मदीने से बुलावा आ रहा है
मेरा दिल मुझ से पहले जा रहा है
यहाँ मर्ज़ी नहीं चलती किसी की
मदीने वाला ही बुलवा रहा है
नवासों का वो सदक़ा बाँटते हैं
ज़माना इन का सदक़ा खा रहा है
मेरा दिल भी तू अपने साथ ले जा
अकेला क्यूँ मदीने जा रहा है
ये चक्की सय्यिदा की चल रही है
ज़माना इनका लंगर खा रहा है
बुलाएँगे तुझे भी सरवर-ए-दीं
दिल-ए-महमूद क्यूँ घबरा रहा है
‘अजब हैं सब्ज़-गुंबद के नज़ारे
निगाहों को ख़ुदा याद आ रहा है
शब-ए-फ़ुर्क़त से दिल घबरा रहा है
मदीना आप का याद आ रहा है
सवारी हश्र में गुज़री है किस की
सर-ए-इंसां झुकाया जा रहा है
कहेंगे मुस्तफ़ा, क़दमों से लग जा
दर-ए-ज़हरा से हो कर आ रहा है
ज़बीब-ए-बे-नवा, ज़हरा के सदके
ज़माने भर में ‘इज़्ज़त पा रहा है
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