Jab Gumbad e Khazra Pe Lyrics Hindi – Hafiz Tahir Qadri

Jab Gumbad e Khazra Pe Lyrics Hindi – Hafiz Tahir Qadri

 

Jab Gumbad e Khazra Pe Wo Pahli Nazar Gayi – Hafiz Tahir Qadri

आक़ा मेरे आक़ा, मेरे आक़ा, मेरे आक़ा

आक़ा मेरे आक़ा, मेरे आक़ा, मेरे आक़ा

 

जब मस्जिद-ए-नबवी के मीनार नज़र आए

अल्लाह की रह़मत के आसार नज़र आए

 

मन्ज़र हो बयां कैसे अल्फ़ाज़ नहीं मिलते

जिस वक़्त मुहम्मद का दरबार नज़र आए

 

बस याद रहा इतना सीने से लगी जाली

फिर याद नहीं क्या-क्या अनवर नज़र आए

 

मक्के की फ़ज़ाओं में तैबा की हवाओं में

हमने तो जहां देखा सरकार नज़र आए

 

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

आंखों के रास्ते मेरे दिल में उतर गई

 

रह़मत का दर खुला है दरबार ए मुस्तफ़ा में

बिन मांगे मिल रहा है दरबार ए मुस्तफ़ा में

 

आंसू जो बह रहे हैं सब हाल कह रहे हैं

रब कोन खोलता है दरबार ए मुस्तफ़ा में

 

सर ख़म था लब खामोश थे आंखें थी अश्क-बार

इक सा’अ़त-ए-बेदार थी जो के गुज़र गई

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जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

 

हिजरे नबी में आह! कहाँ बे असर गई

तड़पते जो हम यहां तो मदीने खबर गई

 

दिल भी है शाद-शाद तबीयत है पुर-बहार

लगता है आज मेरी मदीने खबर गई

 

तेरे दर पर आऊं … आक़ा

झोली फैलाऊं …आक़ा

सब मन की मुरादें …आक़ा

मैं अपनी पाऊँ …आक़ा

 

दर छोड़ के तेरा मैं कभी न जाऊं

बस तेरे क़दमों में मर जाऊं

 

तैबा से लौटना किसी आशिक़ से पूछिए

ऐसा है जैसे रूह बदन से गुज़र गई

 

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

 

आवाज़ उबैद तेरी बा-फ़ैज़ाने नात ही

सीनों में आशिक़न-ए-नबी के उतर गई

 

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

जब गुम्बदे ख़ज़रा पे वो पहली नज़र गई

 

आक़ा मेरे आक़ा, मेरे आक़ा, मेरे आक़ा

आक़ा मेरे आक़ा, मेरे आक़ा, मेरे आक़ा

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