Ali Walay Jahan Bethe Wahi Jannat Bana Bethe Lyrics In Urdu

Ali Walay Jahan Bethe Wahi Jannat Bana Bethe Lyrics In Urdu

 

علی والے جہاں بیٹھے وہیں جنت بنا بیٹھے
فقیروں کا بھی کیا چاہے جہاں بستی بسا بیٹھے
علی والے جہاں بیٹھے وہیں جنت بنا بیٹھے

فراز اے دیدار کو مقتل ہو زندہ ہو کے سہرا ہو
جلی عشقِ علی کی شمع اور پروانے آ بیٹھے

کوئی موسم کوئی بھی وقت کوئی بھی علاقہ ہو
جہاں ذکرِ علی چھیڑا وہیں دیوانے آ بیٹھے

علی والوں کا مرنا بھی کوئی مرنے میں مرنا ھے
چلے اپنے مکاں سے اور علی کے در پے جا بیٹھے

اِدھر رخصت کیا سب نے اُدھر آئے علی لینے
یہاں سب رو رہے تھے ہم وہاں محفل سجا بیٹھے

ابھی میں قبر میں لیٹا ہی تھا ایک نور سا پھیلا
میری بالی پے آکر خود علی مرتضیٰ بیٹھے

علی کے نام کی محفل سجی شہر خموسا میں
تھے جتنے بیوفا وہ سب کے سب محفل میں آ بیٹھے

نظامت کے لیے مولا علی نے خود میثم کو بلوایا
وہ لہذہ تھا کہ سب دانتوں تلے انگلی دبا بیٹھے

یہ کون آئے کے استقبال میں سب انبیاء اُٹھے
نا بیٹھیگا کوئی تب تک نا جب تک فاطمہ بیٹھے

 

 

ईद का बयान

रमज़ानुल मुबारक
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रोज़ों की गिनती पूरी करो और अल्लाह की बडाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत दी,

📕पारा 2 सूरह बक़रा आयत 185

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो ई’दाइन की रातों में क़याम करे (यानि कि रात में इबादत करे,) उसका दिल ना मरेगा जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे

📕इबने माजा शरीफ जिल्द 2 सफह 365,हदीस 1782

जो पांच रातों में शब बेदारी करे उसके लिए जन्नत वाजिब है जिलहिज्ज की 8वीं 9वीं 10वीं रातें और ईद उल फित्र की रात और शाबान की 15वीं रात यानि कि शबे बरात

📕अत्तरगीब वत्तरहीब जिल्द 2 सफह 98 ह़दीस 2
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 778

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ईद उल फित्र के दिन कुछ खा कर नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते और ईद उल अज़हा (बक़रा ईद) को ना खाते जब तक नमाज़ ना पढ़ लेते,और बुखारी शरीफ में है कि ईद उल फित्र के दिन तशरीफ ना ले जाते जबतक चन्द खजूरें ना खा लेते और वह ताक़ होती,

📕तिर्मिज़ी शरीफ जिल्द 2 सफह 70 हदीस 542
📕बुखारी शरीफ जिल्द 1 सफह 328 हदीस 953

नमाज़ को जाने से पेशतर पहले चन्द खजूरें खा लेना चाहिए 3/5/7/ या कम व बेश मगर ताक हों,खजूरें ना हो तो कोई मीठी चीज़ खा लें

📕फतावा हिन्दिया जिल्द 1 सफह 149
📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 780

ईदाइन की नमाज़ वाजिब है मगर सब पर नहीं बल्कि उन्हीं पर जिन पर जुमां वाजिब है औरत पर ईद की नमाज़ वाजिब नहीं,और उसकी अदा की वही शरतें है जो जुमां के लिए हैं सिर्फ इतना फर्क़ है कि जुमां में खुतबा शर्त है और ईदाइन में सुन्नत,यानि अगर जुमां में खुतबा ना पढ़ा तो जुमां ना हुआ और ईद में खुतबा ना पढ़ा तो नमाज़ हो गयी मगर बुरा किया_दूसरा फर्क ए है कि जुमां का खुतबा नमाज़ से पहले है,और ईद का नमाज़ के बाद,अगर किसी ने पहले पढ़ लिया तो बुरा किया मगर नमाज़ हो गयी लोटाई नहीं जायेगी,और खुतबा भी दुबारा नहीं पढ़ा जायेगा, और ईदाइन में न अज़ान है ना इक़ामत सिर्फ दो बार इतना कहने की इजाज़त है, اَلصّلوٰۃُ جَامِعَۃ बिला वजह ईद की नमाज़ छोड़ना गुमराही व बिदअत है

📕बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफह 779

जब ईद का दिन आता है तो अल्लाह अपने बन्दों पर फख्र करते हुए फरिश्तों से फरमाता है कि उस मज़दूर की क्या मज़दूरी है जिसने अपना काम पूरा कर लिया हो तो फरिश्ते अर्ज़ करते हैं मौला ये कि उसकी पूरी मज़दूरी उसे दी जाये तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है कि मेरे बन्दो के ज़िम्मे जो फरीज़ा था वो उन्होने अदा कर दिया तो मुझे अपनी इज़्ज़तो जलाल की कसम मैने उन सबको बख्श दिया

📕 मिश्कात,सफह 183

जिसने ईद के दिन 300 बार “सुबहानल्लाहि वबिहमदिही” पढ़कर इसका सवाब तमाम मुसलमान मरहूमीन को बख्शा तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हर मुसलमान की क़ब्र में 1000 अनवार दाखिल फरमायेगा और जब वो खुद इस दुनिया से जायेगा तो उसकी क़ब्र में भी 1000 अनवार दाखिल फरमायेगा

📕 मुकाशिफातुल क़ुलूब,सफह 650
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🌹واللہ تعالیٰ اعلم باالصواب🌹

नोट:— पोस्ट के साथ छेड़छाड़ हरगिज़ हरगिज़ न करें वरना मालूम होने पर सख़्त कार्यवाही की जा सकती है

❖ मफ़हूम ए फरमाने मुस्तफा ﷺ ❖

हुज़ुर सरकारे मदीना ﷺ का फरमाने आलीशान है :

❝ जो शख्स अल्लाह عزوجل की रिज़ा व खुशनुदी के लिये एक दिन का ऐ’तिकाफ करेगा अल्लाह عزوجل उस के और जहन्नम के दरमियान तीन खन्दकें हाईल कर देगा, हर खन्दक की मसाफत (या’नी दूरी) मशरिक़ व मगरिब के फासिले से भी ज़ियादा होगी । ❞

▓ मुअजम अवसत, जिल्द 5, सफह् 279, हदीष शरीफ#7326

 

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🌹 माहे र-मज़ान शरीफ 🌹
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फैजाने ईदुल फ़ित्र

■➞ मुआफ़ी का ए’लाने आम : मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह पाक का करम बालाए करम है कि उसने माहे रमज़ानुल मुबारक के फौरन ही बा’द हमें ईदुल फित्र की ने मते उज्मा से सरफ़राज़ फ़रमाया इस ईदे सईद की बेहद फजीलत है ।

चुनान्चे हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास رضی اللہ تعالی عنہ की एक रिवायत में येह भी है : जब ईदुल फित्र की मुबारक रात तशरीफ़ लाती है तो इसे ” लैलतुल जाइज़ा ‘ या’नी ” इन्आम की रात ” के नाम से पुकारा जाता है। जब ईद की सुब्ह होती है तो अल्लाह पाक अपने मासूम फिरिश्तों को तमाम शहरों में भेजता है , चुनान्चे वोह फ़िरिश्ते ज़मीन पर तशरीफ ला कर सब गलियों और राहों के सिरों पर खड़े हो जाते हैं और इस तरह निदा देते हैं , ऐ उम्मते मुहम्मद ﷺ उस रब्बे करीम की बारगाह की तरफ चलो जो बहुत ही ज़ियादा अता करने वाला और बड़े से बड़ा गुनाह मुआफ फरमाने वाला है।

■➞ फिर अल्लाह पाक अपने बन्दों से यूं मुखातिब होता है : ऐ मेरे बन्दो मांगो क्या मांगते हो ? मेरी इज्जतो जलाल की कसम आज के रोज़ इस ( नमाजे ईद के ) इज्तिमाअ में अपनी आखिरत के बारे में जो कुछ सुवाल करोगे वोह पूरा करूंगा और जो कुछ दुन्या के बारे में मांगोगे उस में तुम्हारी भलाई की तरफ़ नज़र फ़रमाऊंगा ( या’नी इस मुआमले में वोह करूंगा जिस में तुम्हारी बेहतरी हो ) मेरी इज्जत की कसम ! जब तक तुम मेरा लिहाज़ रखोगे मैं भी तुम्हारी खताओं पर पर्दा पोशी फ़रमाता रहूंगा मेरी इज्जतो जलाल की कसम मैं तुम्हें हद से बढ़ने वालों ( या’नी मुजरिमों ) के साथ रुस्वा न करूंगा बस अपने घरों की तरफ मरिफ़रत याफ्ता लौट जाओ तुम ने मुझे राज़ी कर दिया और मैं भी तुम से राजी हो गया। ” ( अत्तरगीब वत्तरहीब , जिल्दः 2 , सफ़ह 60 , हदीस : 23 )

🔰फ़ज़ाइले रमज़ान,सफह 444📕

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🤲🏻 अपनी नेक दुआओं में  याद  रखें..✍🏻

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