Huda Mun Kaffohu Bahr-ul-Hemam

 

Qur’anohu Burhanona Faskhalle-Adyaanim Madat
Iz Jaa ‘Anaa Ahkaamohu Kullusohofay Saar Al ‘Adam

 

Akbadona Majruhatumin Saifey Hijril Mustafa
Tooba Le-Ahle Baldatin Fee-hun-Nabiyul Mohtasham

 

Ya Rehmatallil A’alameen Anta Shafiul Muznebeen
Akrim Lana Youmal Hazeen Fadlaw Wa Judaw Wal Karam

 

Ya Rehmatallil A’alameen Adrik Li Zainil A’abeedeen
Mahboosi Aydiz Zalimeen Fil Mawkabee Wal Muzdaham

 

Ya Sayyidi Irhamlana NAAT LYRICS

 

 

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

तेरे घर के फेरे लगाता रहूँ मैं
सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

हरम में, मैं हाज़िर हुआ बन के मुजरिम
ये लब्बैक ना’रा लगाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

मैं लेता रहूँ बोसा-ए-संग-ए-अस्वद
यूँ दिल की सियाही मिटाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

इलाही ! मैं फिरता रहूँ गिर्द-ए-का’बा
यूँ क़िस्मत की गर्दिश मिटाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

लिपट कर गले लग के मैं मुल्तज़म से
गुनाहों के धब्बे मिटाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

बराहीम के नक़्श-ए-पा चूम कर मैं
निगाहों से दिल में बसाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

हतीम-ए-हरम में नमाज़ों को पढ़ कर
तेरे दर पे दुखड़े सुनाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

मैं पीता रहूँ हर घड़ी आब-ए-ज़मज़म
लगी अपने दिल की बुझाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

सफ़ा और मरवा के मा-बैन दौड़ूँ
स’ई कर के तुझ को मनाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

झुकी जिन के सज्दे को मेहराब-ए-का’बा
वहीं दिल अदब से झुकाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

बरस्ती है बारान-ए-रहमत हरम में
तो मीज़ाब-ए-ज़र से नहाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

मुज़्दल्फ़ा में वक़्त-ए-सहर मुस्कुरा कर
ये सुन्नत नबी की बताता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

रमी कर के जमरात की मैं मिना में
तेरे दुश्मनों को मिटाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

तू शर से पनाह दे, मुक़द्दर हो ऐसा
कि बस ख़ैर ही ख़ैर पाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

सनद हज्ज-ए-मबरूर की लेने हाज़िर
मुहम्मद की चौखट पे जाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

हो मक़बूल हज हाज़िरी दाइमी में
पस-ए-हज मदीने को जाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

इलाही ! तू ऐसा मुक़द्दर ‘अता कर
हमेशा ही तयबा में आता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

इलाही तू क़िस्मत दे सौर-ओ-हिरा की
कि इस दिल में आक़ा को पाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

है सय्यद की ख़्वाइश मदीने में मर कर
हमेशा की जन्नत को पाता रहूँ मैं

सदा शहर-ए-मक्का में आता रहूँ मैं

या रब्बना ! इर्ह़म-लना, या रब्बना ! इर्ह़म-लना

ना’त-ख़्वाँ:
अल्लामा हाफिज़ बिलाल क़ादरी,
असद रज़ा अत्तारी
मुहम्मद हस्सान रज़ा क़ादरी

 

 

اِنْ نَلْتِ يَا رِيْحَ الصَّبَا يَوْمًا اِلٰي اَرْضِ الحَرم

 

 

اِنْ نَلْتِ يَا رِيْحَ الصَّبَا يَوْمًا اِلٰي اَرْضِ الحَرم
بَلِّغْ سَلاَمِيْ رَوْضَةً فِيْهَا النَّبِيُّ المُحْتَرَم
اے بادِ صبا، اگر تیرا گزر سرزمینِ حرم تک ہو
تو میرا سلام اس روضہ کو پہنچانا جس میں نبیِ محترم تشریف فرما ہیں

مَنْ وَّجْهُهُ شَمْسُ الضُّحٰي مَنْ خّدُّهُ بّدْرُ الدُّجٰي
مَن ذآتُهُ نُورُ الهُديٰ مَنْ كَفُّهُ بّحْرُ الْهَمَمْ
وہ جن کا چہرۂ انور مہرِ نیمروز ہے اور جن کے رخسارتاباں ماہِ کامل
جن کی ذات نورِ ہدایت، جن کی ہتھیلی سخاوت میں دریا

قُرْأنُهُ بُرْهَانُنَا نََسْخاً لاَدْيَانِ مَّضَتْ
اِذْجَاءَنَا اَحْكَامُهُ كُلُّ الصُّحُفِ صَارَ الْعَدَمْ
اُن کا (لایا ہوا) قرآن ہمارے لئے واضح دلیل ہے جس نے ماضی کے تمام دینوں کو منسوخ کر دیا
جب اس کے احکام ہمارے پاس آئے تو (پچھلے) سارے صحیفے معدوم ہو گئے

اَكْبَادُنَا مَجْرُوحَةٌ مِنْ سَيْفِ هِجْرِ الْمُصْطَفٰي
طُوْبيٰ لآهلِ بَلْدَةٍ فِيْهَا النَّبِيُّ المُحْتَشَمْ
ہمارے جگر زخمی ہیں فراقِ مصطفیٰ کی تلوار سے
خوش نصیبی اس شہر کے لوگوں کی ہے جس میں نبیِ محتشم ہیں

يَالَيْتَنِي كُنْتُ كَمَنْ يَّتَّبِعْ نَبِيَاً عَالِماً
يَوْماً وَلَيْلاً دَائِماً وَارْزُقْ كَذَلِيْ بِالكَرَمْ
کاش میں اس طرح ہوتا جو نبی کی پیروی علم کے ساتھ کرتا ہے
دن اور رات ہمیشہ یہی صورت اپنے کرم سے عطا فرما

يَا رَحْمَةً لِّلعَالَمِين اَنْتَ شَفِيْعُ المُذْنِبِينْ
اَكْرِمْ لَنَا يَوْمَ الحَزيْن فَضْلاً وَّجُوْداً وَّالكَرَمْ
اے رحمتِ عالم آپ گناہ گاروں کے شفیع ہیں
ہمیں قیامت کے دن فضل و سخاوت اور کرم سے عزت بخشئے

يَا رَحْمَةً لِّلعَالَمِينْ اَدْرِكْ لِزَيْنِ الْعَابديْن
مَحْبُوْسِ اَيْدِ الظَّالِمِينْ فِيْ الْمَوْكَبِ وَالْمزْدَحَمْ
اے رحمتِ عالم زین العابدین کو سنبھالیے
وہ ظالموں کے ہاتھوں میں گرفتار بھیڑ میں ہے

(امام زین العابدین)

× مشہور تو یہی ہے کہ یہ قصیدہ امام حُسین کے فرزندِ سعید امام علی زین العابدین نے بیاں فرمایا تھا، لیکن اس سلسلے میں مجھے کوئی دلیل نہیں مل پائی ہے۔ خیر اس سے قصیدے پر کوئی فرق نہیں پڑتا۔
×× ترجمہ ایک ویب سائٹ سے لیا گیا ہے۔​

 

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