ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه

ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه

 

 

ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 1
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ख्वाजये हिन्द वो दरबार है आला तेरा
कभी महरूम नहीं मांगने वाला तेरा

नाम – मोइन उद्दीन हसन

लक़ब – हिन्दल वली, गरीब नवाज़

वालिद – सय्यद गयास उद्दीन हसन

वालिदा – बीबी उम्मुल वरा (माहे नूर)

विलादत – 530 हिजरी, खुरासान

विसाल – 6 रजब 633 हिजरी, अजमेर शरीफ

वालिद की तरफ से आपका सिलसिलए नस्ब इस तरह है मोइन उद्दीन बिन गयास उद्दीन बिन नजमुद्दीन बिन इब्राहीम बिन इदरीस बिन इमाम मूसा काज़िम बिन इमाम जाफर सादिक़ बिन इमाम बाक़र बिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन बिन सय्यदना इमाम हुसैन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन

वालिदा की तरफ से आपका नस्ब नामा युं है बीबी उम्मुल वरा बिन्त सय्यद दाऊद बिन अब्दुल्लाह हम्बली बिन ज़ाहिद बिन मूसा बिन अब्दुल्लाह मखफी बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना मौला अली रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन, गोया कि आप हसनी हुसैनी सय्यद हैं

📕 तारीखुल औलिया, सफह 74

मसालेकस सालेकीन में हैं कि आप और हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपस में खाला ज़ाद भाई हैं और वहीं सिर्रूल अक़ताब की रिवायत है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ एक रिश्ते से हुज़ूर ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मामू होते हैं

📕 मसालेकस सालेकीन, जिल्द 2, सफह 271
📕 सिर्रूल अक़ताब, सफह 107

आपकी वालिदा फरमाती हैं कि जिस दिन से मेरे शिकम में मोइन उद्दीन के जिस्म में रूह डाली गयी उस दिन से ये मामूल हो गया कि रोज़ाना आधी रात के बाद से सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज़ आती रहती, और जब आपकी विलादत हुई तो पूरा घर नूर से भर गया, आपके वालिद एक जय्यद आलिम थे आपकी इब्तेदाई तालीम घर पर ही हुई यहां तक कि 9 साल की उम्र में आपने पूरा क़ुरान हिफ्ज़ कर लिया, मां का साया तो बचपन में ही उठ गया था और 15 साल की उम्र में वालिद का भी विसाल हो गया

📕 मीरुल आरेफीन, सफह 5

वालिद के तरके में एक पनचक्की और एक बाग़ आपको मिला जिससे आपकी गुज़र बसर होती थी, एक दिन उस बाग़ में दरवेश हज़रत इब्राहीम कन्दोज़ी आये गरीब नवाज़ ने उन्हें अंगूर का एक खोशा तोड़कर दिया, हज़रत इब्राहीम सरकार गरीब नवाज़ को देखकर समझ गए कि इन्हें बस एक रहनुमा की तलाश है जो आज एक बाग़ को सींच रहा है कल वो लाखों के ईमान की हिफाज़त करेगा, आपने फल का टुकड़ा चबाकर गरीब नवाज़ को दे दिया जैसे ही सरकार गरीब नवाज़ ने उसे खाया तो दिल की दुनिया ही बदल गयी,हज़रत इब्राहीम तो चले गए मगर दीन का जज़्बा ग़ालिब आ चुका था आपने बाग़ को बेचकर गरीबो में पैसा बांट दिया, खुरासान से समरक़न्द फिर बुखारा इराक पहुंचे और अपने इल्म की तकमील की

📕 अहसानुल मीर, सफह 134

आप एक मर्शिदे हक़ की तलाश में निकल पड़े और ईरान के निशापुर के क़रीब एक बस्ती है जिसका नाम हारूनाबाद है, जब आप वहां पहुंचे तो हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को देखा और उन्होंने आपको, मुर्शिदे बरहक़ ने देखते ही फरमाया कि आओ बेटा जल्दी करो मैं तुम्हारा ही इंतेज़ार कर रहा था अपना हिस्सा ले जाओ हालांकि इससे पहले दोनों की आपस में कभी कोई मुलाक़ात नहीं हुई थी, खुद सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि “जब मैं उस महफिल में पहुंचा तो बड़े बड़े मशायख बैठे हुए थे मैं भी वहीं जाकर बैठ गया तो हज़रत ने फरमाया कि 2 रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ो मैंने पढ़ा फिर कहा किबला रु होकर सूरह बक़र की तिलावत करो मैंने की फिर फरमाया 60 मर्तबा सुब्हान अल्लाह कहो मैंने कहा फिर मुझे एक चोगा पहनाया और कलाह मेरे सर पर रखी और फरमाया कि 1000 बार सूरह इखलास पढ़ो मैंने पढ़ी फिर फरमाया कि हमारे मशायख के यहां फक़त एक दिन और रात का मुजाहदा होता है तो करो मैंने दिन और रात नमाज़ों इबादत में गुज़ारी, दूसरे रोज़ जब मैं हाज़िर हुआ क़दम बोसी की तो फरमाया कि ऊपर देखो क्या दिखता है मैंने देखा और कहा अर्शे मुअल्ला फिर फरमाया नीचे क्या दिखता है मैंने देखा और कहा तहतुस्सरा फरमाते हैं अभी 12000 बार सूरह इखलास और पढ़ो मैंने पढ़ी फिर पूछा कि अब क्या दिखता है मैंने कहा कि अब मेरे सामने 18000 आलम हैं फरमाते हैं कि अब तेरा काम हो गया” उसके बाद भी सरकार गरीब नवाज़ 20 साल तक अपने मुर्शिद के साथ ही रहें

📕 अनीसुल अरवाह, सफह 9

 

 

ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 2
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आपका शजरये बैयत इस तरह है ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती अज़ ख्वाजा उस्मान हारूनी अज़ हाजी शरीफ चिश्ती अज़ क़ुतुबुद्दीन मौदूर चिश्ती अज़ ख्वाजा नासिर उद्दीन अबु यूसुफ चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु मुहम्मद चिश्ती अज़ ख्वाजा अब्दाल चिश्ती अज़ ख्वाजा अबु इस्हाक़ चिश्ती अज़ ख्वाजा मुनशाद अला देवनरी अज़ शैख अमीन उद्दीन बसरी अज़ सईद उद्दीन मराशि अज़ सुल्तान इब्राहीम अदहम अज़ ख्वाजा फ़ुज़ैल बिन अयाज़ अज़ ख्वाजा अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद अज़ ख्वाजा हसन बसरी अज़ शहंशाहे विलायत सय्यदना मौला अली अज़ हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम

📕 तारीखुल औलिया, सफह 78

ख्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ये बड़ी ही मशहूर करामत है कि एक मर्तबा आप बग़दाद के सफर में थे आपके चन्द खलीफा भी आपके साथ थे, रास्ते पे एक जगह पड़ाव किया आप और आपके मुरीद रोज़े से थे आपने उनसे थोड़ी सी आग ढूंढ कर लाने को कहा, मुरीद एक जगह पहुंचे जहां आग जल रही थी जब उन्होंने थोड़ी आग उनसे मांगी तो उन लोगों ने देने से मना कर दिया और कहा कि ये हमारा माबूद है हम इसकी पूजा करते हैं लिहाज़ा हम तुम्हे नहीं दे सकते, वो वापस आये और पीर से सारा हाल बयान कर दिया, आप उठे और उन आतिश परश्तों के पास पहुंचे और उनके सरदार जिसका नाम मखशिया था उससे फरमाया कि इस आग को पूजने से क्या फायदा तो कहने लगा कि ये हमारी निजात का ज़रिया है तो आप फरमाते हैं कि तुम बरसो से इसकी पूजा करते हो क्यों ना तुम और मैं इस आग में अपना हाथ डालें अभी पता चल जायेगा कि ये इबादत करने के लायक़ है या नहीं तो सरदार बोला कि आग की फितरत जलाना है सो ये जलायेगी आप फरमाते हैं कि बेशक इसकी फितरत जलाना है मगर मेरा रब वो है कि इस आग को भी बाग बना सकता है, ये कहकर आपने उसकी गोद में बैठे हुए उसके बच्चे को उठा लिया और आग में तशरीफ ले गए, मनो मन लकड़ियां जहां जल रही हो उसकी तपिश का क्या आलम होगा कहने की ज़रूरत नहीं, इधर सरदार और उसके मानने वालों ने रोना पीटना शुरू कर दिया कि मुसलमान भी मारा गया और हमारे बेटे को भी ले गया, करीब घंटे भर बाद उसी आग से ख्वाजा उस्मान हारूनी बाहर निकले और बच्चा भी आपकी गोद में था जो निहायत ही खुश व खुर्रम था, जब सरदार ने बच्चे से पूछा कि तू इतना खुश क्यों है तो कहने लगा कि अब्बा मैं एक बाग में था जहां तरह तरह की नेअमतें मौजूद थी तो सरदार ने ख्वाजा उस्मान हारूनी से पूछा कि वो बाग क्या था तो आप फरमाते हैं कि वो जन्नत थी, अगर तुम सब भी कल्मा पढ़कर मुसलमान होते हो तो उस बाग में ले जाने की ज़िम्मेदारी मेरी, आपकी खुली हुई करामत देखकर वो पूरा का पूरा कबीला कल्मा पढ़कर मुसलमान हो गया

📕 खुतबाते अजमेर, सफह 89

जब ख्वाजा अबु इसहाक बैयत होने के लिए ख्वाजा मुनशाद की बारगाह में पहुंचे तो आपने उनसे नाम पूछा तो फरमाया कि इस नाचीज़ को अबु इसहाक कहते हैं तो ख्वाजा मुनशाद फरमाते हैं कि आज से हम तुझे चिश्ती कहेंगे और क़यामत तक जितने तेरे मुरीद होंगे सब चिश्ती कहलायेंगे, ये है सिलसिलाये चिश्तिया की वजह तसमिया

📕 तारीखुल औलिया, सफह 79

ख्वाजा गरीब नवाज़ को लेकर आपके पीरो मुर्शिद हज के सफर को गए और वहां काबे का गिलाफ पकड़कर फरमाया कि ऐ मौला मैंने मोइन उद्दीन को तेरे सुपुर्द किया तो ग़ैब से निदा आई कि हमने मोईन उद्दीन को क़ुबूल किया फिर वहां से रौज़ए अनवर की हाज़िरी दी और ख्वाजा गरीब नवाज़ से सलाम पेश करने को कहा तो आपने सलाम किया तो जाली मुबारक से बा आवाज़ बुलंद जवाब आता है “व अलैकुम अस्सलाम या क़ुतुबुल मशायख लिलबर्रे वलबहर” जिसे सबने सुना

📕 अनीसुल अरवाह, सफह 6

उसके बाद कुछ और दिन भी पीरो मुर्शिद की बारगाह में गुज़ारे और उन्ही के क़ौलो तर्जुमान को क़लम बंद करते रहे जिसे बाद में आपने अनीसुल अरवाह का नाम दिया, उनसे इजाज़त ली और अस्फहान पहुंचे वहां ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को मुरीद किया और उन्हें साथ लेकर फिर रौज़ए अनवर पर हाज़िरी दी, जहां आपको ये बशारत मिली कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि “ऐ मोईन उद्दीन तू मेरे दीन का मोईन है मैंने तुझको हिंदुस्तान की विलायत बख्शी जा अजमेर जा और एक जन्नती अनार बख्शा, ख्वाजा गरीब नवाज़ को हिंदुस्तान के रास्ते का इल्म ना था तो आलमे ख्वाब में आपको पूरा नक्शा दिखाया गया, आप वहां से अपने पीर की बारगाह में पहुंचे और इजाज़त लेकर हिंदुस्तान की तरफ चल पड़े, आपके साथ ख्वाजा बख्तियार काकी, हज़रत मुहम्मद यादगार और ख्वाजा फखरूद्दीन गुर्देज़ी भी थे ये नूरानी काफिला सरहदी रास्तो से पंजाब (पाकिस्तान) पहुंचा उस वक़्त शहाब उद्दीन गोरी को शिकस्त हुई थी और उसकी फौज वापस जा रही थी, लोगों ने ख्वाजा गरीब नवाज़ को भी मना किया कि ये सही वक़्त नहीं है तो आप फरमाते हैं कि तुम तलवार के भरोसे गए थे और हम अल्लाह के भरोसे जा रहे हैं, फिर मुलतान होते हुए लाहौर पहुंचे और वहां दाता गंज बख्स की बारगाह में चिल्ला किया और वहां से दिल्ली पहुंचे और खांडे राव के महल के आस पास अपना पड़ाव किया, आपकी रश्दो हिदायत से दिल्ली में जब बहुत लोग मुसलमान होने लगे तो खांडे राव ने उन्हें रोकने के लिए तरह तरह की तदबीर की मगर सब नाकाम रही आखिर में एक शख्श को लालच देकर आपका मोतकिद बनाकर आपके पास भेजा कि वो आपको क़त्ल करदे,जब वो ख्वाजा गरीब नवाज़ के सामने आया तो आप फरमाते हैं कि झूटी अक़ीदत मंदी से क्या फायदा जिस मकसद से आया है वो कर जब उसने ये सुना तो कांप उठा फौरन क़दमो में गिरकर माफी मांगी और मुसलमान हो गया, जब दिल्ली में काफी मुसलमान हो गए तो आपने अपने खलीफा ख्वाजा बख्तियार काकी को दिल्ली में रहने को कहा और खुद अजमेर की तरफ रवाना हुए

📕 तारीखुल औलिया, सफह 86
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ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा- 3
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ये बात सही है कि ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के आने से कई सौ बरस पहले हिंदुस्तान में इस्लाम आ चुका था जैसा कि मशहूर है कि सुल्तान महमूद गज़नवी रहमतुल्लाह तआला अलैहि के 17 हमले हिंदुस्तान पर हो चुके थे, मगर इस्लाम को फरोग़ मिला है तो सरकार गरीब नवाज़ की आमद के बाद

📕 अलमलफूज़, हिस्सा 1, सफह 104

आपकी आमद अजमेर शरीफ में 10 मुहर्रम 561 हिजरी में हुई

📕 महफिले औलिया, सफह 342

चन्द करामतें

अजमेर शरीफ पहुंचकर आपने एक दरख्त के नीचे बैठना चाहा तो कुछ सायेबान ने मना किया कि यहां पर राजा के ऊंट बैठते हैं लिहाज़ा आप यहां नहीं बैठ सकते सरकार गरीब नवाज़ ने फरमाया कि ठीक है तुम्हारे राजा के ऊंट ही यहां बैठेंगे, ऊंट बैठ तो गए मगर जब उनको उठाया गया तो उठने को तैयार ना होते थे गर्ज़ कि उनको मारा भी गया फिर भी वो अपनी जगह से ना उठे गोया कि वो ज़मीन से चिपक से गए थे, सायेबान पृथ्वी राज के पास ये अरीज़ा लेकर गए और सारा वाक़िया कह सुनाया तो वो बोला कि ज़रूर ये उस फक़ीर के साथ की गयी बद आमाली का सिला है सो उन्हें ढूंढो और उनसे माफी मांगो, सायेबान गरीब नवाज़ की बारगाह में हाज़िर होकर माफी के तलबगार हुए तो आपने उन्हें माफ कर दिया अब जब वो वापस आकर देखते हैं तो सबके सब ऊंट अपनी जगह से खड़े हो चुके हैं

आपके अखलाक़े करीमाना को देखकर और आपकी बातों को सुनकर हज़ारों हज़ार का झुण्ड कल्मा पढ़कर मुसलमान होने लगे तो घबराकर सिपाहियों ने आप पर पानी बन्द करने का हुक्म दिया और सोचा कि जब पानी ही ना मिलेगा तो ये यहां से चले जायेंगे, ख्वाजा गरीब नवाज़ ने अपने मुरीद को आना सागर पर भेजा और कहा कि एक कासे में पानी भर लाओ जब ये मुरीद आना सागर पर पहुंचे और कासे में पानी भरा तो खुदा की ऐसी क़ुदरत हुई कि पूरे तालाब का पानी एक कटोरे में समा गया, इधर तालाब तो खुश्क हो गया मगर सरकार की बारगाह में पानी की कोई कमी ना थी, जब पानी ना मिला तो अजमेर में कोहराम मच गया कि आनन फानन में तालाब कैसे सूख गया लोग परेशान और बेचैन हो गए जब राजा को ये खबर मिली तो फिर से उसने अपने सिपाहियों को सरकार गरीब नवाज़ की बारगाह में भेजा और मिन्नत समाजत की कि अगर पानी ना मिला तो लोग प्यासे मर जायेंगे, रहम दिली तो अल्लाह वालों का खास्सा है सो वो कासे का पानी फिर से तालाब में डलवा दिया और पूरा तालाब फिर पानी से भर गया

तमाम पुजारियों के सरदार का नाम शादी देव था जब इसने अपने बुतखानो में वीरानी देखी तो भड़क गया और गरीब नवाज़ की बारगाह में गुस्से से हाज़िर हुआ मगर ज्यों ही ख्वाजा गरीब नवाज़ ने उस पर नज़र डाली फौरन कांपने लगा और गिरकर माफी मांगी और इस्लाम क़ुबूल कर लिया उसका इस्लामी नाम सअद रखा गया

जब 80-90000 लोग मुसलमान हो गए तो राजा पृथ्वी राज घबरा गया और सरकार गरीब नवाज़ को रोकने के लिए अपने गुरु और हिंदुस्तान के सबसे बड़े जादूगर अजय पाल को बुलाकर गरीब नवाज़ के सारे हाल से वाक़िफ कराया, अजय पाल ने इसको बड़े ही हल्के में लिया और राजा को यक़ीन दिलाया कि वो बहुत जल्द उनको उनके साथियों के साथ अजमेर से निकाल देगा, अजय पाल अपने साथियों के साथ उड़ने वाले शेरों पर सवार होकर हाथियों और अजदहों के साथ सरकार गरीब नवाज़ के दरबार में पहुंच गया, सरकार ने एक हल्का खींचा और सबसे फरमा दिया कि कोई भी इससे बाहर ना निकले, पहले उसने अज़हदों को भेजा मगर ज्यों ही खत से मस हुआ जलकर खाक हो गया फिर आग की बारिश करने लगा मगर वो आग वापस लौटकर खुद उनको ही जलाने लगी, जब अजय पाल ने ये माजरा देखा तो सोचा कि उड़कर आप पर हमला करे तो वो हवा में उड़ने लगा आपने उसे उड़ता देखा तो अपनी नालैन को उतार कर उसकी तरफ फेंका, अब ये नालैन जाकर अजय पाल के सर पर बरसने लगी और मारते मारते बुरा हाल कर दिया अजय पाल उनकी सदाक़त को समझ गया और फौरन क़दमो में गिरकर माफी मांगी, सरकार गरीब नवाज़ ने माफ भी कर दिया और उन्हें विलायत की मंजिल भी तय करा दी उनका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह रखा गया उन्होंने अर्ज़ की कि हुज़ूर मुझे हयाते अब्दी अता फरमाई जाये आप मुस्कुराकर फरमाते हैं तेरी ये तमन्ना भी पूरी हुई, कहा जाता है कि अब्दुल्लाह अब भी ज़िंदा हैं और उन्हें अब्दुल्लाह बियाबानी के नाम से पुकारा जाता है और वो भटकों को रास्ता बताते हैं

सरकार गरीब नवाज़ ने इसके बाद पृथ्वी राज को भी इस्लाम की दावत पेश की पर उसने क़ुबूल ना किया और आप के मुरीदों पर जुल्मों सितम करने लगा, आपने उससे अपने मुरीदों पर ज़ुल्म ना करने की शिफारिश भी की मगर वो नहीं माना तो आपने जलाल में आकर फरमाया कि “हमने पिथौरा को जिंदा गिरफ्तार करके लश्करे इस्लाम के हवाले कर दिया” उसके बाद आपने शहाब उद्दीन घोरी को ख्वाब में बशारत दी और उसे फतह का मुज़्दह सुनाया, शहाब उद्दीन घोरी पहले ही शिकश्त की वजह से बेचैन था उसने एक लश्करे जर्रार को तरतीब दिया और हिंदुस्तान पर हमले के लिए निकल पड़ा, वहां पहुंचकर उसने पृथ्वी राज को अपनी इताअत करने का मशवरा दिया मगर वो अपनी फौज पर घमंड करता रहा और 150 राजाओं की फौज को लेकर जिसमें 3000 हाथी सवार 300000 घुड़ सवार और बेशुमार पैदल सिपाही शामिल थे जंग पर आमादा हुआ, शहाब उद्दीन ने अपनी 100000 की फौज को 4 हिस्सों में बांट दिया था और एक हिस्सा ही जंग करता 3 हिस्से आराम, जब वो थक जाता तो दूसरा हिस्सा आगे आता और पहले वाला आराम करता, उसकी ये अक़्ल मंदी बहुत काम आई, उधर पृत्वी राज की फौज दिन भर लड़कर थक चुकी थी शाम होने को थी एक तारो ताज़ा लश्कर जब उन पर आ पड़ा तो किसी में उनसे लड़ने की ताब ना थी खांडे राव समेत बहुत से राजा मारे गए और पृथ्वी राज गिरफ्तार हुआ, ये जंग 589 हिजरी बा मुताबिक़ 1193 ईसवी में लड़ी गयी, पृथ्वी राज ने भागना चाहा मगर वो भी आखिर मारा गया, सूरज डूब चुका था अचानक उसके कानो में कहीं से अज़ान की आवाज़ आयी वो हैरान रह गया कि इस कुफ्रिस्तान में अज़ान कैसे, उसे बताया गया कि एक फक़ीर यहां कुछ दिनों से मुक़ीम है वो ही अज़ान देकर नमाज़ पढ़ा करते हैं, वो वहां पहुंचा वुज़ु करके जमात खड़ी थी सो शामिल हो गया, नमाज़ खत्म होने के बाद जैसे ही उसने सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के चेहरे को देखा तो जान लिया कि यही वो ख्वाब वाले बुज़ुर्ग हैं जिन्होंने उसे फतह की बशारत दी थी आपके क़दमो में गिर गया और देर तक रोता रहा, सरकार ने उसे उठाकर अपने सीने से लगाया उनकी ख्वाहिश पर उन्हें अपने सिलसिले में बैयत किया और फिर रुखसत किया, शहाब उद्दीन घोरी दिल्ली में अपना नायब क़ुतुब उद्दीन ऐबक को बनाकर वापस लौट गया

📕 तारीखुल औलिया, सफह 85-95

आपने 2 शादियां की और दोनों ही हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम के कहने पर की, पहला निकाह 590 हिजरी बा मुताबिक 1194 ईसवी में बीबी अामतुल्लाह से की जिनसे आपको 3 औलादें हुई 2 बेटे हज़रत ख्वाजा फखरूद्दीन व हज़रत खवाजा हिसामुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैहि और एक बेटी बीबी हाफिज़ा जमाल और दूसरा निकाह 620 हिजरी बा मुताबिक़ 1223 ईसवी में सय्यद वजीह उद्दीन मशहदी की बेटी हज़रत बीबी असमतुल्लाह से हुई जिनसे आपको एक बेटा हज़रत शैख अबु सईद रहमतुल्लाह तआला अलैहि हुए

📕 खुतबाते अजमेर, सफह 457
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ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा – 4
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कुछ और करामतें

एक मरतबा शहर के हाकिम ने एक शख्स की गर्दन उड़ा दी उसकी मां रोती हुई ख्वाजा गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुई और बेटे की मौत की शिकायत की, आप उसे लेकर फौरन क़त्ल गाह पहुंचे और मक़तूल का सर धड़ से मिलाकर फरमाया कि अगर वाकई तू बेगुनाह क़त्ल हुआ है तो अल्लाह के हुक्म से खड़ा हो जा, आपका इतना कहना था कि फौरन वो लड़का उठकर खड़ा हो गया अब जो हाकिम ने देखा तो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगी

📕 महफिले औलिया, सफह 344

हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ शैख शहाब उद्दीन सहरवर्दी और शैख अहद उद्दीन किरमानी रिज़वानुल लाहे तआला अलैहिम अजमईन एक जगह बैठे हुए थे कि एक बच्चा तीर कमान लिए हुए सामने से गुज़रा, ख्वाजा गरीब नवाज़ फरमाते हैं कि ये बच्चा एक दिन दिल्ली का बादशाह बनेगा चुनांचे आपकी कही बात हक़ हुई और वही बच्चा सुल्तान शम्शुद्दीन अल्तमश के नाम से मशहूर हुआ और 26 साल दिल्ली पर हुकूमत की

📕 इक़्तेबासुल अनवार, सफह 377

एक मर्तबा सरकार गरीब नवाज़ अपने मुरीद शैख अली के साथ कहीं सफर पर जा रहे थे, शेख अली किसी के मकरूज़ थे और जिसका कर्ज़ था उसने शेख अली को रास्ते में रोक लिया और कहा कि आज पैसे दिए बिना जाने नहीं दूंगा, ख्वाजा गरीब नवाज़ ने पहले तो उसे समझाया कि अभी इनके पास पैसे मौजूद नहीं है जब होगा तो तुम्हे दे देंगे मगर वो नहीं माना और अपनी ज़िद पर अड़ा रहा, सरकार गरीब नवाज़ को जलाल आ गया और अपनी चादर उतारकर जमीन पर फेंक दी और उससे कहा कि तेरा जितना भी कर्ज़ है चादर हटाकर निकाल ले पहले तो उसने मज़ाक समझा मगर जैसे ही चादर हटा कर देखता है तो सोने चांदी के ढेर नज़र आते हैं, इतना माल देखकर उसकी नियत खराब हो जाती है और अपनी दी रकम से ज़्यादा उठाना चाहता है तो फौरन ही उसका हाथ सिल हो जाता है,रो कर हुज़ूर की बारगाह में अर्ज़ करता है आपको उसके आंसुओं पर रहम आ जाता है और उसे माफ कर देते हैं फौरन ही वो आपके क़दमो में गिरकर माफी मांगता है और अपना सारा कर्ज़ माफ कर देता है और आपसे बैयत करता है

📕 असरारूल औलिया, सफह 202

एक मर्तबा अपने किसी पड़ोसी के जनाज़े में शामिल हुए बाद मदफून कुछ देर वहीं ठहरे, ख्वाजा बख्तियार काकी फरमाते हैं कि मैंने देखा कि हज़रत के चेहरे का रंग अचानक बदल गया फिर कुछ देर बाद सही हो गया और फरमाते हैं कि बैयत भी अजीब चीज़ है पूछा क्यों तो फरमाते हैं कि इस मुर्दे पर अज़ाब के फरिश्ते आ पड़े थे मुझे बड़ा सदमा हुआ फिर अचानक क़ब्र में सरकार उस्मान हारूनी तशरीफ लाये और फरिश्तो से कहा कि ये मेरा मुरीद है इसे अज़ाब ना करो तो कहने लगे कि बेशक आपका मुरीद है मगर आपके रास्ते पर ना चला तो फरमाया कि ठीक है कि नहीं चला मगर इस फक़ीर से निस्बत रखी यही क्या कम है तो ग़ैब से निदा आई कि मुझे उस्मान हारूनी की खातिर अज़ीज़ है लिहाज़ा उसे छोड़ दो और फरिश्ते वापस हुए

📕 मोईनुल अरवाह, सफह 188

करामत को सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की इतनी है कि लिखने लगूं तो पूरी किताब बन जाए बस इतने पर ही इक्तिफा करता हूं

आपके खुल्फा तो बहुत हैं मगर 65 खास खलीफा हैं जिसमे खलीफये अकबर हज़रत ख्वाजा क़ुतुब उद्दीन बख़्तियार काकी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हैं

आपकी लिखी हुई किताबें अनीसुल अरवाह, कशफुल असरार, गंजुल असरार, रिसालये तसव्वुफ मन्ज़ूम, रिसालये आफाक़ वन्नफ्स, हदीसे मआरिफ, दीवाने मोईन, रिसालये मौजूदिया मशहूर हैं

फरमाते हैं कि मुसलमान को उतना नुक्सान गुनाह करने से भी नहीं होता है जितना कि किसी मुसलमान को जलील करने से होता है और फरमाते हैं कि नेकों की सोहबत में बैठना नेकी करने से अफज़ल है और बुरों की सोहबत में बैठना गुनाह करने से बदतर है और फरमाते हैं कि काफिर 100 बरस तक ला इलाहा इल्लल्लाह कहे मगर हरगिज़ मुसलमान नहीं हो सकता लेकिन एक मर्तबा मुहम्मदुर्रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम कहने से 100 साल के कुफ्र दूर हो जाते हैं और फरमाते हैं कि रिज़्क़ की कुशादगी के लिए हर नमाज़ के बाद कसरत से पढ़े सुब्हानल लज़ी सख्खरा लना हाज़ा वमा कुन्ना लहू मुक़रनीन سبحان الّذي سخر لنا هذا وما كنا له مقرنين (दुआ-ए सफर)

633 हिजरी शुरू होते ही आपको इल्म हो गया था कि ये मेरा आखिरी साल है लिहाज़ा सबको वसीयतें की ख्वाजा बख्तियार काकी के नाम खिलाफत नामा लिखवाया अपनी अमानतें उनके सुपुर्द की, 6 रजब की शब रात भर कमरा बंद करके ज़िक्रो अज़कार करते रहे सुब्ह को जब बहुत देर तक आवाज़ नहीं आई तो मजबूरन दरवाज़ा तोड़ना पड़ा आप खुदा की राह में विसाल फरमा चुके थे, और आपकी पेशानी मुबारक पर लिखा था जिसका तर्जुमा ये है “ये अल्लाह के हबीब थे और अल्लाह की मुहब्बत में वफात पाई” आपकी नमाज़े जनाज़ा आपके बड़े साहबज़ादे ख्वाजा फखरुद्दीन रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने पढ़ाई और आपको उसी हुजरे में दफ्न किया गया

📕 तारीखुल औलिया, सफह 98-113
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ख्वाजा ग़रीब नवाज़ رضي الله عنه हिस्सा – 5
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सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की सीरत का बयान मुखतसर में कल ही मुकम्मल हो चुका था मगर कुछ बातें करनी बाकी रह गयी थी सो एक हिस्सा और बनाना पड़ा, जैसा कि माहौल चल रहा रहा है आप सब भी देखते ही होंगे कि आजकल कुछ लोगों का दीन और मज़हब यही रह गया है कि आलाहज़रत की शान में हुज़ूर ताजुश्शरिया की शान में या मसलके आलाहज़रत पर लअन तअन करो और अपने सुन्नी होने का सबूत दो, माज़ अल्लाह, गोया कुछ लोगों के दीन में अब सिर्फ वलियों को गाली देना ही बचा है ऐसे लोगों से मेरा ये सवाल है कि माज़ अल्लाह क्या कभी किसी रज़वी ने ख्वाजा गरीब नवाज़ की शान में या हज़रत मखदूम अशरफ जहांगीर समनानी की शान में या हज़रते वारिस पाक की शान में या हज़रते अमीर अबुल ओला की शान में या हज़रत शाह नियाज़ बेनियाज़ रज़ियल्लाहु तआला अलैहिम अजमईन की शान में कोई गुस्ताखाना अल्फाज़ निकाला क्या कभी कोई गैर न ज़ेबा बात इन बुज़ुर्गो की शान में कही, हरगिज़ नहीं ना कही है और ना कभी कहेगा, मगर आजकल कुछ नाम निहाद सुन्नी जैसे कि कुछ चिश्ती कुछ अशरफी कुछ वारसी कुछ अबुल ओलाई कुछ नियाज़ी खुले आम आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त की शान में गुस्ताखी करते हैं और ये कोई ढ़की छुपी हुई बात नहीं है कि कोई इंकार कर दे, लिहाज़ा अब एैसे नाम निहाद सुन्नियो के सामने तो सुन्नियत की एक ही पहचान है और वो है मसलके आलाहज़रत, जो इस मसलक पर क़ायम है वही अहले सुन्नत वल जमात के सच्चे मज़हब पर क़ायम है फिर चाहे वो किसी भी सिलसिले से ताल्लुक़ रखता हो वो सुन्नी है, मगर जो इस मसलक पर क़ायम नहीं तो वो अगर अपने नाम के आगे रज़वी भी लिखता होगा तब भी वो हरगिज़ सुन्नी नहीं, अल्लाह के वलियों से दुश्मनी रखने वाले अगर अल्लाह ने आंखें दी हो तो उसे खोल कर पढ़ें कि रब क्या फरमाता है

जिसने मेरे किसी वली से दुश्मनी की तो मैं उससे जंग का ऐलान करता हूं

📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 2, सफह 963

आलाहज़रत को बुरा कहने वालों अगर हिम्मत हो तो लड़ लेना रब से, जिस तरह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आग को गुलज़ार बनते देख गिरगिट फूंक मारकर उसे भड़काना चाहता था मगर ना भड़का सका बल्कि दुश्मनाने नबी बनकर आज तक और हमेशा चप्पलों से मार खाता फिरता है ठीक उसी तरह कुछ गिरगिट लोग भी मसलके आलाहज़रत का कुछ बिगाड़ ना पायेंगे चाहे सर पटक कर मर ही क्यों न जायें क्योंकि मसलके आलाहज़रत की ये धूम तौफीक़े इलल्लाह है यानि अल्लाह की जानिब से है हदीसे पाक में है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि

मेरी उम्मत का एक गिरोह क़यामत तक हक़ पर रहेगा और दुश्मन उसका कुछ ना बिगाड़ सकेंगे

📕 बुखारी शरीफ, जिल्द 1, सफह 61

अगर चे ये हदीस सवादे आज़म यानि मज़हबे अहले सुन्नत वल जमाअत की ताईद में हैं मगर चुंकि अब अहले सुन्नत वल जमाअत के अंदर भी इख्तिलाफ पाया जा रहा है तो इस हदीस पर अमल करते हुए कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं

मेरी उम्मत कभी गुमराही पर जमा ना होगी जब तुम इख्तिलाफ देखो तो बड़ी जमात को लाज़िम पकड़ो

📕 इब्ने माजा, सफह 283

तो इस वक़्त सबसे बड़ी जमाअत मसलके आलाहज़रत ही है तो ईमान की आफियतो भलाई इसी में है कि इसको लाज़िम पकड़ा जाये मगर कुछ लोगों को लगता है कि वो एक गिरोह भांडगीरी करने वालों सहाबा इकराम को गाली देने वालों या अपनी मस्जिदों में ये लिखने वालों का होगा कि यहां “मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों सलाम पढ़ना मना है” या शरियत को तमाशा बनाने वालों या वलियों को गाली देने वालो का होगा, नामुमकिन नामुमकिन नामुमकिन, वो एक गिरोह सिर्फ और सिर्फ मसलके आलाहज़रत वालों का ही होगा, और क्यों ना हो कि मेरे इमाम के कलम से निकला हुआ एक नुक्ता भी दिखा दो जो किसी अम्बिया व औलिया की तनकीस में लिखा गया हो या शरीयत के खिलाफ हो, पर दिखायेंगे कहां से क्योंकि वली तो वली मेरे इमाम ने तो जिस चीज़ की निस्बत भी वलियों से हो गयी उसकी भी ताज़ीम को वाजिब करार दे दिया, जैसा कि आपसे एक सवाल किया गया कि अगर कोई अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर कहे तो क्या हुक्म है, मेरे आलाहज़रत फरमाते हैं कि

अगर वो अजमेर शरीफ को सिर्फ अजमेर इसलिये कहता है कि सरकार गरीब नवाज़ की ज़ात कोई मुअज़्ज़म या मुतबर्रक नहीं कि अजमेर को अजमेर शरीफ कहा जाए जब तो गुमराह है और अगर सिर्फ काहिली की वजह से ऐसा करता है तो फैज़ से महरूम है

📕 फतावा रज़वियह, जिल्द 6, सफह 187

सोचिये कि जिस ज़ात ने अपनी पूरी ज़िन्दगी सिर्फ नामूसे रिसालत पर वक़्फ कर दी थी उस पर कीचड़ उछालना क्या ये सुन्नियों का शेवा है और क्या ऐसा करके वो अपने उन वलियों को जिनके नाम से वो पहचाने जाते हैं क्या वो उन्हें खुश कर रहे हैं या फिर ऐसे लोग मौला के साथ साथ उन वलियों का भी गज़ब मोल ले रहे हैं, मौला तआला से दुआ है कि ऐसे लोगों को हिदायत बख्शे और तमाम सुन्नियों में इत्तेहाद और मुहब्बत पैदा फरमाये – आमीन
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