dil wo abad nahi jisme teri yaad nahi lyrics

dil wo abad nahi jisme teri yaad nahi lyrics

 

 

dil wo abaad nahi jis mein teri yaad nahin
Hai wo kafir jo teri raah mein barbaad nahin
Aye Gam e yaar tere dum say hai taameer e hayaat
Tu salamat hai to miTTi meri barbaad nahin
DhunDnay ko tujhay ,,mere na milnay walay
Woh chalaa hai jisay apna bhi pata yaad nahi
Aye jigar hai meri hasti ki haqeeqat itni
Mujh mein aabad hain sab main kahin aabaad nahin

 

 

 

🥀 क़ज़ाए उम्री का त़रीक़ा 🥀

 

क़ज़ा हर रोज़ की 20 रक्अ़तें होती हैं,

👉🏻2 फ़र्ज़ फ़ज्र के
👉🏻4 फ़र्ज़ जो़हर के
👉🏻4 फ़र्ज़ अ़स्र के
👉🏻3 फ़र्ज़ मग़रिब के
👉🏻4 फ़र्ज़ इशा के
👉🏻3 वित्र इशा के

निय्यत इस त़रह़ करे

➡जैसे- फ़ज्र की क़ज़ा हो तो यूं निय्यत करे:-
“सबसे पहली फ़ज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई उसको अदा करता हूं”!
हर नमाज़ में इसी त़रह़ निय्यत कीजिए! और अगर निय्यत में लफ़्ज़ “क़ज़ा” कहना भूल गए तो कोई हरज नही, नमाज़ हो जाएगी!

ज़्यादा क़ज़ा हो तो उनके लिए आसानी

पहली आसानी

➡अगर किसी पर ज़्यादा नमाज़े क़ज़ा हो और वो आसानी के लिए रुकूअ़ और सज्दे की तस्बीह़ तीन तीन बार पढ़ने के बजाए एक एक बार पढ़ेगा तो भी जाएज़ हैं!

दुसरी आसानी

➡फ़ज्र के अलावा दुसरी चारों फ़र्ज़ नमाज़ों की तीसरी और चौथी रक्अ़त में सूरए फ़ातिह़ा (अलह़म्द शरीफ़) की जगह सिर्फ़ तीन बार “सुब्ह़ान अल्लाह” कह कर रुकूअ़ में चला जाए, मगर वित्र की नमाज़ में ऐसा न करे!

तीसरी आसानी

➡क़ादए अख़ीरह (नमाज़ में आख़री बार बैठने को क़ादए अख़ीरह कहते हैं) तशह्हुद (यानी अत्तह्हिय्यात) के बाद दुरूदे इब्राहीम और दुआ़ की जगह सिर्फ़ “अल्लाहुम्मा सल्लि अ़ला मुह़म्मदिंव व आलेही” कह कर सलाम फैर दे!

चौथी आसानी

➡वित्र की तीसरी रक्अ़त में दुआ़ए कुनूत की जगह एक बार या तीन बार “रब्बिग़्फिरली” कहे!
(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-8, सफ़ह़ा-157)

नमाज़े क़स्र की क़ज़ा

➡(सफ़र में जो नमाज़ पढ़ी जाती हैं उसे क़स्र कहते हैं)
(क़स्र में ज़ोहर, अ़स्र और इशा की चार रक्अ़त फ़र्ज़ की जगह दो रक्अ़त ही पढ़े)
सफ़र में जो नमाज़े क़ज़ा हुई हो उन्हे क़स्र करके ही पढ़े चाहे सफ़र में पढ़ो या वापस लौट के घर पर, क़स्र की क़ज़ा क़स्र ही पढ़ी जाएगी! और घर पर जो नमाज़ें क़ज़ा हुई हो उन्हे पूरी पढ़े!

क़ज़ा नमाज़ों का वक़्त

➡क़ज़ा के लिए कोई वक़्त Fix नही उ़म्र में जब भी पढ़ेंगे तो बरिय्युज़िम्मा (यानी क़ज़ा की ज़िम्मेदारी से बरी) हो जाएगा!
👉🏻सिर्फ़ तीन वक़्तों में कोई भी नमाज़ न पढ़े
1⃣ तुलूअ आफ़्ताब (यानी फ़ज्र के बाद से सूरज निकलने तक)
2⃣ गुरूब आफ़्ताब (सूरज डूबते वक़्त या यूं समझे कि अ़स्र के बाद से मग़रिब तक)
3⃣ जवाल के वक़्त

छुप कर क़ज़ा पढे

👉 क़ज़ा नमाज़े छुप कर पढ़िए लोगों पर (या घर वालों या करीबी दोस्तों पर भी) इसका इज़्हार न कीजिए!
जैसे कि:- किसी से ये मत कहे कि आज मेरी फ़ज्र क़ज़ा हो गई या मैं क़ज़ाए उम्री पढ़ रहा हूं वग़ैरा क्यूंकि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह हैं और गुनाह का इज़्हार करना भी मकरूह़े तह़रीमी व गुनाह है
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नवाफ़िले शबे बराअ़त और क़ज़ाए उमरी का तरीक़ा

✍️1) मग़रिब की नमाज़ के बाद ग़ुस्ल करके दो रकअ़त नमाज़े तहयतुल वुज़ू पढ़े।
उसके बाद आठ रकअ़त नमाज़ नफ़्ल चार सलाम से अदा करे।
हर रकअ़त में बाद अलहम्दु के सूर: इख़्लास पांच बार पढ़े? तो गुनाहों से पाक होगा, दुआएँ क़बूल होंगी और सवाबे अ़ज़ीम हासिल होगा।

✍️2) चार रकअ़त नफ़्ल एक सलाम से पढ़े।
हर रकअ़त में अल्हम्दु के बाद सूर: इख़्लास पचास बार पढ़े? तो इस तरह गुनाहों से बाहर आएगा जैसा कि शिकमे मादर से निकला था।

✍️3) दो रकअ़त नमाज़ पढ़े।
हर रकअत में अल्हम्दु के बाद आयतल-कुर्सी एक बार और सूर: इख़्लास पन्द्रह बार, सलाम के बाद दुरूद शरीफ़ एक सौ बार पढ़े तो रिज़्क में उस्अत होगी, ग़म व अलम से नजात मिलेगी, गुनाहों की बख़्शिश और मग़्फ़िरत होगी।

✍️4) चौदह रकअ़त नमाज़ नफ़्ल सात सलाम से अदा करे।
हर रकअ़त में अल्हम्दु के बाद जो सूर: चाहे पढ़े।
नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद एक सौ मरतबा दुरूद शरीफ़ पढ़ कर जो भी दुआ मांगे क़बूल होगी।” إِنْ شَاءَ ٱللَّٰهُ
📗पैग़ामे शरीअ़त’ पेज़ नं 155/156)

👉मग़रिब के बाद छः नवाफ़िल:-👇
मामूलाते औलियाए किराम रहमतुल्लाहि तआ़ला अ़लैहि’ से है कि मग़रिब के फ़र्ज़ के व सुन्नत के बाद छः रकअ़त नफ़्ल नमाज़ दो-दो रकअ़त करके अदा किए जाएं।

✍️पहली दो रकअ़त ख़ैरियत के साथ दराज़ि-ए-उम्र के लिए।

✍️दूसरी दो रकअ़त बलाओं से हिफाज़त के लिए।

✍️तीसरी दो रकअ़त मुहताजी से बचने के लिए।

✍️हर रकअ़त के बाद एक बार सूर: यासीन शरीफ़ पढ़ें।
यह भी हो सकता है कि एक आदमी बुलन्द आवाज़ से पढ़े और बाक़ी लोग ख़ामोशी से सुनें।
हर बार यासीन शरीफ़ के बाद दुआ निस्फ़े शाबान भी पढ़ें।
👉नोट:- जिस किसी को दुआ “निस्फ़े शाबान” चाहिए वह हम से कमेंट्स में मांग सकते हैं।
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👉क़ज़ाए उमरी का तरीक़ा:-👇
बिला उज़रे शरई नमाज़ क़ज़ा कर देना सख़्त गुनाह है।
उस पर फ़र्ज़ है कि उसकी क़जा पढ़े और सच्चे दिल से उसकी तौबा भी करे।

👉क़जा हर रोज़ के बीस रकअतें होती हैं।
दो फ़र्ज़ फ़ज्र के,
चार जुहर,
चार अस्र,
तीन मग़रिब,
चार इशा के, और तीन वित्र।

✍️नीयत इस तरह करें: नीयत की मैंने सबसे पहली नमाज़े फ़ज्र पढ़ने की जो मेरे ज़िम्मा बाक़ी है वास्ते अल्लाह तआ़ला’ के, मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर!

👉और नमाज़ों के भी इसी तरह नीयत करें।
जिसमें ज़िम्मा बहुत ज़्यादा क़जा नमाज़ें हों वह आसानी के लिए अगर इस तरह भी अदा करे तो जाइज़ है।

✍️पहली आसानी: हर रुकूअ़ और सज्दा में तीन बार सुब्हान रब्बियल-अज़ीम० सुब्हान रब्बियल-आला० की जगह सिर्फ़ एक-एक बार कहे।
मगर यह कि हर तरह की नमाज़ में जब रुकूअ़ में पूरा पहुंच जाए उस वक़्त सुब्हान “सीन” शुरू करे और अ़ज़ीम का “मीम” ख़त्म कर चुके उस वक़्त रुकूअ़ से सर उठाए, इसी तरह सज्दा भी करे।

✍️दूसरी आसानी: फ़र्जों की तीसरी और चौथी रकअ़तों में अल्हम्दु शरीफ़’ की जगह सिर्फ़ तीन बार “सुब्हानल्लाह” कह कर रुकूअ़ करे मगर वित्र की तीनों रकअ़तों में अल्हम्दु शरीफ़ और सूरत दोनों ज़रूर पढ़ी जाएं।

✍️तीसरी आसान: क़अ़्दा अख़ीरह में तशह्हुद यानी अत्तहीयात पढ़ने के बाद दोनों दुरूदों और दुआ की जगह सिर्फ़ “अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व आलेही० कह कर सलाम फ़ेर दे।

✍️चौथी आसानी: वित्र की तीसरी रकअ़त में दुआए कुनूत की जगह सिर्फ़ एक बार या तीन बार रब्बिग़्फ़िरली० कहे।
📘अहकामे शरीअ़त’ जिल्द-2, सफ़ा 140)
📗पैग़ामे शरीअ़त’ पेज़ नं 156/157)

✍️साल भर जादू से हिफ़ाज़त:-👇
शाबानुल मुअ़ज्ज़म’ की पन्दरहवीं रात बेरी (यानी बैर के दरख़्त) के सात पत्ते पानी में जोश देकर (जब नहाने के क़ाबिल हो जाए तो) ग़ुस्ल करें।
इन्शाअल्लाहुल-अज़ीज़! पूरे साल जादू के असर से महफूज़ रहेंगे।
📔इस्लामी ज़िन्दगी’ सफ़ा 13)
📘पैग़ामे शरीअ़त’ पेज़ नं 156)

 

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🥀 क़ज़ाए उम्री का त़रीक़ा 🥀

 

क़ज़ा हर रोज़ की 20 रक्अ़तें होती हैं,

👉🏻2 फ़र्ज़ फ़ज्र के
👉🏻4 फ़र्ज़ जो़हर के
👉🏻4 फ़र्ज़ अ़स्र के
👉🏻3 फ़र्ज़ मग़रिब के
👉🏻4 फ़र्ज़ इशा के
👉🏻3 वित्र इशा के

निय्यत इस त़रह़ करे

➡जैसे- फ़ज्र की क़ज़ा हो तो यूं निय्यत करे:-
“सबसे पहली फ़ज्र जो मुझसे क़ज़ा हुई उसको अदा करता हूं”!
हर नमाज़ में इसी त़रह़ निय्यत कीजिए! और अगर निय्यत में लफ़्ज़ “क़ज़ा” कहना भूल गए तो कोई हरज नही, नमाज़ हो जाएगी!

ज़्यादा क़ज़ा हो तो उनके लिए आसानी

पहली आसानी

➡अगर किसी पर ज़्यादा नमाज़े क़ज़ा हो और वो आसानी के लिए रुकूअ़ और सज्दे की तस्बीह़ तीन तीन बार पढ़ने के बजाए एक एक बार पढ़ेगा तो भी जाएज़ हैं!

दुसरी आसानी

➡फ़ज्र के अलावा दुसरी चारों फ़र्ज़ नमाज़ों की तीसरी और चौथी रक्अ़त में सूरए फ़ातिह़ा (अलह़म्द शरीफ़) की जगह सिर्फ़ तीन बार “सुब्ह़ान अल्लाह” कह कर रुकूअ़ में चला जाए, मगर वित्र की नमाज़ में ऐसा न करे!

तीसरी आसानी

➡क़ादए अख़ीरह (नमाज़ में आख़री बार बैठने को क़ादए अख़ीरह कहते हैं) तशह्हुद (यानी अत्तह्हिय्यात) के बाद दुरूदे इब्राहीम और दुआ़ की जगह सिर्फ़ “अल्लाहुम्मा सल्लि अ़ला मुह़म्मदिंव व आलेही” कह कर सलाम फैर दे!

चौथी आसानी

➡वित्र की तीसरी रक्अ़त में दुआ़ए कुनूत की जगह एक बार या तीन बार “रब्बिग़्फिरली” कहे!
(फ़तावा रज़विय्या, जिल्द-8, सफ़ह़ा-157)

नमाज़े क़स्र की क़ज़ा

➡(सफ़र में जो नमाज़ पढ़ी जाती हैं उसे क़स्र कहते हैं)
(क़स्र में ज़ोहर, अ़स्र और इशा की चार रक्अ़त फ़र्ज़ की जगह दो रक्अ़त ही पढ़े)
सफ़र में जो नमाज़े क़ज़ा हुई हो उन्हे क़स्र करके ही पढ़े चाहे सफ़र में पढ़ो या वापस लौट के घर पर, क़स्र की क़ज़ा क़स्र ही पढ़ी जाएगी! और घर पर जो नमाज़ें क़ज़ा हुई हो उन्हे पूरी पढ़े!

क़ज़ा नमाज़ों का वक़्त

➡क़ज़ा के लिए कोई वक़्त Fix नही उ़म्र में जब भी पढ़ेंगे तो बरिय्युज़िम्मा (यानी क़ज़ा की ज़िम्मेदारी से बरी) हो जाएगा!
👉🏻सिर्फ़ तीन वक़्तों में कोई भी नमाज़ न पढ़े
1⃣ तुलूअ आफ़्ताब (यानी फ़ज्र के बाद से सूरज निकलने तक)
2⃣ गुरूब आफ़्ताब (सूरज डूबते वक़्त या यूं समझे कि अ़स्र के बाद से मग़रिब तक)
3⃣ जवाल के वक़्त

छुप कर क़ज़ा पढे

👉 क़ज़ा नमाज़े छुप कर पढ़िए लोगों पर (या घर वालों या करीबी दोस्तों पर भी) इसका इज़्हार न कीजिए!
जैसे कि:- किसी से ये मत कहे कि आज मेरी फ़ज्र क़ज़ा हो गई या मैं क़ज़ाए उम्री पढ़ रहा हूं वग़ैरा क्यूंकि नमाज़ क़ज़ा करना गुनाह हैं और गुनाह का इज़्हार करना भी मकरूह़े तह़रीमी व गुनाह है
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