Ali Ky Naam Ka Charcha Bahot Hai Lyrics

Ali Ky Naam Ka Charcha Bahot Hai Lyrics

 

 

Moal .. Mola. Mola…

 

Ali ke naam ka charcha bahut hai
Ali ke naam ka charcha bahut hai

 

Muslama bhi magar bahra bahut hai
Ali ke naam ka charcha bahut hai

 

Magar jab hoti hain huron ki baatein
Magar jab hoti hain huron ki baatein
Yehi bahra to phir sunta bahut hai

 

Muslama bhi magar bahra bahut hai
Ali ke naam ka charcha bahut hai

 

Nazar lag jaaye na asghar ko mola
Nazar lag jaaye na asghar ko mola
Tumhara laadla hasta bahut hai

 

Muslama bhi magar bahra bahut hai
Ali ke naam ka charcha bahut hai

 

Agar ho jazba-e-shabbir dil me
Khuda ko ek hi sajda bahut hai

 

Muslama bhi magar bahra bahut hai
Ali ke naam ka charcha bahut hai

 

Ali ke naam ka charcha bahut hai ..

 

 

 

जमात रजा ए मुस्तफा

ख़ुद कशी, यानी आत्महत्या का बयान*

अपने हाथ से अपने आप को हिलाक करना ख़ुद कशी कहलाता है,

अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया👇

आयते करीमा तर्जमा👇

और अपनी जानें क़त्ल ना करो, बेशक अल्लाह तुम पर मेहरबान है, और जो ज़ुल्म व ज़्यादती से ऐसा करेगा तो अनक़रीब हम उसे आग 🔥 में दाख़िल करेंगे और ये अल्लाह को आसान है,
📚 पारा 5, सूरह ए निसा, आयत 29—30, रुकू 2)

हदीस शरीफ़👇

हुज़ूर ए अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया👇

ग़ुज़िश्ता (गुज़री हुई) उम्मतों में एक आदमी था जिसके एक ज़ख़्म लग गया वो ख़ौफ़ज़दा हो गया, (ज़ख़्म की तकलीफ़ को बर्दाश्त ना कर सका) और छुरी से अपने हाथ को चीर डाला ख़ून इतना बहा के वो हिलाक हो गया, अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया
मेरे बन्दे ने जान देने में जल्दी की मेंने उस पर बहिश्त (जन्नत) हराम कर दी,

जान कितनी प्यारी चीज़ है, जान क़ुदरत का कितना बेहतरीन अतिया है, जान हो तो ज़िन्दगी है, जान और ज़िन्दगी के लिए आदमी क्या क्या जतन करता है हर मुमकिन कोशिश करके जान को आराम पहुंचाता है क्योंके जान हर एक को प्यारी होती है, मगर ये सारी बातें फ़हम व फ़रासत की हैं, लेकिन होता ये है के कभी कभी आदमी अक़ल से बेगाना हो जाता है, होश व हवास खो बैठता है, सूझ बूझ की सलाहियत और अच्छाई बुराई की इस्तेदाद (तमीज़) से महरूम हो जाता है, तब जान जितनी अज़ीज़ और प्यारी चीज़ भी उसके नज़दीक अज़ीज़ नहीं रहती, ज़िन्दगी जैसी नेमत उसकी नज़र में बे वक़अत हो जाती है वो अपने हाथ से अपनी जान दे देता है, अपना गला घोटता है, दरया में छलांग लगाता है, किसी बिल्डिंग से कूद जाता है, रेल की पटरी पर लेट जाता है, ज़हर पी लेता है, वग़ैरह किस लिए, ज़हनी सुकून के लिए दुनिया की निगाहों से बचने के लिए, नदामत और शर्मिन्दगी की वजह से, किसी मक़सद में नाकाम हो जाने की वजह से हालांके ऐसे शख़्स को इनमें से कुछ नहीं मिलता, ना सुकून मिलता है, ना रुसवाई से निजात मिलती है, ना समाज में उसका मक़ाम बुलंद होता है, बल्के मज़ीद रुसवाई और बदनामी हाथ आती है, लोग उसका नाम बुराई से लेते हैं के वो हराम मौत का मुर्तकिब हुआ,

मरने के बाद दुनिया का आख़िरी मरहला तजहीज़ व तकफ़ीन, कफ़नाने व दफ़नाते का होता है, नमाज़े जनाज़ा पढ़ने और दुआ ए मग़फ़िरत का होता है उसमें भी लोग बे दिली से शिरकत करते हैं, ग़म और अफ़सोस कम होता है, आंसू कम निकलते हैं उसके बिल्कुल क़रीबी औलाद, बीवी, बहन, भाई, वालिदैन भी कदूरत ही महसूस करते हैं, ग़म व अन्दोह की कैफ़ियत नहीं होती जो फ़ितरी मौत के नतीजे में होती है,

लोग जल्द अज़ जल्द उसके आख़िरी मरासिम अदा करके छुटकारा पाना चाहते हैं ऐसा क्यों,,
इस लिए के उसने ख़ुद कशी की, अल्लाह तआला और उसके रसूल सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम के इरशाद की ना फ़रमानी की,
जो मिज़ाजे शरीअत और दुनियावी क़ानून और समाज के भी ख़िलाफ़ है,

मौत और ज़िन्दगी इंसान के इख़्तियार में नहीं, मौत और ज़िन्दगी का हक़ीक़ी मालिक अल्लाह तआला है, ख़ुद कशी करने वाला अल्लाह तआला की मिल्कियत में दख़ल देता है, मौत और ज़िन्दगी अगर इंसान की इख़्तियारी चीज़ होती तो इंसान जब चाहता मर जाता, जब चाहता मरने से बच जाता, लेकिन मुशाहिदा (देखा गया) है के बहुत से ख़ुद कशी करने वाले मौत को दावत देने वाले, अपने आप को मौत के हवाले करने वाले, मौत से वक़्ती तौर पर बच जाते हैं, और बहुत से मौत से बचने की कोशिश करने वाले मौत से बच नहीं पाते,

मालूम हुआ मौत व हयात (ज़िन्दगी) का मालिक अल्लाह तआला है, जब चाहता है मारता है, जब तक चाहता है मौत से बचाए रखता है, ज़िन्दगी अल्लाह तआला की अमानत है, इंसान अपनी ज़िंन्दगी से फ़ायदा उठाए लेकिन उसमें मालिकाना इख़्तियार का दावेदार होकर अपनी ज़िन्दगी से खेल ना करे,

मसलक ए आला हजरत जिंदाबाद
जमात रजा ए मुस्तफा जिंदाबाद
हुजूर ताजुशशारिया जिंदाबाद
हुजूर कायदे मिल्लत जिंदाबाद

 

जमात रजा ए मुस्तफा

एक ऐसा शख्स जिसे हुज़ूर की 60000 हदीसो का इल्म है।

एक ऐसा शख्स जो बगैर किसी से दबे और डरे मसलके आला हजरत का तहफ़्फ़ुज़ किया।

एक ऐसा शख्स जो दिल से मसलके आला हजरत पर फिदा है।

एक ऐसा शख्स जो खुद मसलके आला हज़रत की तस्वीर है

एक ऐसा शख्स जो जानता है कि हुज़ूर Tajus’Sharaih क्या है?

एक ऐसा शख्स जो 85 साल की उम्र में भी दुश्मनाने इस्लाम के सामने शेर की तरह खड़ा है।

एक ऐसा शख्स जो कि इस दौर में सुलहकुल्लियो के खिलाफ खड़ा है।

एक ऐसा शख्स जो हमे सिखाता है कि इमाम अहले सुन्नत आला हज़रत रदियल्लाहो का मतलब क्या है।

एक ऐसा शख्स जिनके शागिर्द आज पूरी दुनिया मे दीन ऐ मतीन का काम अंजाम दे रहे है।

एक ऐसा शख्स जो कि पूरी दुनिया मे मसलके आला हजरत की पहचान करवा रहा है।

एक ऐसा शख्स जिसका जिंदगी का मक़सद सच्चाई, हक़ीक़त, हुज़ूर सल्लल्लाहो अलयवसल्लम से मुहब्बत और आला हजरत से अक़ीदत है।

एक ऐसा शख्स जिनके वालिद का अहले सुन्नत वल जमाअत पर अहसान है कि उन्होंने बहारे शरीअत हमे दी।

उस शख्स का नाम

वली इब्ने वली,मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती ज़ियाउल मुस्तफा साहब मद्दज़िल्लहुल आली है।

खुश किस्मत है वो लोग जो हज़रत की ज़ियारत से फ़ैज़ीयाब होंगे। Alhamdulillah🌹🌹🌹

मसलक ए आला हजरत जिंदाबाद
जमात रजा ए मुस्तफा जिंदाबाद
हुजूर ताजुशशारिया जिंदाबाद
हुजूर कायदे मिल्लत जिंदाबाद

 

 

 

1st Post में अलैहिस्सलाम कहना कैसा वजाहत हुवा तो लोगो के एतेराज़ हुवा इमाम बुखारी के दलील लेकर

#Post_No_2 में इसकी वजाहत कर दिया 👇👇

#मसअला अलैहिस्सलाम इमाम बुखारी ने क्यो लिखा

मेरे मुर्शिद ए करिम ने इस तालुख से क्या खूब फरमाये

#इमाम_बुखारी की जो किताब है इसकी वजाहत हो चुकी है इमाम बुखारी ने अलाजद्दीहि व अलैहिस्सलाम लिखा है इसका मतलब उनके जद्दे अमजद रसूल ए करीम पर सलाम भेजा है ना कि अलैहिस्सलाम

शिया क़ुतुब खानों से छापी बुख़ारी शरीफ में अलैहिस्सलाम जान बूझकर छापा गया है इस लिए हुज़ूर ताजुशरिया इसकी वजाहत किय है

अब आइये Syed Rakib Ali भाई जान का सवाल रहा जब कोई हर्ज नही तो फिर यही जवाब से क्लियर कर देते ताकि भसड़ न हो सबको राफजी होना सर्टिफिकेट दे देते है

तो मेरा #जवाब ये है कि मैं किसी को राफजी होना सर्टिफिकेट न देता हूं ना राफजी बनाता हूँ

बल्कि मेरा नजरिया ये है जो राफजी वाला अक़ीदा सुन्नियो में फैलाई जा रही है इससे बाज आओ

अलैहिस्सलाम कहना ये शियो के पर्सनल अक़ाइद है कुछ सुन्नी धीरे धीरे ये अक़ीदे अपनाते जा रहे है

तो बेहतर है कि जो अक़ीदा शियो का है उससे बाज आओ ताकि आगे चलकर धीरे धीरे फैले नही ओर यही मोकिफ़ उलेमा ए किराम के है

हमने गौर किया हु अक्सर हमारी बात में कड़वा हुवा करता है मगर सच होता है मुखलीफिन के भसड़ आखरी में उनके मुँह पर जा गिरती है

आखरी बात सुन लो जिसे अलैहिस्सलाम कहना है वो कहे लेकिन बेहतर है परहेज किया जाए

वरना तुम्हारी इस रोवय्या से राफजी शिया खुश होते है क्योकी उनका अक़ाइद सुन्नियो के जरिये फैल रही है

Shaikh Jameel भाई ने भी दुरुस्त कहां है 🙂🙂👇

ऐसे चीज से परहेज़ करनी चाहिए जिससे दूसरे के साथ तस्बीह हो और दूसरे का खास शियार हो

#अलैहिस्सलाम खास शिया लोगो के यहाँ चलन है उसे बाज़ सुन्नी अपना रहे है और इसे अहले बैत से मुहब्बत कहते है

अरे शिया लोगो का अहले बैत से मुहब्बत तब तक मक़बूल न समझे जब तक अहले बैत को अम्बिया अलैहिस्सलाम से अफ़ज़ल न बना दे

तो कुछ सुन्नियो से पूछना चाहता हु की अलैहिस्सलाम लिखना ही अगर अहले बैत से मुहब्बत की निशानी है तो शिया लोगो की मुहब्बत अहले बैत को अम्बिया तक पहुंचाने तक पूरी नही होती
तो क्या तुम लोग भी अहले बैत के मुहब्बत के सिले में उन्हे अम्बिया तक ले जाओगे

 

 

 

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