Zindagani Ka Koi Bharosa Nahi Lyrics

Zindagani Ka Koi Bharosa Nahi Lyrics

 

Zindagani Ka Koi Bharosa Nahi Lyrics

 

Zindagi Ka Bharosa Nahin Lyrics Rais Anis Sabri

 

रात दिन मुस्तकिल कोशिशें ज़िन्दगी कैसे बेहतर बने
कितने दुख ज़िन्दगी के लिए और इसी का भरोसा नहीं

 

तेरी ख़ता नहीं जो तू गुस्से में आ गया
पैसे का ज़ूम था तेरे लहजे में आ गया
सिक्का उछाल कर के तेरे पास क्या बचा
तेरा ग़ुरुर तो मेरे पैसे में आ गया

 

मुस्कुराते हुए मन्ज़र से निकल आते हैं
वो भी क्या लोग है जो घर से निकल आते हैं
बे-सबाब हम को दबाने की ना कोशिश करना
हम वो सब्ज़े हैं जो पत्थर से निकल आते हैं
हम से दीवाने ठहर जाएं अगर साहिल पर
जितनी मोती हैं समन्दर से निकल आते हैं

 

इतना मज़बूर ना कर बात बनाने लग जाएं
हम तेरे सर की क़सम झूठी खाने लग जाएं

 

कितने सन्नाटे पिए मेरी समाअ़त ने कि अब
एक आवाज़ पे चाहूं तो निशाने लग जायें
मैं अगर अपनी जवानी के सुना दूं क़िस्से
जितने लौंडे हैं मेरे पांवों दीवाने लग जाएं

 

कल ये मेरे भी आंगन में थी जिस पे तुझको ग़ुरुर आज है
कल ये शायद तुझे छोड़ दे इस खुशी का भरोसा नहीं

 

बड़ी ही शान से रहते थे लोग जिसमें कभी
उसी मकान में अब मकड़ियों का जाला है
बहुत ग़ुरूर है तुझको तो अपनी दौलत पर
इसी ग़ुरुर ने तो कितनों को मार डाला है

 

कल ये मेरे भी आंगन में थी जिस पे तुझको ग़ुरुर आज है कल ये शायद तुझे छोड़ दे इस खुशी का भरोसा नहीं

 

आप तो हैं बहुत खूब-तर लग न जाए किसी की नज़र
आओ दिल में छुपा लूं तुम्हें ज़िन्दगी का भरोसा नहीं

 

तंगी ए रिज़्क़ से हलक़ान रखा जाएगा क्या
दो घड़ी का मुझे मेहमान रखा जाएगा क्या
तुझे खो कर तेरी फ़िक्र बड़ी लाज़िम है
तुझे पाकर भी तेरा ध्यान रखा जाएगा क्या
मान भी लें कि तुझे मैंने बहुत चाहा है
दोस्त सर पे मेरे क़ुरआन रखा जाएगा क्या
कोई भी शक्ल मेरे दिल में उतर सकती है
इक रिफ़ाकत में कहां उम्र गुज़र सकती है
तुझसे कुछ और ताल्लुक़ भी पुराना है मेरा
ये मोहब्बत तो किसी रोज़ भी मर सकती है
मेरी ख्वाहिश है कि फूलों से तुझे फ़तह करूं
वरना ये काम तो तलवार भी कर सकती

 

पत्थरों से कहो राज़ ए दिल ये ना देंगे दग़ा आपको
वो जो इक शख्स मुझे ताना ए जां देता है
मरने जाता हूं तो मरने भी कहां देता है
तेरी शर्तों पे अगर करना है तुझको क़ुबूल
ये सहूलत तो मुझे सारा जहां देता है

 

पत्थरों से कहो राज़ ए दिल ये ना देंगे दग़ा आपको
ऐ नदीम आज के दौर में आदमी का भरोसा नहीं

 

मेरे महबूब मुझे शौक़ से पत्थर कह लो
मैं तो पत्थर को भी भगवान कहा करता हूं
बे रुख़ी होती है महबूब से जो पहलो पहल
मैं उसे प्यार का उनवान कहा करता हूं
वो भी पत्थर है कि फुटपाथ के तामीर में जो
टुकड़े टुकड़े अगर होते हैं तो काम आते हैं
उन्ही फुटपाथ से तो सोते हैं लिपट कर मज़दूर
दो घड़ी के लिए आराम यहां पाते हैं
वो भी पत्थर है के आज़र के क़लम से जिसने
किसी माशूक़ की तस्वीर बनाई होगी
वो भी पत्थर है कि जिन्होंने शिव बनके
कितनों पूजने वालों की तक़दीर बनाई होगी
वो भी पत्थर है पड़ी जिससे बिनाई काबा
वो भी पत्थर है जिस से काबे का झूमर कहिए
संग ए अस्बद को तो महबूब ए ख़ुदा ने चूमा
क्यूं ना उसको मेरी तक़दीर से बढ़कर कहिए
संगे अस्वद तो बड़ी चीज़ है उसकी क्या बात
काश मैं भी किसी फुटपाथ का पत्थर होता
किसी मज़दूर को आराम तो मैं दे सकता
आज के दौर के इंसान से बेहतर होता
इश्क़ की आग है पत्थर में भी पिनहा सैफ़ी
मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे दिलबर कहना
मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की क़सम
आज के दिन से हमेशा मुझे पत्थर कहना

 

पत्थरों से कहो राज़ ए दिल ये ना देंगे दग़ा आपको
ऐ नदीम आज के दौर में आदमी का भरोसा नहीं

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएं हम
ये भी क्या कम है कि तुझको अगर भूल जाएं हम

 

ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं !
जी लो हर एक पल मुस्कुराहटों के साथ
क्यूंकि… ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं

मत रखो बैर किसी से ,
नजदीकियां बनाए रखो सबके साथ ।।
क्यूंकि… ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं

धन, दौलत कुछ नहीं है सब यही रह जाएगा,
बस जो कर्म किए है वहीं साथ में जाएगा ।।
मोह, माया का खेल है ये सब रिश्ते नाते झूठे है,
जीवन की कड़वी सच्चाई मौत शब्द पर रुकती है।।

मौत का कोई भरोसा नहीं कब किस उम्र चली आए,
जी लो ये ज़िन्दगी हंसकर क्या पता कब चली जाए।।

 

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