Kabe Pe Pari Jab Pehli Nazar Naat Lyrics
Ka’be Pei Pari Jab Pehli Nazar Kya Cheez He Duniya Bhul Gei
Youn Hosh-O-Khard Maflooj Hote Dil Zooke Tamasha Bhul Gei
Ahsas Ke Parde Lehree Iman Ki Hararat Teezi Hoyi
Sajdoun Ki Tarap Allah Allah Sar Apna Sooda Bhul Geya
Poncha Jo Haram Ki Chookhat Tak Aik Ibre Karam Ne Gheer Liya
Baqi Na Raha Phir Hosh Mujhe Kya Mangha Aur Kya Kya Bhul Geya
Jis Waqt Dua’a Ko Hat Uthe Yad Na Saka Jo Socha Tha
Izhare Aqeedat Ki Dahan Mei Izhare Tamana Bhul Geya
Har Waqt Barasti He He Rehmat Ka’be Me Jameel Alllah Allah
Khaki Houn Main Kitna Bhul Geya Ati Houn Main Kitna Bhul Geya
काबे पे पड़ी जब पहली नज़र क्या चीज़ है दुनिया भूल गया /
Kabe Pe Padi Jab Pehli Nazar Kya Cheez Hai Duniya Bhool Gaya
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
यूँ होश-ओ-ख़िरद मफ़लूज हुए, दिल ज़ौक़-ए-तमाशा भूल गया
फिर रूह को इज़्न-ए-रक़्स मिला, ख़्वाबीदा-जुनूँ बेदार हुआ
तलवों का तक़ाज़ा याद रहा, नज़रों का तक़ाज़ा भूल गया
एहसास के पर्दे लहराए, ईमाँ की हरारत तेज़ हुई
सज्दों की तड़प, अल्लाह-अल्लाह ! सर अपना सौदा भूल गया
जिस वक़्त दु’आ को हाथ उठे, याद आ न सका जो सोचा था
इज़्हार-ए-‘अक़ीदत की धुन में, इज़्हार-ए-तमन्ना भूल गया
पहुँचा जो हरम की चौखट तक, इक अब्र-ए-करम ने घेर लिया
बाक़ी न रहा ये होश मुझे, क्या माँग लिया, क्या भूल गया
हर वक़्त बरस्ती है रहमत का’बे में, जमील ! अल्लाह-अल्लाह
ख़ाती हूँ मैं कितना भूल गया, ‘आसी हूँ मैं कितना भूल गया
शायर:
जमील नक़वी
ना’त-ख़्वाँ:
उम्म-ए-हबीबा
मुहम्मद अश्फ़ाक़ अत्तारी
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
यूँ होश-ओ-ख़िरद मफ़लूज हुए, दिल ज़ौक़-ए-तमाशा भूल गया
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
का’बे की रौनक़ का’बे का मंज़र, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
देखूँ तो देखे जाऊँ बराबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
फिर रूह को इज़्न-ए-रक़्स मिला, ख़्वाबीदा-जुनूँ बेदार हुआ
तलवों का तक़ाज़ा याद रहा, नज़रों का तक़ाज़ा भूल गया
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
तेरे हरम की क्या बात, मौला ! तेरे करम की क्या बात, मौला !
ता-‘उम्र कर दे आना मुक़द्दर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
एहसास के पर्दे लहराए, ईमाँ की हरारत तेज़ हुई
सज्दों की तड़प, अल्लाह-अल्लाह ! सर अपना सौदा भूल गया
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
हम्द-ए-ख़ुदा से तर हैं ज़बानें, कानों में रस घोलती हैं अज़ानें
बस इक सदा आती है बराबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
जिस वक़्त दु’आ को हाथ उठे, याद आ न सका जो सोचा था
इज़्हार-ए-‘अक़ीदत की धुन में, इज़्हार-ए-तमन्ना भूल गया
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
माँगी है मैं ने जितनी दु’आएँ, मंज़ूर होंगी, मक़बूल होंगी
मीज़ाब-ए-रहमत है मेरे सर पर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
पहुँचा जो हरम की चौखट पर, इक अब्र-ए-करम ने घेर लिया
बाक़ी न रहा ये होश मुझे, क्या माँग लिया, क्या भूल गया
का’बे पे पड़ी जब पहली नज़र, क्या चीज़ है दुनिया भूल गया
भेजा है जन्नत से तुझ को रब ने, चूमा है तुझ को ख़ुद मुस्तफ़ा ने
ऐ संग-ए-अस्वद ! तेरा मुक़द्दर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर
हर वक़्त बरस्ती है रहमत का’बे में, जमील ! अल्लाह-अल्लाह
ख़ाकी हूँ मैं कितना भूल गया, ‘आसी हूँ मैं कितना भूल गया
शायर:
जमील नक़वी
ना’त-ख़्वाँ:
हाफ़िज़ अबू बक्र
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